वैश्विक संस्थानों में सुधार की आवश्यकता पर ध्यान दे यूएन--मोदी //////ड्रोन आधुनिक प्रौद्योगिकी की जरूरतों को पूरा कर सकती है- डॉ. अभिलक्ष ////भारत में हर साल लगभग 13 लाख लोग तंबाकू सेवन से अपनी जान गंवा देते हैं-जाधव ///सक्षम ने मनाया महामुनि अष्टावक्र जयंती समारोह ////किसान और किसान संगठनों से संवाद की आजशुरुआत की शिवराज सिंह चौहान ने ////-सीएम की ’’कुर्सी’’ के बगल में सीएम की ’’दूसरी कुर्सी’’ संवैधानिक प्रश्न है/////सीएजी कार्यालय संविधान निर्माताओं की अपेक्षाओं पर खरा उतरा-राष्ट्रपति////देश में ट्रेन हादसों को रोकने ने लिए रेलवे ने पहली बार गठित किया रेल रक्षक दल///पीयूष गोयल ने ऑस्ट्रेलिया यात्रा के पहले दिन हितधारकों के साथ कई बैठक की//// राजनाथ सिंह ने तटरक्षक कमांडरों के 41वें सम्‍मेलन का किया शुभारंभ///// Annpurna Devi advocates for Nutritional Excellence at 'Kuposhan Mukt Jharkhand' event///
Home | Latest Articles | Latest Interviews |  Past Days News  | About Us | Our Group | Contact Us

 -सीएम की ’’कुर्सी’’ के बगल में सीएम
की ’’दूसरी कुर्सी’’ संवैधानिक प्रश्न है

लेखक : SHEKHAR KAPOOR


 

 
 राजनीतिक मतभेद को लेकर देश में नये-नये राजनीतिक प्रयोग की शुरूआत इस वक्त हम देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत देख रहे हैं। इस शुरूआत को करने वाली अगर कोई राजनीतिक दल है तो वह है अरविंद केजरीवाल की ’आम आदमी पार्टी’। जब केजरीवाल को केंद्रीय जांच एजेंसियों ने शराब घोटाले में गिरफ्तार किया तो संपूर्ण देश को उम्मीद थी कि नैतिकता और संवैधानिक मर्यादा को ध्यान में रखते हुए वह मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देंगे जैसा कि अमूमन देश में पहले से होता रहा है। देश में लोकसभा सदस्य, विधायक और लोकतांत्रिक प्रक्रिया से चुने गए राजनेता जब भी किसी आरोप में गिरफ्तार होते रहे हैं तब-तब उन्हें अपने-अपने पदों से इस्तीफे की जरूरत इसलिए नहीं पड़ती क्योंकि चुनाव आयोग का प्रमाणपत्र उन्हें सदन में प्रवेश करने की अनुमति देता रहा है। इसीलिए आज भी लोकसभा से लेकर विधानसभाओं में दर्जनों ऐसे राजनेता हैं जो विभिन्न मामलों में समय-समय पर गिरफ्तार हुए तथा जमानत के बाद लोकतांत्रिक सदनों में बैठते आ रहे हैं और यही कारण है कि इन माननीय सांसदांे और विधायकों का अनुसरण करते हुए अपराधी भी लोकतंत्र के मंदिरों में पहुंच रहे हैं। लेकिन संभवतः देश में यह पहली बार ऐसा हुआ कि दिल्ली की मुख्यमंत्री पद की संवैधानिक शपथ लेने के बाद आतिशी मारलेना सिंह ने उस कुर्सी पर बैठने से इंकार कर दिया जिस पर कोई मुख्यमंत्री बैठ कर संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन करता रहा है। हां! उन्होंने मुख्यमंत्री का दायित्व निभाने के लिए अलग से एक कुर्सी मुख्यमंत्री की कुर्सी के बगल में रखवा दी और कहा कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने का हक अरविंद केजरीवाल का है और यह कुर्सी खाली रहेगी।

हम स्पष्ट कर दें कि एक निश्चित जगह पर रखी गई एक कुर्सी ’’एक पद’’ का बोध कराती है। प्रधानमंत्री कार्यालय में पीएम की ’’एक कुर्सी’’ यह संदेश देती है कि जिस निश्चित जगह पर एक कुर्सी रखी गई है वह ’’पीएम की कुर्सी’’ है। अर्थात उस कुर्सी पर कोई अन्य नहीं बैठ सकता क्यांेकि उस कुर्सी में संविधान की आत्मा निवास करती है। अगर इसी क्रम में एक निश्चित स्थान पर किसी मुख्यमंत्री की कुर्सी रखी है और वह खाली है और उसी कुर्सी के बगल में दूसरी कुर्सी रखकर कोई मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी निभाने की बात करता है तो इसका भावार्थ यही है कि वह ’कार्यवाहक मुख्यमंत्री’’ है। पुरातनकाल और राजा-महाराजाओं के शासनकाल में ऐसा होता रहा है लेकिन तब भी ’’सम्राट की कुर्सी’’ के बगल में दूसरी कुर्सी नहीं रखी जाती थी। भले ही कुर्सी खाली रहती थी लेकिन ’’सम्राट की कुर्सी’’ के नाम से उस कुर्सी को जाना जाता था। हां! जिसे सम्राट की अनुपस्थिति में शासन करने के अधिकार मिलते थे वह एक कार्यवाहक सम्राट कहलाता था और उसकी कुर्सी अन्यत्र रखी जाती थी।

भाजपा से लेकर अन्य राजनीतिक दलों और कानून के जानकारों ने दिल्ली में मुख्यमंत्री की निश्चित जगह पर रखी गई कुर्सी के बगल में रखी गई दूसरी कुर्सी को लेकर अभी तक संवैधानिक प्रश्न नहीं उठाए हैं लेकिन यह सवाल जरूर उठ खड़ा हुआ है कि एक व्यक्ति मुख्यमंत्री की शपथ लेने के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अगर नहीं बैठता है और उस कुर्सी को खाली रखता है तो वह ’मुख्यमंत्री है या कार्यवाहक मुख्यमंत्री?’’ इस विषय पर अब बहस होनी ही चाहिये और संवैधानिक रूलिंग भी इस विषय पर जरूरी है। ध्यान रहे कि आतिशी सिंह ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है ना कि कार्यवाहक मुख्यमंत्री पद की। सवाल यही है कि वह मुख्यमंत्री हैं या कार्यवाहक मुख्यमंत्री...?
(updated on 24th septmber 24)