देश में तेजी के साथ साम्प्रदायिक एवं बलात्कार जैसे मामलों में तेजी आती जा रही है। शायद ही कोई ऐसा दिन बीतता होगा जब इन दो विषयों से सम्बंधित वारदातें न घटती हों। साम्प्रदायिक स्तर पर गौ-वंश को लेकर तकरार, मारापीटी एवं हत्या, महिलाओं एवं युवतियों के इस्लाम धर्म में परिवर्तन के अलावा बलात्कार जैसे मामलों में लगातार वृद्धि इस बात का परिचायक है कि अब भारत में इन दो विषयों पर व्यापक दृष्टि से विचार करने एवं निर्णय लेने की आवश्यकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र ने 31 अगस्त को ही न्याय जगत के एक कार्यक्रम में कहा कि बलात्कार जैसे विषयों से निपटने के लिए वर्तमान कानून पर्याप्त हैं। बस माद्दे की बात यही है कि न्याय जगत को इस दिशा में निर्णय लेने में विलम्ब नहीं करना चाहिये।
हम यह महसूस करते हैं कि आखिर न्याय और सरकार के स्तर से अलग हटकर इस विषय पर सोंचने और विचार करने की जरूरत तथा केंद्र से लेकर राज्य सरकारों को इस तथ्य के लिए जागृत करने की जरूरत इस वक्त सबसे अधिक है। आखिर इस तरह के मामलों को बढ़ते देख हिंदू और मुस्लिम समुदाय के शीर्षस्थ धर्म नेताओं को कई विषयों पर विचार कर सरकार के समक्ष उन तथ्यों को रखने की जरूरत है जिनके कारण इस तरह के मामलों में वृद्धि हो रही है।
उदाहरण के लिए हमारे देश में सबसे ज्यादा फिल्मों का निर्माण हिंसात्मक और सैक्सी विषयों को लेकर हो रहा है। इन दोनों विषयों पर समग्र हिंदू एवं मुस्लिम समुदाय के शीर्षस्थ धर्मगुरूओं ने बैठकर विचार करने का काम अभी तक नहीं किया है। फिल्मों में जिस तरह से हिंसा एवं सैक्सी विषयों को परोसा जाता है उसके कारण युवा वर्ग पर उसका व्यापक असर पड़ रहा है। मनोरंजन के नाम पर हिंसा और सैक्स को दिखाना क्या देश की आबादी के लिए जरूरी है? क्या इस विषय पर हमारे धर्मगुरूओं ने विचार किया कि इन दोनों विषयों पर आधारित फिल्मों के कारण समाज पर कितना नकारात्मक असर पड़ रहा है? और क्यों ना सरकार को इस दिशा में कड़े और प्रतिबंधात्मक कदम उठाने को मजबूर किया जाए? इसी प्रकार साम्प्रदायिक विषयों पर क्यों ना अब मुस्लिम समाज गाय काटने एवं उसके मांस के प्रयोग पर अपने धर्म के उन लोगों पर कार्रवाई की मांग करे जो कि हिंदू आबादी के धर्म एवं आस्था से जुड़े इस विषय पर लगातार चोट कर एक तरफ इस्लाम धर्म को नकारात्मक रूप देने का काम करते हुए कटुता फैला रहे हैं तो साथ ही मुस्लिम आबादी को देश में शांति से रहने एवं विकास करने में बाधा बन रहे हैं? सवाल यह भी है कि मुस्लिम आबादी इस तरह के मामलों को अपने पर हमले का आरोप क्यों लगाती है बल्कि उसे तो इस दिशा में साम्प्रदायिक सौहार्द का परिचय देते हुए गाय काटने वाले तत्वों पर कठोर कदम उठाने की बात करना चाहिये वहीं धर्म परिवर्तन एवं बलात्कार जैसे मामलों में कानूनी प्रक्रिया को और सख्त करने की बात करनी चाहिये।
हमने बहुत संक्षेप में इन दो विषयों को देश के समक्ष रखा है। अब सरकार ही नहीं बल्कि हिंदू एवं मुस्लिम धर्म के लोगों को मिलकर इस दिशा में सबसे पहले अपने ठोस निर्णय लेने होंगे। वरना साम्प्रदायिकता एवं बलात्कार जैसे विषयों में कमी नहीं आ पाएगी और इसका सर्वाधिक नुकसान दोनों ही धर्म के लोगों को होगा। देश और समाज हित में इन दो विषयों पर धर्मगुरूओं को कदम उठाने ही होंगे जो कि करोड़ों लोगों की आबादी का प्रतिनिधित्व करते चले आ रहे हैं।(updated pon 1st september2024)
============
|