मध्यप्रदेश के 23 से अधिक जिलों में इस बार अतिवृष्टि हुई है। जब बरसात अत्याधिक मात्रा मेें होती है तो उसके फायदे भी होते हैं और नुकसान भी। इस बार मध्यप्रदेश के किसानों के चेहरे पर तो खुशी है क्योंकि फसल के लिए प्रकृति प्रदत्त जल अच्छा-खासा मिल गया है लेकिन दूसरी ओर मध्यप्रदेश से निकलने वाले अधिकांश प्रांतीय स्तर के राजमार्ग तथा अंतरजिला मार्ग की सड़कें और मुहल्ले बरसात के पानी से लबालब हो गईं। जब बरसात का पानी सड़कों पर जमा हो गया और जिम्मेदार प्रशासनिक तंत्र बरसात के इस अतिरिक्त पानी को सड़कों से नहीं हटा पाया तो सड़कों ने निर्माण कार्य एजेंसियों, दक्ष अधिकारियों और निर्माण करने वाले ठेकेदारों की पोल खोल दी। प्रदेश के 55 में से करीब 23 जिलों में तो सड़कों ने निर्माण कार्य घटिया होने, तकनीकी का उपयोग ना करने तथा सड़कों के निर्माण में आने वाले वर्षों का ख्याल न रखने के राज तो खोले ही साथ ही पूरे 55 जिलों में बरसात के सड़कों का यातायात इस वक्त डांवाडोल हो चुका है तो गली-मुहल्लों की सड़कों पर गंदगी और जल जमाव के बाद पड़े गड्ढों के पुर्न निर्माण पर सरकार को अब जूझना होगा और यह उसकी प्राथमिकता में होना चाहिये। अर्थात एक बड़ी धनराशि जो कि करोड़ों रूपये से कम नहीं होगी उसको खर्च करना होगा और उसके बाद ही स्थिति कुछ सुधरती दिखायी पड़ेगी।
हमारे देश के साथ ही मध्यप्रदेश भी हर साल प्रकृत्ति के विभिन्न रूपों को झेलता आया है। हर साल मध्यप्रदेश में सड़कों के निर्माण पर राज्य सरकार का करोड़ों रूपये व्यय होता रहा है लेकिन कभी भी सड़कों के निर्माण में ईमानदारी और तकनीकी योग्यता दिखाने का काम शायद ही किसी राज्य सरकार ने किया हो। प्रादेशिक और जिला मार्गों पर सड़कों के निर्माण की सीधी जिम्मेदारी राज्य सरकार के मातहत सरकारी एजेंसियों की होती है। ये सरकारी एजेंसियां और उनमेें लाखों रूपये का वेतन लेने वाले अधिकारी क्या ईमानदारी और दूरदर्शिता का परिचय देते हैं..? अगर दे रहे होते तो आज इन 23 जिलों की बाहरी और आंतरिक सड़कों के हालात नहीं बिगड़ते। भोपाल के ही कई इलाके ऐसे हैं जहां पर बरसात के पानी के आगे की ओर ना बहने और सड़कों पर ही एकत्रित हो जाने के कारण कई सड़कें टूट चुकी हैं। सड़कों पर गड्ढे और कीचड़ भरी हुई है। जो आरंभिक प्रयास जिला अधिकारी करते हैं वो कर रहे हैं लेकिन वास्तविकता तो यही है कि सड़कों के निर्माण में तकनीकी क्षमता का अभाव एवं भ्रष्टाचार का जो खेल चल रहा है वह एक बार फिर से बरसात ने दिखा दिया है।
चंद दिन में ही मानसून वापस हो जाएगा। इसके बाद मध्यप्रदेश सरकार की यह जिम्मेदारी होगी कि वह सड़कों के निर्माण में पुनः जुट जाने के लिए अधिकारियों को तैनात करेगी लेकिन हमारा मोहन यादव सरकार से यही कहना है कि किसी भी राज्य की सड़कें उस राज्य की स्थिति भी बयां कर देती हैं। आप मध्यप्रदेश में पूंजी निवेश के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पूंजीपतियों तथा उद्योगपतियों को आमंत्रित कर रहे हैं तो सड़कों के निर्माण में तकनीकी क्षमता और ईमानदारी तो कार्यतंत्र को बरतनी ही होगी। इसलिए अब जो भी सड़क निर्माण हो उसमें तकनीकी दक्षता और आने वाले वर्षों की तैयारी के हिसाब से निर्माण हो। मुख्य बात यह है कि इस कार्य में रिश्वत और भ्रष्टाचार जैसे विषय पर नजर भी रखनी होगी और जबावदेही भी तय करनी होगी।
(updated on 28th August 2024)
|