###--- President Nominates Four Prominent Personalities To Rajya Sabha ###--- -कट्टरता और कठोरतम कानून पर टिकी निगाहें--शेखर कपूर - ###--- Chief Minister Dr. Yadav Receives Unprecedented Welcome in Dubai ###--- Skill Development Centre to be set up at AURIC in partnership with CII ###--- Brahmos Missile Performed Remarkably During Operation Sindoor: Defence Minister ###--- Railways To Install CCTV Cameras In All trai Coaches ###--- Dr. Mansukh Mandaviya leads Nationwide Fit India Sundays on Cycle ###--- Union Minister Dr. Jitendra Singh Invokes Dr. B.C. Roy’s Legacy at IMA’s Doctors’ Day Celebration ###--- EAM S Jaishankar Reviews Bilateral Cooperation With Singaporean counterpart ###--- IIT Goa Holds 6th Convocation; Education Minister Joins VC ###--- ASEAN-India Synergy Key To Indo-Pacific Vision Margherita
Home | Latest Articles | Latest Interviews | About Us | Our Group | Contact Us

 -गडकरी का व्यंग उचित पर अंकुश
का रास्ता भी निकालना जरूरी है

लेखक : SHEKHAR KAPOOR


 
 यह हमारे देश की सार्वजनिक व्यवस्था का दुर्भाग्य या सौभाग्य कि जब भी जनता से जुड़े सार्वजनिक कार्यों का शुभारम्भ और समापन होता है तो उसका श्रेय लेने की होड़ सबसे अधिक सरकारी अधिकारियों से लेकर कर्मियों और राजनीतिज्ञों में मचती है। जनता को जब किसी सार्वजनिक कार्य की आवश्यकता की जरूरत पड़ती है तो वह अपने चुने हुए प्रतिनिधियों से मांग करती है। चुने हुए ये प्रतिनिधि अपनी लोकप्रियता को कायम करने या बढ़ाने के लिए जनता की आवाज को प्रशासनिक तंत्र तक पहुंचाते हैं और सम्बंधित सार्वजनिक कार्य की मंजूरी करवाने के बाद सम्बंधित सार्वजनिक कार्य पर काम आरम्भ हो जाता है। इसके बाद प्रशासनिक अधिकारी सम्बंधित कार्य को पूरा करवाने के लिए ठेकेदारों के माध्यम से कार्य करवाते हैं लेकिन यहीं पर झौल कायम होता है। चुने हुए प्रतिनिधि इस विषय पर अपनी पसंद के ठेकेदारों के नाम अधिकारियों के समक्ष रखकर या मंजूर करवाकर सम्बंधित काम आरम्भ करवा देते हैं। हमारे देश में ठेका प्रणाली इस वक्त लेनदेन, भ्रष्टाचार, निकम्मेलपन तथा रिश्वतखोरी की जकड़ में है जिसके परिणाम स्वरूप बाहर-बाहर तो दिखायी पड़ता है कि जनता से जुड़े सार्वजनिक कार्य तो रहे हैं लेकिन चंद दिनों या महीनों और विशेषकर बरसात के मौसम में ये सार्वजनिक कार्य भ्रष्टाचार,रिश्वत और गुणवत्ता के अभाव की कहानी सार्वजनिक करने लगते हैं। ज्यादा बदनामी ना हो इसलिए गुणवत्ता के अभाव वाले ये सार्वजनिक कार्यों पर ’पेंच वर्क’ लगाने का काम आरम्भ कर शिकायतों पर पर्दा डालने का काम आरम्भ हो जाता है।

हमने इस याज्ञिक प्रश्न को प्रदेश ही नहीं देश की सड़क निर्माण कार्य में लगी एजेंसियों, सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के संदर्भ में इसलिए उठाया है क्योंकि कल ही मध्यप्रदेश में देश के सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने इसी विषय को सार्वजनिक तौर पर सड़कों के निर्माण, पुर्ननिर्माण, बदहाली, खस्ताहालत जैसे विषयों को लेकर अधिकारियों से लेकर कर्मचारियों तक पर व्यंग करते हुए कहा इन अधिकारियों एवं कर्मचारियों को तो पद्मश्री और पद्मभूषण जैसे अवार्ड से सम्मानित करने की जरूरत है जो कि सार्वजनिक सड़कों के निर्माण में गलत डीपीआर एवं गुणवत्ता के नियमों का पालन नहीं करते हैं। हालांकि उन्होंने भ्रष्टाचार एवं निकम्मेपन की बात को व्यंग में कहा लेकिन वास्तविकता यही है कि सार्वजनिक निर्माण कार्यों से जुड़े अधिकारियों एवं कर्मचारियों की कार्यपद्धति को उन्होंने सार्वजनिक किया जो कि इस सत्य को दर्शाता है कि सार्वजनिक निर्माण कार्यों में अंधेरगर्दी, भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखारी सबसे अधिक सार्वजनिक कार्यों को प्रभावित कर रही है। चाहे केंद्रीय या प्रादेशिक निर्माण एजेंसियां हों या उनके द्वारा मुकर्रर ठेकेदार या आउट सोर्सिंग कर्मी., इस वक्त भ्रष्टाचार में सबसे अधिक लिप्त हैं। परिणाम यह हो रहा है कि जनता का धन रिश्वत और भ्रष्टाचार के रूप में परिवर्तित हो रहा है। सम्बंधित अधिकारी और कर्मचारी मालामाल हो रहे हैं। उनके खर्चे और रहनसहन निश्चित वेतनमान से कहीं अधिक सार्वजनिक तौर पर दिखायी पड़ते हैं लेकिन कार्रवाई उसी प्रकार होती है जैसे आटे में नमक। प्रभावी और दंडात्मक कार्रवाई ना होने में जनप्रतिनिधि भी सबसे अधिक भूमिका निभाते रहे हैं। जनप्रतिनिधियों का रहन-सहन और बढ़ते खर्चें इस सत्य का दृष्टांत उदाहरण हैं।

मुख्य मुद्दा यही है कि हमें लोकतांत्रिक प्रक्रिया में रहना है, सार्वजनिक कार्य भी जरूरी हैं, राजनेता और अधिकारी तथा कर्मचारी भी जरूरी हैं। अर्थात भ्रष्टतम व्यवस्था के बीच ही हमें बेहतर कार्य का रास्ता भी निकालना है तो हमारा मत यही है कि किसी भी सार्वजनिक कार्य की गुणवत्ता की जांच का काम न्यायपालिका के उन रिटायर्ड न्यायधीशों को सौंपा जा सकता है जिन पर आज भी आम जनता बहुत कुछ विश्वास करती है। अर्थात हमें भ्रष्ट तंत्र के बीच ही सुधार,जांच और दंड के नियमों पर काम करना होगा वरना तो लोकतंत्र में जनता की जेब से निकाले गए टैक्स रूपी धन की बंदरबांट चलती ही रहेगी।