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 -हिंसा के रास्ते पर ही चलना है तो गांधीवाद को भुला

लेखक : SHEKHAR KAPOOR


 

 
 -हिंसा के रास्ते पर ही चलना है तो गांधीवाद को भुला दिया जाए

कहावत है कि जब सहनशीलता खत्म होती है तो इंसान के मस्तिष्क में उभरने वाले विचार दो तरह के होते हैं। पहला उपाय सकारात्मक और दूसरा नकारात्मक। सकारात्मक उपायों के तहत इंसान अपनी बात को सरकार से मनवाने के लिए बातचीत और सौहार्द का रास्ता अपनाता है। नकारात्मक विचार जिन व्यक्तियों के मस्तिष्क में उभरते हैं तो वह अपनी बात को मनवाने के लिए आंदोलन के विभिन्न रूपों को अख्तियार करते हैं जिनमें रास्ता रोकना, चक्का जाम, बसों और रेलों के अलावा शहरों एवं ग्रामीण क्षेत्रों में तोड़फोड़ तथा आगजनी जैसे रास्ते होते हैं। देश को जब 1947 में आजादी मिली तो करीब दो दशक तक सरकार या व्यवस्था से नाराज या अपनी बात मनवाने वाले लोग, संगठन अथवा राजनीतिक दल अनशन और आमरण अनशन पर बैठ जाते थे। अनशन और आमरण अनशन का इतना व्यापक असर होता था कि सरकारें हिल जाती थीं और अनशन अथवा आमरण अनशन करने वाले से भूख हड़ताल समाप्त करने की मनुहार व्यापक स्तर पर होती थी।

यह सत्य है कि लोकतंत्र में अपनी बात को मनवाने का अधिकार सभी को है लेकिन जिस तरह से हिंदुस्तान में पिछले पांच दशक के दौरान आंदोलन के तरीकों ने हिंसक रूप लेना आरम्भ किया है और उसका नुकसान सार्वजनिक संपत्ति के रूप में हो रहा है। नुकसान की व्यापकता को समझने तथा समझाने जैसे विषयों पर कभी भी किसी सरकार, राजनीतिक दलों और संगठनों ने विचार-विमर्श नहीं किया। परिणाम यह निकला कि समय-समय पर जब भी अधिकांश आंदोलन हुए तो उनमें उग्रता ही हावी रही। उग्रता ने हिंसक रूप लिया और सार्वजनिक एवं निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचा। सार्वजनिक संपत्ति को जब नुकसान पहुंचता है तो इस सत्य तथ्य को भुला दिया जाता है कि सम्बंधित नुकसान की भरपाई देश की आम जनता को अप्रत्यक्ष रूप से विभिन्न टैक्सों अथवा महंगाई के माध्यम से करनी पड़ती रही है। इसी प्रकार हिंसक आंदोलन तथा संपत्ति के नुकसान की भरपाई के लिए जब किसी राज्य सरकार के पास धन नहीं होता तो वह केंद्र सरकार अथवा अन्य संस्थानों से लोन लेकर सार्वजनिक कार्यों को पूरा करने के लिए कदम उठाती है। किसी भी राज्य सरकार पर जब हजारों करोड़ रूपये का लोन होता है तो उस स्थिति में सम्बंधित राज्य के प्रत्येक नागरिक पर यह लोन होता है। जब भी रिजर्व बैंक आफॅ इंडिया, वित्त मंत्रालय एवं आर्थिक विषयक रिपोर्ट जारी होती है तो उसमें इस बात का जिक्र होता है कि लोन लिए हुए सम्बंधित राज्य के प्रत्येक नागरिक पर कई हजार का कर्ज है।

हमने आज इस विषय को राष्ट्रीय संदर्भ में उठाया है जहां विभिन्न संगठन अथवा राजनीतिक दल जब आंदोलन करते हैं तो उनका तरीका गांधीवादी ना होकर नाजीवादी होता है। आंदोलन के नाजीवादी होने की भरपाई प्रत्येक नागरिक को करनी पड़ रही है। बेहतर तो यह होगा कि मध्यप्रदेश की डा.मोहन यादव सरकार सभी राजनीतिक दलों एवं संगठनों से आंदोलन के रूपों पर विचार सहमति की शुरूआत करवाए जिसमें गांधीवादी तरीके से आंदोलनों की सहमति हो। जहां हिंसक आंदोलन हों वहां पर देशद्रोह एवं जिम्मेदार व्यक्तियों की संपत्ति जब्त करने जैसे कानूनों की शुरूआत जरूरी है। अगर ऐसा नहीं होता है तो फिर देश में गांधी जयंति, शास़्त्री जी की जयंति की कोई जरूरत नहीं है। इन महान आत्माओं के पद्चिन्हों पर देश के जिम्मेदारों को चलने या आह्वान करने की जरूरत नहीं है।
(updated on 27th August 24)