बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के दौरान और उसके बाद वहां की अल्पसंख्यक हिंदू आबादी पर जो अत्याचार खुलकर वहां की सरकार, आंदोलनकारी एवं कट्टरपंथी कर रहे हैं उसने यह संदेश साफ तौर पर दे दिया है कि इस देश में हिंदुओं की मौजूदगी, प्रगति और कारोबार तथा नौकरियों के विषय पर वहां का बहुसंख्यक मुस्लिम स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। इसी का परिणाम है कि वहां पर हिंदू आबादी के व्यवसाय, कारोबार और नौकरियों पर हमले तो हुए ही साथ ही हिंदुओं की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के बाद उन्हें देश छोड़ने के लिए विवश किया जा रहा है। सरकारी नौकरियों से जिस तरह से दबाव डाल और डरा-धमकाकर इस्तीफे दिलवाये जा रहे हैं वह स्थिति की भयावता के गवाह हैं। मुख्य बात यह भी है कि इस मुल्क में हिंदुओं के हितों को लेकर अगर अंतरराष्ट्रीय दबाव इस देश पर प्रभाव नहीं बना पाता है तो अंतरराष्ट्रीय हिंदू समुदाय भारत पर ही नजरें लगाए हुए है कि आने वाले वक्त में वह इस देश के शासकों एवं कट्टरपंथियों के मामले में क्या कदम उठाता है?। सत्य यह है कि इस वक्त विश्व का हिंदू समुदाय इस देश के वर्तमान तथाकथित कट्टरपंथी क्रांतिकारियों के खिलाफ भारत सरकार की वहीं कार्रवाई चाहता है जो कि 1971 में भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ की थी। तब बांग्लादेश के लोगों ने ही भारत सरकार से मदद और सैन्य मदद मांगी थी जिसके बाद भारतीय सेना ने पाकिस्तान के चंगुल से इस मुल्क को मुक्त कराया था।
बांग्लादेश में जो कुछ अत्याचार हिंदू आबादी पर हो रहा है उस संदर्भ में वहां की वर्तमान सरकार का यही कहना है कि यह बांग्लादेश का आंतरिक मामला है लेकिन यह भी सत्य है कि इस वक्त बांग्लादेश में कट्टरपंथियों की जो सरकार है उसमें अधिकांश वही तत्व शामिल हैं जो पाकिस्तान के समर्थक हैं। पाकिस्तान भी इस विषय पर पूरी तरह अंदरखाने हिंदुओं पर हमले के माध्यम से इस्लाम को वहां और अधिक धारदार, नुकीला तथा हमलावर बनाते हुए भारत सरकार को यह परोक्ष संदेश दे रहा है कि उसे हिंदू और हिंदुस्तान दोनों से नफरत है। पाकिस्तान जितना अधिक बांग्लादेश को कट्टरपंथी रास्ते पर ले जाएगा वह उतना ही अधिक पाकिस्तान के अनुकूल होगा। आने वाले वक्त में वहां मौजूद हिंदू आबादी किस तरह से अपने जीवन को आगे बढ़ा पाएगी यह भी एक विराट और भयानक प्रश्न बन गया है।
इस स्थिति में हमारा सुझाव यही है कि इस वक्त भारत को परोक्ष रूप से तो नहीं लेकिन अपरोक्ष रूप से विश्व के सभी संपन्न और विकसित मुस्लिम देशों के साथ इस दिशा में उनका समर्थन लेकर इस देश पर कूटनीतिक प्रभाव डालना चाहिये। हमारा मानना है कि इसका असर होना चाहिये। अगर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है तो विश्व में मौजूद हिंदू आबादी इस मुल्क पर भारत की सैन्य कार्रवाई का एक तरफ स्वागत करेगी तो वहीं विकसित मुस्लिम राष्ट्र कोई विरोध नहीं करेंगे। इसका कारण स्पष्ट है कि भारत के साथ उनके रिश्ते भले ही धार्मिक ना हों लेकिन इन विकसित देशों की आर्थिक मजबूती में इन देशों में मौजूद हिंदू आबादी का सर्वाधिक योगदान है। वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुस्लिम देश ब्रुनेई की यात्रा इस दिशा में पहला शानदार प्रयास साबित हो सकती है। इसके अलावा कई विकसित और धर्मनिरपेक्ष मुस्लिम राष्ट्र पहले ही से भारत के संपर्क में हैं और मोदी सरकार ने इन मुस्लिम देशों के साथ अपने सौहार्दपूर्ण वैदेशिक संबंध बनाये हैं जो कि भारत के किसी भी कदम का विरोध नहीं करेंगे।
(updatedon3rd sept 24)
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