उद्योग क्षेत्र में झंडे गाड़ना जरूरी पर शिक्षा क्षेत्र की मजबूती ज्यादा जरूरी
भारतीय संविधान में स्पष्ट और प्रभावी रूप से उल्लेख किया गया है कि देश में रहने वाले हर इंसान को शिक्ष सुविधा निश्चित रूप से मिलना चाहिये और इसकी जिम्मेदारी केंद्र से लेकर राज्यों की सरकारों की है। केंद्र और राज्यों की सरकारें अपने मातहत सहयोगियों के माध्यम से इस दिशा में कार्यरत हैं लेकिन पिछले कुछ माह के दौरान मध्यप्रदेश में इन इस सेक्टर में जब निरीक्षण कर वास्तविकता देखने मंत्री से लेकर जिम्मेदार अधिकारी निकले तो पाया कि संविधान में दी गई इस आवश्यक की धज्जियां उड़ाने में कुछ कर्मी एक निर्लज्ज भूमिका निभा रहे हैं। इसका परिणाम यह है कि तमाम उपलब्धियों एवं सफलताओं के बावजूद इस तरह के मामले मध्यप्रदेश के नाम को बदनाम कर प्रदेश को प्रगति की वास्तविकता को प्रभावित कर रहे हैं। मध्यप्रदेश में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बिजनेस कांक्लेव फरवरी माह में होने जा रहा है जिसमें उद्योगजगत इस बात पर विशेष जोर देगा कि उसे उद्योग के क्षेत्र में शिक्षित मगर दक्ष बेरोजगारों की जरूरत होगी। सवाल यही उभर रहा है कि जब आरंभिक स्तर पर शिक्षा की प्राप्ति में ही नकारात्मकता होगी तो युवक कैसे शिक्षित और दक्ष बनेंगे और कैसे उद्योग जगत की आशाओं को पूरा कर पाएंगे?।
अगर पिछले दिनों की मीडिया रिपोर्ट्स को मध्यप्रदेश के संदर्भ में देखा और अवलोकन किया जाए तो यह स्पष्ट होता है कि इन क्षेत्रों में सरकारी नौकरी का सर्वाधिक दुरूपयोग उन जिम्मेदारों द्वारा किया जा रहा है जिन्हें शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य के स्तर पर प्रदेश की रीढ़ की हड्डी को मजबूत करने की जिम्मेदारी निचले क्रम पर दी गई है। शिवपुरी से लेकर कोलारस, रीवा से लेकर रतलाम में इव अवधि के दौरान जब सरकारी स्कूलों में अधिकारी निरीक्षण करने पहुंचे तो पाया कि कई स्कूलों में अवकाश ना होते हुए भी ताले लटके हैं। इतना ही नहीं निश्चित शिक्षकों की बजाय कुछ शिक्षक ही स्कूलों में मौजूद थे। इसी प्रकार स्कूल का समय पूरा होने से पहले ही कई शिक्षक अपने हस्ताक्षर कर अपने घरों को जा चुके थे। इसी प्रकार कई शिक्षकांे ने स्वयं सरकार और अधिकारी की भूमिका में आकर दिहाड़ी शिक्षकों को पढ़ाने का ठेका दे रखा था। इसी प्रकार मध्यान्ह भोजन में भी कई सेंटरों में गड़बड़ियां मिलीं।
हमने इस सेक्टर को आज के संदर्भ में इसीलिए उठाया है क्यांेकि शिक्षा किसी भी राज्य सरकार की मजबूत जड़ होती है। सरकार चाहती है कि इस सेक्टर में मध्यप्रदेश अव्वल साबित हो और अनुकरणीय भी लेकिन चंद सरकारी कर्मियों या उनके मातहतों की निर्लज्ता, निकम्मापन, सरकार से धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार के कारण शिक्षा क्षेत्र की उपलब्धियों पर काला धब्बा लग जाता है। कहावत है कि एक मछली भी तालाब को गंदा कर देती है। इसी कहावत के आधार को अगर आधार बनाया जाए तो इस तरह के कर्मचारियों की अकर्मण्यता के कारण ही आम जनता का सरकारी व्यवस्था से विश्वास उठता है और लोग शिक्षा के लिए निजी सेक्टरों की ओर देखते हैं। हालांकि निजी सेक्टर सिर्फ आर्थिक रूप से मजबूत लोगों के लिए वरदान साबित होते हैं लेकिन आम जनता के लिए सरकारी क्षेत्र ही आशा की किरण दिखाता चला आया है। हमारा मध्यप्रदेश सरकार से यही आग्रह रहेगा कि शिक्षा स्तर पर और अधिक मजबूती लाई जाए वहीं सरकारी क्षेत्रों के अन्य जन-विभागों में भी निगरानी और सुधार की आवश्यकता है। सरकारी कर्मियों की मुश्तें अगर ढीली और निकम्मेपन से ग्रस्त हो चुकी हैं तो उनका इलाज करना अत्यंत आवश्यक है। वास्तविकता अब यही है कि अगर मध्यप्रदेश को उद्योग के क्षेत्र में आगे बढ़ाया जाना है तो हमें आज और तुरंत बेहतर आरंभिक और कालेज शिक्षा पर जोर देना होगा। बिना मजबूत शिक्षा के हमारे प्रदेश के बेरोजगारों को बेहतर रोजगार मिल जाए इस बात की कल्पना भी मत कीजिए। जिन बच्चों की शिक्षा बेहतर नहीं होती है उन्हें किस तरह की नौकरी मिलती है और किस तरह के हालात से गुजरना पड़ता है इसके हजारों उदाहरण पहले भी रहे है और वर्तमान में भी हैं। हम प्रदेश सरकार से यही आग्रह करंेगे कि अगर उन्होंने रोजगार के लिए उद्योग को प्राथमिकता दी है तो शिक्षा क्षेत्र को भी कहीं अधिक प्राथमिकता की सूची में रखना होगा। शिक्षा के माध्यम से ही कोई भी क्षेत्र फलफूल सकता है।
(UPDATED ON 13TH FEBRUARY 2025)
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