-धर्म प्रसार नहीं बल्कि मानवीयता और प्रगति पर ध्यान देना प्रमुख
वह जमाना चला गया जब इंसान अपने अस्तित्व के लिए अपने कुनबे, समाज और जाति को बढ़ाने और उसकी संख्या के आधार पर दूसरी जाति या समाज अथवा देश पर राज्य करने की योजनाएं बनाते थे और जय-पराजय के लिए उन्हें सीधे मौत से जूझना पड़ता था। अर्थात आज से 100 साल पहले के समय में अधिकांशतः युद्ध तलवार, भालों, चाकू अर्थात हथियारों के माध्यम से हुआ करते थे। उस वक्त संख्या बल के आधार पर जो राजा या उनके मनसबदार जितनी जमीन पर कब्जा कर लिया करते थे तो उसे कब्जा माना जाता था। इसी प्रकार परिवार को आगे बढ़ाने और परिवार की संख्या को अधिकाधिक करने के लिए बहु-विवाह और अनगिनत औलादें पैदा करने की रवायत शुरू हुई। इसी का परिणाम रहा कि विश्व में कहीं पर इसाई धर्म फैला तो कहीं पर इस्लाम। इसके साथ कई और भी धर्म जिनमें बौद्ध और हिंदुत्व तथा सिख सहित कई अन्य धर्म थे समय-समय पर दिखायी पड़ते रहे। जैसे ही अंग्रेजों ने कामनवेल्थ के देशों को अपने चंगुल/नियंत्रण से मुक्त अर्थात आजाद करना शुरू किया तो उसके बाद आबादी के महत्व को कुछ देशों और समुदायों ने महत्व दिया। उस वक्त देश में मुस्लिम धर्म के प्रसार प्रचार के साथ ही उन जमीनों और जायदाद पर नियंत्रण की बात आरम्भ हुई जो कि धर्म या समुदाय से जुड़ी थीं। उसका उद्देश्य उस वक्त....जी हां, उस वक्त....उस मजहब को कानून के अनुसार संरक्षण देना था। बाद में जिसे वक्फ का नाम देकर एक निजी कानून के तहत संविधान का संरक्षण दिया गया।
इस वक्त देश में वक्फ की संपत्ति को लेकर केंद्र सरकार संसद में कानून के माध्यम से वक्फ मामलों को संयोजित करना चाहती है। केंद्र सरकार चाहती है कि इस तरह के मामलों में जो विरोधाभास, भेदभाव और छलकपट लम्बे समय से कुछ व्यक्तियों या संस्थाओं द्वारा किया जा रहा था वह खत्म हो और इस्लाम की रवायतों के अनुसार वक्फ के मसलों में पारदर्शिता आए। आजादी के बाद बहुसंख्यक समाज को हमेशा यह लगता रहा कि इस निजी कानून, जी हॉ...निजी कानून के अनुसार विस्तार का जो क्रम गलत तरीकों से फलफूल रहा है वह रूक सके और कंेद्र सरकार ने इस दिशा में इस्लाम की रवायतों ओर वक्फ को पारदर्शी और ईमानदार बनाने के लिए कानून बनाने की शुरूआत की। अब देश का मुस्लिम समुदाय चाहता है कि वक्फ के मसलों में केेंद्र सरकार कतई हस्तक्षेप नहीं करे और जो अधिकार मुस्लिम समाज को आजाद भारत में 1952 में दिये गए थे उन्हें जारी रहने दिया जाए।
हमारा इस दिशा में स्पष्ट मत है कि जिस वक्त भारत आजाद हुआ उस वक्त की व्यवस्था और जरूरतें अलग थी। उस वक्त पहली प्राथमिकता रोजी और रोटी सभी समुदायों के लिए अहम थी। उस वक्त चूंकि पाकिस्तान का निर्माण कर पाकिस्तान नामक देश के रूप में हिंदुस्तान के हिस्से को काट कर मुसलमानों को उनकी इच्छानुसार अधिकार दे दिये गए थे। अर्थात उसके बाद जो अधिकार भारत के हिंदू समाज को मिले उनमें वक्फ नामक एक व्यवस्था उस वक्त के हिसाब से मुसलमानों के संरक्षण के लिए की गई थी जिसका अब पुनरीक्षण का काम वर्तमान केंद्र सरकार कर रही है। जहां तक हमारा मानना है कि केंद्र सरकार इस कानून को ना तो खत्म कर रही है और ना ही बदलने की बात कर रही है बल्कि वह तो इस निजी कानून में कुछ विषयों पर परिवर्तन कर भविष्य के भारत और भारत में मुसलमानों के हालात पर कदम उठा रही है। हम यह भी मानते हैं कि वर्ष 1952 में वक्फ नामक जो व्यवस्था की गई थी वह उस वक्त एक जरूरत बताई गई थी लेकिन अब उस ’’जरूरत की जरूरत’’ नहीं है अथवा उसमें संशोधन करने की अगर जरूरत बताई जा रही है तो उसमें कोई विरोध नहीं किया जाना चाहिये।
हम यह भी स्पष्ट कर दें कि इस वक्त हिंदुस्तान के हर मजहब के सिपहसालारों को अपनी कौम और देश को आगे बढ़ाने की जरूरत है। देश में रहने वाले मुसलमानों को इस तथ्य को समझने की जरूरत है कि आज वे हिंदू मानवीयता के सहारे ही लगातार प्रगति कर रहे हैं। इसलिए इस मानवीयता को अब वो भी अब मजबूती दें। इस जरूरत में अगर पुराने किसी कानून में कोई संशोधन किया जा रहा है तो उसका विरोध नहीं बल्कि स्वागत किया जाए और देश को समृद्धि की ओर बढ़ने से रोकने का प्रयास नहीं होना चाहिये।
(UPDATED ON 14TH FEB 25)
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