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-संपादकीय---भाजपा को ’’सैलाब’’ प्रवेश संभालना होगा



देश में इस वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी का शंखनाद हो रहा है। विदेशों में भी मोदी की लोकप्रियता लगातार बढ़ती जा रही है। क्रिश्चियन ही नहीं बल्कि मुस्लिम देशों में भी मोदी की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है। विकसित और विकासशील देश भी मोदी का लौहा मान रहे हैं। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार भी लगातार बढ़ रहा है। आत्मरक्षा के क्षेत्र में भी चीन और पाकिस्तान सहित विरोधी मुल्कों में भी मोदी का सिक्का चल रहा है। दूसरी ओर हिंदुस्तान के अंदर ही विभिन्न विरोधी पार्टियों के बड़े से लेकर छोटे नेता मोदी के नेतृत्व को स्वीकार करते हुए भाजपा में शामिल हो रहे हैं तो वहीं राज्यों में भी विरोधी दलों की सरकारें मोदी के करिश्मे के चलते भाजपा की सहयोगी सरकारों के रूप में परिवर्तित होती जा रही हैं। कुल मिलाकर हम यह कह सकते हैं कि भाजपा में इस वक्त मोदी का जल्बा है और दूसरी पार्टियों के नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं का सैलाब भाजपाा में शामिल हो रहा है।

यह सत्य है कि भाजपा जैसी पार्टी इस वक्त देश के अधिकांश राज्यों में नेतृत्व कर रही है तो वहीं वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में भी अभी से उसकी प्रचंड जीत की संभावना और आकलन जैसे आंकड़े सामने आने लगे हैं लेकिन इसके साथ ही जो सैलाब दूसरी पार्टियों और कार्यकर्ताओं का आ रहा है उससे भाजपा के अंदर ही भाजपा के तपोनिष्ठ एवं निष्ठावान कार्यकर्ता अपने हितों को लेकर चिंतित भी हैं क्योंकि जो नेता और कार्यकर्ता दूसरी पार्टियों से भाजपा में प्रवेश कर रहे हैं उनकी कुछ शर्तें हैं और हों भी क्यों न क्योंकि वो मोदी तथा भाजपा की हवा भी बना रहे हैं। अर्थात भाजपा की तरफ तीव्र गति से हवाएं बह रही हैं तथा दूसरी पार्टियों के नेता इस हवा में अपने भविष्य को संभालने की जुगत में भाजपा में शामिल हो रहे हैं।

यह सत्य है कि जब तक मोदी भाजपा के प्रमुख नेता हैं तो अधिकांश स्वदेशी आबादी उन्हें ही प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहती है तथा वर्ष 2024 में तो यह मानकर चला जा सकता है कि मोदी ही देश का नेतृत्व पीएम के रूप में पुनः करेंगे लेकिन कहते हैं कि जब सैलाब आता है तो वह ठंडा भी पड़ता है और एक वक्त में जाकर उसकी गति धीमी भी होती है और सैलाब थम भी जाता है। इस दृष्टि से भाजपा के लिए वर्तमान समय में यह जरूरी हो जाता है कि वह वर्तमान को तो संभाले लेकिन भविष्य को किस तरह से संभालेंगी यह प्रश्न भी अब भाजपा के तपोनिष्ठ कार्यकर्ताओं के मन एवं मस्तिष्क में कौंधने लगा है। विभिन्न राजनीतिक पार्टियों से आ रहे नेताओं को जो तवौज्जो भाजपा में मिल रही है उससे पार्टी का ही एक बड़ा वर्ग प्रभावित भी हो रहा है। हालांकि वो शांत हैं लेकिन मन ही मन उसके मन में अपने भविष्य को लेकर प्रश्न उठने लगे हैं। उन्हें यह अहसास है कि जब तक मोदी हैं तब तक भाजपा सफलना के चरम को प्राप्त करती रहेगी लेकिन यह सवाल भी अब उठने लगे हैं कि जब मोदी रिटायर्ड होंगे या उनका तपस्वी मन और शरीर., वैराग्य को धारण करेगा तो उनके बाद कौन ऐसा राजनेता होगा जो भाजपा के नेतृत्व को उसी शैली में संभालेगा जिस तरह से मोदी अपनी पार्टी और देश को संभाल रहे हैं। इस विचार मंथन के पीछे मुख्य कारण यह भी है कि जिस तरह से देश में कांग्रेस और अन्य पार्टियों को मोदी ने आगे बढ़ने से रोका है उसके कारण आंतरिक स्तर पर ही दूसरी पार्टियों के नेता ’हम होंगे कामयाब’ गीत की तर्ज पर आशांवित हैं कि उनके दिन फिर से आएंगे। कांग्रेस के एक नेता तो कह चुके हैं कि बाबरी मस्जिद फिर से तैयार करवाएंगे सत्ता और प्रभाव में आने पर। मुस्लिम नेताओं की एक बड़ी संख्या भी भविष्य के प्रति मोदी-विरोधी सपनों को बुन रही है।

कुल मिलाकर इस संपादकीय का भावार्थ यही है कि हम भविष्य के प्रश्न उठा रहे हैं। हम भाजपा में शामिल हो रहे दूसरी पार्टियों के नेताओं के प्रवेश और कब तक स्वीकार्यता पर भी सवाल उठा रहे हैं। बिहार की राजनीति में जो कुछ हुआ वह भी भाजपा कार्यकर्ताओं के मन-मस्तिष्क में है। भाजपा के प्रति आज निष्ठा रखने वाले ’’सैलाबी नेताओं और कार्यकर्ताओं’’ को अगर एक वक्त के बाद उचित स्थान और सम्मान में कमी महसूस हुई तो क्या वह भाजपा की नाव में छेद करने का काम नहीं करेंगे? अर्थात भाजपा और मोदीजी के लिए यह जरूरी है कि देश में एक ऐसी भी दूसरी पंक्ति शीर्षस्थ स्तर पर दिखाई पड़नी चाहिए जिसे संपूर्ण देश मोदी के बाद स्वीकार करे। अर्थात मोदी के यशस्वी जीवकाल में ही यह कार्य होना जरूरी है क्योंकि बदले की कार्रवाई की जो तैयारियां देश के कुछ लोगों और नेताओं में चल रही हैं वो कहीं फिर से वर्ष 1947 के बाद के भारत की ओर न ले जाएं।
(updated on 8th feb 24)