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 निजी नहीं ’’राष्ट्र धर्म’’ ही सर्वोच्च है

लेखक : -शेखर कपूर


 
 जब किसी परिवार में परिवार के सदस्य अपनी-अपनी बात को अपने तरीके से मनवाने के लिए जिद करते हैं तो परिवार का नेतृत्व कर रहे जिम्मेदार अर्थात नेतृत्व करने वाले व्यक्ति पर परोक्ष और अपरोक्ष रूप से परिवार को जोड़े रखने के लिए कुछ ’’कड़े और कड़वे’’ कदम उठाने की जरूरत आ पड़ती है। इन कदमों में तात्कालिक और भविष्य के परिणाम निहित होते हैं। परिवार के इन सदस्यों को तात्कालिक रूप से आहत होने का डर रहता है लेकिन नेतृत्वकर्ता को पता होता है कि उसका निर्णय परिवार के हित में है। नेतृत्वकर्ता के निर्णय से सम्बंधित किसी सदस्य को निजी स्तर पर अवश्य हानि होने का अंदेशा होता है लेकिन नेतृत्वकर्ता परिवार के हित में ही कदम उठाता है।

संपूर्ण राष्ट्र इस वक्त वक्फ कानून को लेकर संसद द्वारा पारित ’’नवीन वक्फ कानून 2025’’ को देश के अधिसंख्य मुस्लिम समाज द्वारा धर्म के आधार पर मानने से इंकार किया जा रहा है। जबकि सार्वभौमिक सत्यता है कि देश सबसे पहले है और देश की संसद ने जो कानून पारित किया है उसे वक्त के साथ ही बदलने की जरूरत थी क्योंकि राष्ट्रधर्म ही सर्वाेच्च है। नवीन वक्फ कानून किसी के अधिकार छीनने के लिए नहीं बल्कि पुराने कानून के कुछ अंशों को सुधार की दृष्टि से ही पारित हुआ है। वक्फ कानून जब 1954 में लागू किया गया था वह भी संसद द्वारा ही पारित किया गया था। उस कानून के आधार पर ही देश में मुसलमानों की संपत्ति, सामाजिक सुधार और रहनसहन, शिक्षा तथा अन्य मसले हल होने थे लेकिन उसके पारित होने के बाद देश आम मुसलमानों को कितना लाभांश हुआ, कितनी गरीबी मिटी, कितने आम मुसलमानों को इसका लाभांश मिला इसकी हकीकत पूरा देश जानता है। आज देश का मुस्लिम वर्ग राष्ट्रीय शिक्षा, राष्ट्रीय उन्नति और सामाजिक स्तर पर देश के अन्य समाजों के मुकाबले कहीं अधिक पिछड़ा हुआ रहा और इसका कारण मात्र यही रहा कि भारत में आजादी के बाद मुसलमानों का उद्धार जिस गति से वक्फ कानून 1954 के तहत होना था नहीं हुआ। इतना ही नहीं इस कानून के कट्टर पहलुओं के कारण हिंदू और मुसलमानों के बीच संवाद की कमी रही तो वहीं गरीबी और अमीरी के साथ ही शिक्षा और अशिक्षा, प्रगति और अप्रगति को देश ही नहीं बल्कि विश्व देखता रहा। इसके अलावा हमेशा मुस्लिम कट्टरपंथियों के कारण देश में साम्प्रदायिक सद्भाव भी प्रभावित हुआ और देश आज उसी का दंश झेल रहा है।

हमारा इस विषय पर देश के सर्वहारा मुस्लिम समाज से यही आग्रह रहेगा कि जब 1954 के वक्फ कानून के तहत मुस्लिम समाज को अपनी संपत्तियों को लेकर विशेष अधिकार मिले तो उसी क्रम में वर्ष 2025 का वक्फ कानून है जिसको सुधारात्मक दृष्टि से स्वीकार करने की जरूरत मुस्लिम समाज को है। अगर कुछ समय बाद मुस्लिम समाज को लगता है कि यह कानून उनके लिए घातक साबित हो रहा है तो वो देश के बहुसंख्यक हिंदू समाज से मेलजोल और सद्भाव के आधार पर इस कानून को बदलवाने के लिए केंद्र की सरकार पर दबाव डाल सकते हैं अथवा देश के आम चुनाव में नेतृत्व बदलवाकर इसी कानून को खत्म करवा सकते हैं अर्थात लोकतांत्रिक तरीका अपनाया जा सकता है ना कि अन्य हिंसात्मक रास्तों को चुना जाए। वर्तमान केंद्र सरकार को देश में शासन करते हुए 11 वर्ष से अधिक का समय हो चुका है। वर्तमान वक्फ कानून का विरोध करने से पहले मुस्लिम समाज को इस 11 वर्ष के कार्यकाल में मोदी सरकार के मुसलमानों के प्रति मदद, कोई भेदभाव, असमानता जैसे विषयों को भी सामने रखकर कोई कदम उठाना होगा और विचार करना चाहिये कि इन 11 वर्षाे में इन विषयों को लेकर क्या उसके साथ असमानता बरती गई या भेदभाव किया गया?। भारतीय मुस्लिम प्रगति करे और बहुसंख्यक समाज का सहयोगी बन संपन्नता तथा शिक्षा में बराबरी कर सके यही हर हिंदुस्तानी की इच्छा है। इस बात को ध्यान में रखना जरूरी है कि बहुसंख्यक आबादी की भावना के विपरीत चलने के परिणाम कहीं मुस्लिम समाज को और अधिक नारकीय स्तर पर ना ले जाएं इस विषय पर अतीत और पाकिस्तान एवं बांग्लादेश को देखना जरूरी होगा। संपूर्ण मुस्लिम समाज इस वक्त राष्ट्रधर्म को महत्ता देकर प्रगति की ओर बढ़े यही कामना है। अगर तीन से चार सालों में परिणाम सुखद ना रहें तो हिंदुओं के साथ मिलकर ही मुखालफत की जाए तो बेहतर होगा
(updated on 12th april 25)
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