बहुत ही मुश्किल से देश अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ। इस आजादी को प्राप्त करने में हिंदू, सिख बल्कि मुस्लिम क्रांतिकारियों और देशभक्तों का भी योगदान रहा। अगर उस वक्त इन कौम के क्रांतिकारी अंग्रेजी दास्तां से विद्रोह का बिगुल नहीं बजाते तो क्या हिंदुस्तान को आजादी मिल पाती..? हां! यह अवश्य नागवार मसला था जब कुछ कट्टरपंथियों ने आजादी मिलने के वक्त मुसलमानों के नाम पर एक अलग देश की मांग कर दी और पाकिस्तान नामक ’’मुस्लिम देश’’ को जन्म दे दिया जबकि अंग्रेजों के खिलाफ चलते संग्राम में हिंदू और मुस्लिमों के लिए एक ही घर में रोटी बनती थी और सब मिलकर खाते थे। लेकिन वर्तमान में जब देश में हिंदू एवं मुस्लिम विषय., विवाद की ओर तेजी से बढ़ गए हैं तो उनमें एक और विषय शामिल हो गया है और वह है प्रयागराज में वर्ष 2025 में होने वाला कुंभ। कटुता और कट्टरपंथियों की हरकतों से नाराज साधु संत समाज ने इस कंुभ को लेकर मांग कर डाली है कि कुंभ के दौरान गैर हिंदुओं याने मुसलमानों को प्रवेश और कारोबार ना करने दिया जाए। अभी इस विषय पर सरकार, राजनीतिक एवं सामाजिक स्तर पर प्रतिक्रियाएं आतीं., एम.ए.खान नामक एक मुस्लिम स्कॉलर ने हिंदू संतों की मांग का यह कहते हुए समर्थन किया कि मक्का मदीना में जब ’’हज’’ होता है तब सउदी अरब सरकार गैर-मुसलमानों का प्रवेश रोक देती है इसलिए कुंभ में मुसलमानों के कारोबार और प्रवेश ना करने की साधु-संतों की मांग का मैं समर्थन करता हॅू।
हमें आभास है कि केंद्र अथवा राज्य सरकार नकारात्मक कदम नहीं उठाएगी लेकिन एमएम खान द्वारा मक्का मदीना का उदाहरण हिंदुस्तान के लोगों के हिंदू-मुस्लिम के लिए मुश्किलों से भरा हो सकता है। साधु संतों की मांग और एक मुस्लिम स्कॉलर द्वारा मांग का समर्थन करना क्या हिंदू और मुसलमानों के बीच चौड़ी हो रही खाई को और अधिक चौड़ा करने का काम नहीं करेगी..? वर्तमान में ही देश के कई इलाकों को शत-प्रतिशत मुस्लिम आबादी के कारण ’मिनी पाकिस्तान’ कहा जाना इसका एक उदाहरण है। पिछले दिनों उच्चतम न्यायालय ने इस शब्द पर आपत्ति की थी। इसी प्रकार हाल की कांबड़ यात्रा के दौरान उत्तरप्रदेश में होटलों एवं रेस्टारेंटों के संचालकों के नाम सार्वजनिक करने के विषय पर भी उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रहित में निर्णय दिया था।
हम आज इस विषय को नये संदर्भ में देश के हिंदुओं और विशेषकर मुसलमानों के समक्ष नये सिरे से उठा रहे हैं? हमारा कहना यही है कि मुस्लिम धर्म गुरू कट्टरता वाले बयानों एवं रिवायतों को खत्म करने की दिशा में कदम बढ़ायें। हिंदुस्तान में मुस्लिम आबादी को बढ़ाने के क्रम में धर्मांतरण एवं जबरिया निकाह, धर्म छिपाकर हिंदू लड़कियों से विवाह करना, गाय को काटना, गायों की तस्करी और अशिक्षा तथा आबादी बढ़ाने के लिए बच्चे पैदा करने जैसे विषयों पर राष्ट्रहित में उन्हें कदम उठाने होंगे। इस बात को हिंदुस्तान के मुस्लिम कट्टरपंथी क्यों स्वीकार नहीं करना चाहते हैं कि वर्ष 1947 में पाकिस्तान का निर्माण कर तत्कालीन ’’हिंदुस्तान’’ के मुसलमानों के एक बड़े वर्ग ने अपने लिए ’’एक घर ’’अर्थात ’देश’ मांग लिया तो उसके बाद ’’शेष हिंदुस्तान’’ में क्यों उन्होंने कट्टरता को बढ़ावा दिया और जिसका परिणाम यह निकला है कि आज हिंदुस्तान के अंदर ही दो भाई (हिंदू और मुसलमान) आपस में ईर्ष्या, बैर, बैमनस्य, दूरियां और मनभेद बढ़ाते जा रहे हैं?
हमारा स्पष्ट मत है कि महाकुंभ जैसे पर्व की पवित्रता कायम रहनी चाहिये लेकिन वहां पर मुसलमानों के कारोबार करने जैसे विषय पर रोक न्यायसंगत नहीं होगी। हमारा यह भी मत है कि मक्का-मदीना का विषय सउदी अरब सरकार का विषय है ना कि हिंदुस्तान का। हिंदू-मुस्लिम दोनों ही एक-दूसरे के लिए अन्य सभी धर्मों के साथ जरूरी हैं। बस मुद्दा यही है कि कट्टरपंथी विषयों को खत्म करने की दिशा में मुस्लिम आगे बढ़ें तो हिंदू समाज भी उनके इन कदमों का स्वागत करेगा। इस इस दिशा में कदम बढ़ाना जरूरी है। क्योंकि सदियों से हिंदू समाज सहिष्णु है और हिंदू समाज की नजर में मुस्लिमों को अपने तरह से खुदा की इबादत का पूरा हक और अधिकार है।
(updated on 4th november 2024)
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