मध्यप्रदेश से बेरोजगारी खत्म करने और प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव द्वारा लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। इस वक्त वह जापान के दौरे पर हैं। इसके पहले उन्होंने ब्रिटेन का दौरा कर वहां के उद्योगपतियों एवं एनआरआई को भारत में आकर मध्यप्रदेश को चुनने और पंूजी निवेश का आमंत्रण दिया। इसके अलावा उन्होंने पिछले तीन माह के दौरान देश के ही प्रमुख शहरों का भी इसी उद्देश्य को लेकर भ्रमण किया। सुखद बात यह रही है कि इन यात्राओं, संपर्क एवं मेल मिलाप का परिणाम यह रहा कि चार लाख करोड़ रूपये के पूंजी निवेश प्रस्ताव अब तक मध्यप्रदेश को मिल चुके हैं। जैसे ही यह प्रस्ताव औद्योगिक एवं व्यवसायिक स्तर पर ठोस रूप लेंगे तो उसके साथ ही करीब 3 लाख लोगों को रोजगार प्राप्त होगा। जापान के दौरे में दूसरे दिन उन्होंने मेडिकल और फार्मास्यूटिकल क्षेत्र में उद्योग लगाने के लिए जिस तरह से उद्योगपतियों को आमंत्रण दिया और जो स्वीकृति प्राप्त हुई वह मध्यप्रदेश के स्वर्णिम भविष्य का संकेत देती है।
मध्यप्रदेश में उद्योग लगने चाहियें और बेरोजगारी खत्म होना चाहिये इस दिशा में मुख्यमंत्री के प्रयासों में हम भी सहभागी हैं लेकिन इसके साथ ही हम जिन विषयों पर मुख्यमंत्री को आगाह अर्थात सावधान करना चाहेंगे वह यह कि मेडिकल और फार्मा सेक्टर वो उद्योग हैं उनकी स्थापना से लेकर उनके द्वारा उत्पादित सर्जिकल एवं मेडिकल उपकरणों की बाजार में कीमतें तय करना, तय करवाना, आम नागरिक की अपेक्षाओं पर इस उद्योग का उतरना मुख्य तौर पर मायने रखता है। उदाहरण के तौर पर हमारे देश के चिकित्सा जगत में चिकित्सक, उसकी फीस, दवाईयों की कीमत जैसे विषय आज भी ’’अंधेरे कुए में झांकने’’ की तरह हैं। कुछ हद तक चिकित्सकों की फीस का विषय सार्वजनिक तो हुआ है लेकिन किसी निजी अस्पताल में मरीज के भर्ती होने के बाद कितना व्यय होगा यह विषय आज तक हल नहीं हो पाया है। एक चिकित्सक भगवान की तरह होता है इस भावना के सहारे चिकित्सकों को विपरीत हालात में बचाव का मौका मिलता रहा है। इसी प्रकार केंद्र सरकार के प्रयासों से मेडिकल दवाईयों का सस्ता संस्करण तो भारतीय बाजार में आ गया लेकिन सच्चाई यह भी है कि वरिष्ठ चिकित्सक सस्ते संस्करण का इलाज के दौरान स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। इसी प्रकार किसी भी अंग्रेजी दवाई की कीमत में स्वयं कैमिस्ट 10 से 15 प्रतिशत का डिस्काउंट देकर सम्बंधित दवाईयां मरीजों को बिक्री कर रहे हैं। इसके अलावा दवाई निर्माण, एमआर, सरकारी टैक्स और चिकित्सक पर भी करीब 20 से 25 प्रतिशत का खर्चा होता है। इसके अलावा निर्माता निश्चित रूप से 10 से 20 प्रतिशत के बीच लाभांश तो निकालता ही होगा। अर्थात सर्जिकल और मेडिकल दवाईयां एवं उपकरण आज वाजिब दाम में बिक्री हो रहे हैं या मुनाफाखोरी वाली कीमतों में..? यह विषय भी आज तक हल नहीं हो पाया है। दवाईयां एवं सर्जिकल उपकरणों की कीमतें कितने लाभांश मार्जिन पर तय होती हैं..? निर्माण में कितना खर्च आता है और बाजार में इन मेडिकल उपकरणों एवं दवाईयों की कीमत कितने प्रतिशत लाभांश पर बेची जा सकती है और अगर निश्चित कीमत से अधिक में ये बिक्री हो रही है तो उस पर कानूनी शिकंजा किस तरह से कसा जाता है जैसे विषय आज भी एक ना सुलझने वाली पहेली बन कर रह गए हैं। आम जनता के मन में चिकित्सक और दवा निर्माण कम्पनियों का चेहरा और चरित्र मानवीय पेशे में लगे रहने के बावजूद हमेशा क्यों संदेहास्पद रहता है?।
हम मुख्यमंत्रीजी से यही चाहेंगे कि प्रदेश में उद्योग आमंत्रण के प्रस्ताव का हम स्वागत करते हैं। इसके साथ ही राज्य सरकार को एक ऐसी भी एजेंसी या अभिकरण मध्यप्रदेश में विभिन्न क्षेत्रों में तय करना होगा या उनकी नियुक्ति करनी होगी जो कि किसी भी मेडिकल या हर वस्तु के निर्माण और समस्त खर्च काटने के बाद बाजार में बिक्री की कीमत को कुछ प्रतिशत अधिक की कीमत में निर्धारित कर सके। यही व्यवस्था अन्य उत्पादों पर भी लागू की जानी चाहिये। अगर एमआरपी से कम या अधिक कीमत ग्राहक से ली जा रही है तो सवाल और संदेह तो बनते ही हैं कि आखिर घालमेल कहां हो रहा है और इसका जिम्मेदार कौन है,? इसका सबसे बुरा परिणाम उन ईमानदार निर्माताओं या उद्योगपतियों को भुगतना पड़ रहा है जो कि एमएसएमई सेक्टर में या लघु उद्योग स्तर पर कीमतों की लड़ाई के बीच मानवता को जिंदा रखने की जंग लड़ रहे हैं।
()UPDATED ON 30TH JANUARY 25
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