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 -चिकित्सा व शिक्षा क्षेत्र मंे सतत निगरानी और सुधार की जरूरत

लेखक : SHEKHAR KAPOOR


 

 
 भारतीय संविधान में स्पष्ट और प्रभावी रूप से उल्लेख किया गया है कि देश में रहने वाले हर इंसान को शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधा निश्चित रूप से मिलना चाहिये और इसकी जिम्मेदारी केंद्र से लेकर राज्यों की सरकारों की है। केंद्र और राज्यों की सरकारें अपने मातहत सहयोगियों के माध्यम से इस दिशा में कार्यरत हैं लेकिन पिछले एक माह के दौरान मध्यप्रदेश में इन दो सेक्टरों में जब निरीक्षण कर वास्तविकता देखने मंत्री से लेकर जिम्मेदार अधिकारी निकले तो पाया कि संविधान में दी गई इन दो मौलिक जरूरतों की धज्जियां उड़ाने में कुछ कर्मी एक निर्लज्ज भूमिका निभा रहे हैं। इसका परिणाम यह है कि तमाम उपलब्धियों एवं सफलताओं के बावजूद इस तरह के मामले मध्यप्रदेश के नाम को बदनाम कर प्रदेश को प्रगति की वास्तविकता को प्रभावित कर रहे हैं।

अगर पिछले एक पखवाड़े से अधिक समय की मीडिया रिपोर्ट्स को मध्यप्रदेश के संदर्भ में देखा और अवलोकन किया जाए तो यह स्पष्ट होता है कि इन दो क्षेत्रों में सरकारी नौकरी का सर्वाधिक दुरूपयोग उन जिम्मेदारों द्वारा किया जा रहा है जिन्हें शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य के स्तर पर प्रदेश की रीढ़ की हड्डी को मजबूत करने की जिम्मेदारी निचले क्रम पर दी गई है। शिवपुरी से लेकर कोलारस, रीवा से लेकर रतलाम में इव अवधि के दौरान जब सरकारी स्कूलों में अधिकारी निरीक्षण करने पहुंचे तो पाया कि कई स्कूलों में अवकाश ना होते हुए भी ताले लटके हैं। इतना ही नहीं निश्चित शिक्षकों की बजाय कुछ शिक्षक ही स्कूलों में मौजूद थे। इसी प्रकार स्कूल का समय पूरा होने से पहले ही कई शिक्षक अपने हस्ताक्षर कर अपने घरों को जा चुके थे। इसी प्रकार कई शिक्षकांे ने स्वयं सरकार और अधिकारी की भूमिका में आकर दिहाड़ी शिक्षकों को पढ़ाने का ठेका दे रखा था। इसी प्रकार मध्यान्ह भोजन में भी कई सेंटरों में गड़बड़ियां मिलीं। अब आईये बात करते हैं विभिन्न चिकित्सालयों की। मध्यप्रदेश के काबीना मंत्री प्रद्ययुम्मन सिंह तोमर रात के वक्त जब कुछ अस्पतालों का निरीक्षण करने पहुंचे तो सरकारी अस्पतालों में गंदगी, स्टाफ की गैर मौजूदगी, कई कर्मियों का व्यवहार मरीजों के प्रति भावनात्मक ना होना पाया गया।

हमने इन दो सेक्टरों को आज के विषय में इसीलिए उठाया है क्यांेकि शिक्षा एवं चिकित्सा क्षेत्र किसी भी राज्य सरकार की मजबूत जड़ होती है। सरकार चाहती है कि इन दो सेक्टरों में मध्यप्रदेश अव्वल साबित हो और अनुकरणीय भी लेकिन इन दोनों सेक्टरों में चंद सरकारी कर्मियों या उनके मातहतों की निर्लज्ता, निकम्मापन, सरकार से धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार के कारण ही इन दोनों सेक्टरों की उपलब्धियों पर काला धब्बा लग जाता है। कहावत है कि एक मछली भी तालाब को गंदा कर देती है। इसी कहावत के आधार को अगर आधार बनाया जाए तो इस तरह के कर्मचारियों की अकर्मण्यता के कारण ही आम जनता का सरकारी व्यवस्था से विश्वास उठता है और लोग शिक्षा तथा चिकित्सा के लिए निजी सेक्टरों की ओर देखते हैं। हालांकि निजी सेक्टर सिर्फ आर्थिक रूप से मजबूत लोगों के लिए वरदान साबित होते हैं लेकिन आम जनता के लिए सरकारी क्षेत्र ही आशा की किरण दिखाता चला आया है। हमारा मध्यप्रदेश सरकार से यही आग्रह रहेगा कि इन दोनों सेक्टरों में और अधिक मजबूती लाई जाए वहीं सरकारी क्षेत्रों के अन्य जन-विभागों में भी निगरानी और सुधार की आवश्यकता है। सरकारी कर्मियों की मुश्तें अगर ढीली और निकम्मेपन से ग्रस्त हो चुकी हैं तो उनका इलाज करना अत्यंत आवश्यक है।
(UPDATED ON 28TH SEPT 24)