15 अगस्त 1947 में जब भारत को अंग्रेजों ने आजादी देने का निर्णय लिया तो उन्होंने देश में ’हिंदू और मुस्लिम’ नामक जहर फैला दिया। परिणाम यह रहा कि देश में उस वक्त मोहम्मद अली जिन्ना जैसे कट्टर इस्लामी नेताओं और उनके गुर्गों ने देश का बंटवारा करवा कर पाकिस्तान नामक देश ले लिया। जब पाकिस्तान नामक देश,, धर्म के आधार पर ले ही लिया गया तो इसके बाद यही हक हिंदुओं का हिंदुस्तान में बन जाता था लेकिन उस वक्त के भारतीय नेताओं की मानवीयता, करूणा और मुस्लिम भाईचारे को अहमियत देने का परिणाम यह रहा कि जो लाखों मुस्लिम भारत में रह गए थे उन्हें देश में सुकून के साथ रहने और जीने के लिए धार्मिक अधिकार उस वक्त के नेताओं ने स्वीकार किए। इस वक्त देश में ’’वक्फ’’ नामक कानून को लेकर देश के कट्टर मुसलमान और शांत मुसलमानों को लेकर बहस चल पड़ी है।
हम आज इस विषय को नये संदर्भ ’’वक्फ’’ और उसकी रिपोर्ट के आधार पर उठा रहे हैं। पहला सवाल यह है कि क्या देश के वर्तमान कट्टर मुसलमानों को भारतीय संविधान का सम्मान नहीं करना चाहिये?। वर्ष 1995 के बाद ’’वक्फ’’ के नाम पर जो अधिकार मुसलमानों को देश में मौजूद धार्मिक संपत्ति के नाम पर दिये गए थे और अगर उनका सुधार के नाम पर संशोधन करने का कदम उठाया गया है तो उन्हें क्यों विरोध करना चाहिये?। हर बात को धर्म और मुसलमान से जोड़कर उन्हें विरोध क्यों करना चाहिये?। वह वर्तमान केंद्रीय सरकार के हर उस सुधारवादी कदम का विरोध कर रहे हैं जो कि सुधार की दृष्टि से, समानता की दृष्टि से, साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए और आपसी भाईचारे को बढ़ाने के लिए किया जा रहा है। उदाहरण के लिए ’’वक्फ’’ कमेटी ने संसद में जो रिपोर्ट प्रस्तुत की है उसमें 280 राष्ट्रीय स्मारकों जिनमें कुतुब मीनार, हुमायु का मकबरा, पुराना किला सहित अनगिनत राष्ट्रीय स्मारक शामिल हैं को ’’वक्फ’’ के वकीलों और लीडरान ने ’’वक्फ’’ की संपत्ति में शामिल कर रखा है जो क्या देश के साथ गद्दारी नहीं की गई है ?। सवाल यही है कि अगर इस तरह की अनेकानेक संपत्तियों को ’’वक्फ’’ की संपत्ति घोषित नहीं किया गया होता तो आज यह कानून संसद में क्यों आता और इस कानून की आवश्यकता ही क्यों थीं?। अर्थात जब कोई व्यक्ति या अपराधी अपराध करता है तो उससे निपटने के लिए कानून के अनुसार ही निर्णय लिए जाते हैं। ’’वक्फ’’ की संपत्ति को लेकर भी चूंकि गंभीर शिकायतें थीं इसीलिए इस कानून की आवश्यकता राष्ट्रीय स्तर पर महसूस की गई?। क्या यह सवाल लाजमी नहीं है कि ’’वक्फ’’ को आखिर यह अधिकार निजी स्तर पर कैसे है कि वह किसी भी संपत्ति को अपनी ’’वक्फ’’ की सूची में निजी स्तर पर डाल ले और भारत सरकार को बताए तक नहीं और कुछ वर्षों बाद यह कहे कि अमुक ...अमुक संपत्ति को इतने सालों पहले ही ’’वक्फ’’ की संपत्ति मान लिया गया था। अब तो दावे यह भी किए जा रहे हैं कि देश का लालकिला, ताजमहल, पुराना संसद भवन सहित संपूर्ण लुटियन जोन भी ’’वक्फ’’ की संपत्ति का हिस्सा रहा है।
हम आज इस संदर्भ में वर्ष 1947 में देश में रह गए भारतीय मुसलमानों के वंशजों से आग्रह करेंगे कि वह अपने वंशजों की आत्मा को चोट ना पहुंचाये जिन्होंने उस वक्त मुसलमानों को मुसलमान के नाम पर देश मिलने के बावजूद भारत में भारतीयता के संदर्भ और संस्कृति के तहत रहने को स्वीकार किया था। उन्हें इस देश में पूरे अधिकार रहने के लिए दिये गए थे। आज देश के विकास के लिए जब हर गैर-मुस्लिम भारतीय संस्कृति, रिवायत और कानून तथा संविधान के अनुसार रहना चाहता है तो मुसलमानों को इसमें कोई दिक्कत क्यों?। कट्टरता की अलख जगाए इन लीडरान को समझना होगा कि वर्ष 1947 में जो गलती उस वक्त के मुस्लिम नेताओं ने की थी उस तरह की कोई गलती अब भारत स्वीकार नहीं कर पाएगा। बेहतर यही है कि वर्तमान मुस्लिम आबादी संपूर्ण 150 करोड़ भारतीयों में अपने आप को मानते हुए भारतीय संविधान और संविधान की रवायतों के अनुसार रहने, खाने, आगे बढ़ने और विकास में ही स्वयं को शामिल कर ले और उन लीडरान से बचे जो कि देश को फिर से कट्टरता की ओर ले जाकर मुस्लिम समाज के जीवन स्तर को हानि पहुंचा रहे हैं।
(UPDATED ON 16TH FEB 2025)
------------------
|