###---SC Permits ECI To Proceed With SIR In Bihar ###---NITI Aayog Launches Roadmap For Empowering States Through Science ###---Amit Shah Reiterates Commitment To Make Country Naxal-Free By 31st March Next Year ###---Mandaviya Urges Citizens To Keep Momentum For Cycling Drive On Sundays ###---IBC Celebrates Dhammachakra Pravartana Divas ###---Union Agriculture Minister Chouhan holds review meeting on drought-affected districts of Andhra Pradesh ###---A society that lacks reverence for its gurus cannot progress – Dr. Sachchidanand Joshi ###---Union Minister Rajiv Ranjan launches 17 New Fisheries Clusters ###---Centre Approves Financial Assistance Of Over 1066 Cr To Six Disaster-Hit States ###---Indian Railways Give 9,000 Jobs In Q1; Plans 50,000 For FY 2025-26 ###---Railways Sign MoU To Install AI Based Inspection Systems To Ensure Safety ###---MEITY Signs MoU With BITS-Pilani To Launch Cybersecurity Program ###---Bihar SIR: 66.16 % Enumeration Forms Collected; 15more days left
Home | Latest Articles | Latest Interviews | About Us | Our Group | Contact Us

 -राष्ट्रोन्नति के लिए सक्षम व्यक्ति को मुफ़्त की योजनाओं से बचना जरूरी

लेखक : SHEKHAR KAPOOR


 
 अगर कोई सक्षम व्यक्ति 80 करोड़ गरीबों के बीच में मुफ़्त का सरकारी राशन ले रहा हो तो क्या वह सीना तानकर कह सकता है कि हॉ! मैं सक्षम और संपन्न हॅू तथा गरीबों का राशन मुझे भी मिल रहा है?। इसी प्रकार अगर किसी घर में संपन्नता है और उस परिवार के मेधावी विद्यार्थी को सरकार की ओर से दो पहिया वाहन निःशुल्क रूप से दिया जाता है तो क्या उसे यह उपहार लेना चाहिये?। इसी प्रकार दिल्ली में पिछले 10 साल के दौरान शत-प्रतिशत आबादी जिनमें 70 प्रतिशत आबादी भले ही संपन्न नहीं हो लेकिन वह बिजली और पानी का खर्च वहन कर सकती थी लेकिन उसने भी इस सुविधा का भरपूर लाभ उठाया। खर्चा उठाने की क्षमता के बावजूद क्या दिल्ली के इन आदरणीय मतदाताओं या जनता ने अपनी आत्मा से गद्दारी नहीं की?। इसी प्रकार संपन्न परिवारों की मॉ और बहनों द्वारा जरूरत ना होते हुए भी विभिन्न राज्यों की सरकारों के उपहार वाली नगदी एवं अन्य योजनाओं का लाभ क्या लेना चाहिये था?।

हम आज इस विषय को लोकतांत्रिक संदर्भ में इसलिए उठा रहे हैं क्योंकि एक तरफ हमारा देश प्रगति की ओर तेजी से बढ़ रहा है लेकिन हम देख रहे हैं कि केंद्र से लेकर राज्य सरकारें देश में आयकरदाताओं की संख्या में इजाफा नहीं कर पा रही है। 140 करोड़ की आबादी में मात्र आठ करोड़ लोग ही आयकर देते हैं। अर्थात जो लोग आयकर देते हैं क्या उनसे सरकार का खजाना भर जाता है?। सवाल यह भी उठता है कि आखिर परोक्ष व्यक्तिगत टैक्स के माध्यम से सरकार को जो धनराशि प्राप्त होती है उससे क्या वह उन जन सामुदायिक योजनाओं का संचालन कर पाती है जो कि हर व्यक्ति के जीवन में सरकार और जनता के बीच की जिम्मेदारी है?। उत्तर यही होगा कि नहीं। इसका कारण मुख्य रूप से आर्थिक कारण यह है कि हमारे देश की सरकारों ने व्यक्तिगत स्तर पर नागरिकों को जिम्मेदार और आयकर दाता बनाने की कोशिश ही नहीं की। जो लोग आयकर देने की श्रेणी में प्रवेश भी कर गए हैं उनमें से 90 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो कि सरकार को टैक्स देना ही नहीं चाहते हैं। इस सच्चाई का पता बैंकिंग सेक्टर से जुड़े चुके विभिन्न प्रकार के लेन-देन वाले एप की जांच कर किया जा सकता है। इसमें केंद्र सरकार को लाखों ऐसे नये भावी आयकरदाता मिल जाएंगे जो आयकर सीमा के बावजूद कहीं अधिक की आय प्राप्त कर रहे हैं लेकिन टैक्स दाताओं की श्रेणी में नहीं आना चाहते हैं। याने वह बिजली, पानी, स्वास्थ्य, सरकारी स्कूल, सड़कें, पर्यावरण, प्रदूषण सहित विभिन्न स्तरों पर सरकार से उसकी जिम्मेदारी की बात जरूर करते हैं लेकिन अपने कर्तव्य को निभाना नहीं चाहते। इसी प्रकार सरकार नागरिकों से 10 कदम आगे की सोंच कर चलती है। वह हर उपभोक्ता सामग्री जो कि डीजल और पेट्रोल से आरम्भ होकर सब्जी, दाल, आटा सहित जीवन से जुड़ी जरूरते हैं उन पर वो टैक्स लगा देती हैं जिसकी एबीसीडी की जानकारी अधिकांश देशवासियों को नहीं है।

हमारा उनदेशवासियों से आग्रह है कि उसे सरकार की उस मदद को कतई भी लेना नहीं चाहिये जो कि गरीबों ओर वंचितों के लिए है। इस प्रकार की मदद अगर कोई संपन्न व्यक्ति लेता भी है तो वह अपनी आत्मा को तो चोंट पहुचा ही रहे हैं साथ ही अपने स्तर पर, परिवार स्तर पर, बच्चों के स्तर पर नैतिक मूल्यों का पतन करने के भागीदार बन रहे हैं। जब नैतिक मूल्यों का पतन होता है तो उसका असर परिवार, समाज और देश पर पड़ता है। 75 सालों में भारत इसीलिए संपन्न और आत्मनिर्भर नहीं हो पाया क्योंकि हमने मुफ्त की और अनावश्यक योजनाओं या जरूरतों को ना चाहते हुए भी उपभोग करने की आदत डाल ली। यह वास्तविकता है कि भले ही देश अभी पूरी तरह से आत्मनिर्भर नहीं हुआ है लेकिन उस प्रक्रिया के दौर से गुजर रहा है। सरकार गरीबों और वांछित लोगों के लिए विभिन्न योजनाएं अवश्य लांच करें लेकिन संपन्न और संपन्न हो चुके समाजों और व्यक्तियों से नैतिक आधार पर राष्ट्रहित में उन सुविधाओं और लाभांश को लेने से इंकार करने का आह्वान करे जो अब उनके लिए जरूरी नहीं हैं बल्कि उन लोगों को ये सुविधाएं मिलनी चाहियें जिन्हें कहीं ज्यादा जरूरत है।
(UPDATED ON 10TH FEBRUARY 25)
--------------