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-संपादकीय--पंजाब का किसान आंदोलन प्रभावित कर रहा है शेष भारत को

-संपादकीय--पंजाब का किसान आंदोलन प्रभावित कर रहा है शेष भारत को

यह विषय मध्यप्रदेश या देश के किसी राज्य का नहीं है लेकिन परोक्ष और अपरोक्ष रूप से पूरा हिंदुस्तान प्रभावित हो रहा है। कारण है मात्र अर्थात सिर्फ पंजाब के किसानों का अपनी मांगों को लेकर दिल्ली चलो आंदोलन। पंजाब के किसान, जी हां! मात्र पंजाब के किसानों की मांग है कि केंद्र सरकार फसल की ’’एमएसपी’’ तय करे तथा समस्त बैंकों से जो कर्जे उन्होंने लिये हैं उन्हें माफ किया जाए। इसके अलावा और भी कई मांगें हैं लेकिन इन दो मांगों पर अगर सरकार झुक जाती है तो इन किसानों का आंदोलन रूक सकता है। मुख्य बात यह भी है कि पंजाब के इन किसानों को देश के अन्य किसी भी राज्य के किसानों तथा किसान संघों या यूनियनों का समर्थन नहीं है। इन किसानों के दिल्ली पहुंचने की संभावना के चलते केंद्र सरकार ने दिल्ली की सभी सीमाओं जो कि उत्तरप्रदेश, पंजाब और हरियाणा से जुड़ती या लगती हैं पर अवरोध खड़े कर दिये हैं। अर्थात ये किसान संभवतः दिल्ली नहीं पहुंच पाएंगे लेकिन आशंका के मद्देनजर सुरक्षात्मक उपायों का असर कितना दिल्ली और तीन पड़ोसी राज्यों के हजारों कारोबारियों, रोजना दिल्ली जाने वाले लाखों लोगों, स्कूल और कॉलेज जाने वाले विद्यार्थियों पर पड़ा है इसका अंदाजा देश के राज्यों को संभवतः नहीं लग सकता है लेकिन वास्तविकता यह है कि चाहे दक्षिण भारत हो या मध्य भारत अथवा उत्तरी भारत अगर यात्री रेल से या हवाई जहाज से दिल्ली पहुंच रहे हैं तो आप यह मानकर चलिये कि दिल्ली में पहुंचने के बाद आप अपने गंतव्य स्थल जो कि दिल्ली एनसीआर में अगर है तो किसी का पहुंचना हिमालय पर चढ़ने की तरह ही होगा। अर्थात आप अपने गंतत्व स्थल तक पहुंच जाएंगे लेकिन कितने घंटे और रूपये लगेंगे यह बताना मुश्किल है। इसके अलावा मानसिक हालात आपके क्या होंगे इसकी कल्पना की जा सकती है। दूसरी मुख्य बात यह भी है कि दिल्ली के बाहर अर्थात गुड़गांव, गाजियाबाद, ग्रेटर नोएडा,फरीदाबाद और गुड़गांव जैसे दिल्ली के पड़ोसी महानगरों की लाखों की जनसंख्या अपने-अपने क्षेत्रों में कैद होकर रह गई है। इसके अलावा जो नये खुलासे इस आंदोलन से हो रहे हैं वो भी चौंकाने वाले हैं।

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि किसान पूरे देश का अन्नदाता है। यह भी सही है कि किसानों की वाजिब मांगे पूरी होनी चाहिये। लेकिन सवाल यही उठता है कि जब केंद्र सरकार से कोई मांग की जाती है और उसका जो कानून होता है वह पूरे देश पर लागू होता है। पंजाब के आंदोलनकारी किसानों को दक्षिण भारत, मध्यभारत, पूर्वोत्तर भारत था शेष भारत के किसानों की भोगोलिक स्थिति का संभवतः पता नहीं है या फिर पता होते हुए भी वो इस सत्यता को नजरअंदाज कर रहे हैं कि पंजाब को छोड़ शेष भारत के राज्यों में किसानों के अधिकांश मसले उन राज्यों की सरकारों द्वारा हल किए जाते हैं। इसी प्रकार हर राज्य की भोगोलिक स्थिति के अनुसार ही राज्य सरकारें फसलों की एमएसपी तय करने के साथ ही अन्य दिक्कतों को पूरा करने के लिए जिम्मेदार होती हैं।

सर्वज्ञात है कि पंजाब के किसानों को सबसे खुशहाल माना जाता है। पंजाब के हर परिवार का एक न एक सदस्य कमोवेश विदेश में रहता और कारोबार करता है। विदेश में रहने वाले अधिकांश पंजाबी परिवार पंजाब से जुड़े हुए हैं तथा पंजाब की खुशहाली में उनका योगदान है लेकिन इस खुशहाली के बीच ही उनमें कई नकारात्मक विषय भी आए हैं। खालिस्तान की मांग पंजाब से ही आरम्भ होती है और पंजाब में ही दफन हो जाती है। पिछले दो साल पहले जब दिल्ली में किसानों ने प्रदर्शन किया था उस वक्त पंजाब के कई किसान परिवारों की देशविरोधी गतिविधियां सामने आईं थीं। कनाडा जैसे देश में भारत विरोधी गतिविधियां चलाने वाले कई लोगों ने उस वक्त आंदोलनकारी किसानों की आर्थिक मदद विदेश से की थी। यह आंदोलन करीब एक साल तक चला और एक साल तक दिल्ली तथा दिल्ली एनसीआर के लाखों लोग परोक्ष और अपरोक्ष रूप से प्रभावित हुए थे।

केंद्र सरकार पंजाब के किसानों के आंदोलन को किस तरह से हल करती है यह बात चंद घंटों में देश के सामने आ जाएगी लेकिन मुख्य जो तथ्य सामने आ रहे हैं कि आखिर पंजाब के इन किसानों के आंदोलन से शेष भारत के किसानों ने इसलिए अलग कर रखा है क्योंकि शेष भारत के किसानों के मसले पंजाब के किसानों से मेल नहीं खाते हैं। इतना ही नहीं जब पंजाब के किसान आंदोलन पर उतरते हैं तो उसमें अराजक तत्व प्रवेश कर जाते हैं जो कि कनाडा सहित अन्य देशों में बैठकर भारत विरोधी आंदोलन चलाने वाले होते हैं। कूुल मिलाकर शेष भारत के किसानों के समक्ष हम इस विषय को रख रहे हैं और जानना चाहेंगे कि फसल की एमएसपी राष्ट्रीय स्तर पर होनी चाहिये या राज्य स्तर पर? दूसरी मुख्य बात यह भी है कि केंद्र सरकार की किसानों को लेकर अनेकानेक योजनाएं पहले ही से संचालित हैं जिनके माध्यम से संपूर्ण भारत के किसानों को लाभांश या सहायता मिल रही है। इस दृष्टि से इस आंदोलन का विरोध होना जरूरी है जो कि दिल्ली चलो अभियान के माध्यम से उद्योग, कारोबार, शिक्षा तथा अन्य क्षेत्रों को प्रभावित कर रहा है।
(UPDATED ON 15TH FEBRUARY 24)
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