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-संपादकीय---’’किसान तुष्टिकरण यंत्र’’ दे रहा है मौतें


हमारे देश और मध्य प्रदेश में रोजाना दर्जनों ऐसे लोगों की मौतें होती हैं जिनकी गणना तो होती है लेकिन ’’किसान और खेती तुष्टिकरण’’ के नाम पर उन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है। जी हां! ये दुर्घटनाएं किसानों को किसानी कार्य में सुविधा के लिए दिये गए ’’ट्रैक्टर और ट्राली’’ के नाम पर हो रही हैं। मुख्य बात यह भी है कि इस खेती यंत्र के दुरूपयोग के कारण होने वाली मौतों का ना तो किसी को मुआवजा मिलता है और न ही बीमा जैसी रकम। इतना ही नहीं यातायात और पुलिस इस खेती वाले चलित यंत्र से होने वाली दुर्घटनाओं के जिम्मेदार लोगों को मात्र गिरफ्तार करती है तथा इसके बाद यह मामला रफा-दफा हो जाता है। जो लोग इस यंात्रिक दुर्घटना में मारे जाते हैं उनकी मौत पर आंसू बहाने वाले भी कम मिलते हैं और मुख्य बात यह भी है कि देश का बौद्धिक और पढ़ा लिखा वर्ग भी इन दुर्घटनाओं और मौतों को महत्व नहीं देता है।

हम इस विषय को 48 घंटे पहले ही उत्तरप्रदेश के कासगंज इलाके में ट्रैक्टर-ट्राली दुर्घटना के संदर्भ में उदाहरण के रूप में उठा रहे हैं। यह ट्रैक्टर-ट्राली करीब 70 से अधिक लोगों/यात्रियों से भरी थी। सभी गंगा स्नान करने जा रहे थे लेकिन ट्रैक्टर-ट्राली अचानक एक तालाब में गिर पड़ी और करीब 25 लोगों की मौत पानी में गिरने, दमघुटने और घायल होने से हो गई। इसके अलावा दर्जनों लोग अभी अस्पताल में जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष कर रहे हैं। अधिकांश हताहत हुए लोगों में महिलाएं और बच्चे सर्वाधिक हैं। इस दुर्घटना के साथ ही पिछले साल की एक रिपोर्ट का भी हम हवाला दे रहे हैं जिसमें कहा गया है कि पिछले साल ट्रैक्टर-ट्राली से होने वाली दुर्घटना के कारण पूरे देश में 3899 लोगों की मौत हो गई।

हम पूरी जिम्मेदारी के साथ इस विषय को उठाते हुए यह कहना चाहते हैं कि मौतों का यह सिलसिला लापरवाही, नजरअंदाजी तथा किसानों को तुष्टिकरण के नाम पर चल रहा है। देश के किसी भी ग्रामीण अंचल अथवा शहर में प्रतिदिन ट्रैक्टर-ट्रालियों में लदे दर्जनों पुरूषों, महिलाओं और बच्चों को परिवहन करते लाते-लेजाते अथवा कसाई की तरह जानवरों को जिस तरह से ढोया जाता है इन लोगों को ढोने के नजारे को देखते हैं। मार्के की बात यह भी है कि इन लोगों को ढोने, लादने का काम निर्माण कार्यों, ग्रामीण क्षेत्रों में वैवाहिक, राजनीतिक रैलियों तथा धार्मिक आयोजनों में सर्वाधिक होता है। आरटीओ, पुलिस और प्रशासन तंत्र की नजरों के सामने से जब ये कृषि यंत्र ट्राली में लोगों को लादकर निकलता है तो ये जिम्मेदार पक्ष आंखें बंद कर लेते हैं अथवा नजरअंदाज कर देते हैं। मुख्य बात यह भी है कि इन ट्रैक्टर-ट्राली को चला रहे चालक के पास अधिकांशतः वाहन चलाने तक का लाइसेंस ही नहीं होता है। इतना ही नहीं वाहन चलाने वालों में अधिकांशतः 8-10 साल के बच्चे भी होते हैं। इसके अलावा जब ये ट्रैक्टर-ट्रालियां लोगों को लेकर चलती हैं तो अधिकांश के अगले हिस्से में तेज आवाज में रेडियो बज रहा होता है। इसी प्रकार ट्रैक्टर-ट्रालियां चला रहे चालक 99.99 प्रतिशत यातायात नियमों का पालन नहीं करते हैं। अपनी सुविधा अनुसार गलत दिशा में भी चलाते देखे जा सकते हैं। इतना ही नहीं जब ये सड़कों पर चलते हैं तो यातायात को भी प्रभावित करते हैं।

हम चाहते हैं कि मध्यप्रदेश ही नहीं देश के किसी भी हिस्से में ट्रैक्टर-ट्राली के कारण कोई दुर्घटना नहीं होनी चाहिए। कम से कम मध्यप्रदेश सरकार से हम आग्रह करते हैं कि इस दिशा में वो तुरंत कदम उठाए। ट्रैक्टर-ट्राली का उपयोग तो कृषि एवं उससे सम्बंधित कार्यों के लिए ही कानूनन किया गया है और इसमें कोई रूकावट भी नहीं है लेकिन जिन लोगों के पास कृषि एवं किसानी के नाम पर ट्रैक्टर हैं उन पर निगरानी रखने के साथ ही कड़े कदम उठाने की भी जरूरत है। किसानी के नाम पर ट्रैक्टर-ट्रालियों के माध्यम से मौतों के सिलसिले को रोका जाना जरूरी है और यह काम सरकार तथा प्रशासन तंत्र ही कर सकता है।
(updated on 24th feb 24)