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 -विकास की दिशा में जातिगत दबंगई खत्म करना आवश्यक

लेखक : SHEKHAR KAPOOR


 

 
 आज से 195 साल पहले देश में सती प्रथा जैसी परम्परा को समाप्त करने की मुहिम तत्कालीन समाज सुधारक राजा राम मोहन राय ने आरम्भ की थी और उसके बाद अंग्रेज गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बेंटिन्सक ने इसमें सहयोग दिया। परिणाम यह रहा कि वर्ष 1829 में सती प्रथा को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर अपराध की श्रेणी में डाल दिया गया। हालांकि इस प्रतिबंध के बावजूद समय-समय पर सती प्रथा की घटनाएं सामने आती रहीं लेकिन आज करीब 195 साल बाद हम कह सकते हैं कि देश में सती प्रथा समाप्त हो चुकी है। अब विधवा महिलाएं पुर्न-विवाह कर सकती हैं, अब विधवा महिलाएं अपने जीवन को नये सिरे से आरम्भ कर सकती हैं। इतना ही नहीं अब महिलाएं विवाह के पूर्व और पश्चात अपने जीवन के बारे में निर्णय लेने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र हैं। हां! इतना अवश्य है कि पुरूष प्रधान परिवार की परम्परा आज भी हमारे समाज में है जो कि वक्त और परिस्थिति के अनुसार सही है लेकिन हमारे ही समाज में आज भी जातिगत दबंगई की घटनाएं और वारदातें अक्सर सुनाई और दिखायी पड़ती रहती हैं। इसका ताजा उदाहरण है देश के बिहार राज्य के नवादा जिले में दो दिन पहले जातिगत दबंगई के कारण 100 से अधिक दलित परिवारों के मकानों में आग लगा दी गई। इतना ही नहीं देश के कई राज्यों में अभी भी ’ठकुराई’ राजनीति चल रही है और इसके परिणाम स्वरूप अक्सर दलित परिवारों को नीचा दिखाने की कोशिश की जाती है। कई राज्यों के गांवों में दलित की बारात को रोककर घोड़ी से इसलिए उतार दिया जाता है क्योंकि इस समुदाय के कुछ लोगों की नजर में विवाह के मौके पर घोड़ी चढ़ने का अधिकार दलित को नहीं है। हालांकि यह भी सत्य है कि भारतीय न्यायिक दंड सहिता के तहत दलितों के साथ किसी भी तरह भेदभाव अपराध की श्रेणी में आता है।

हम इस विषय को आज इसलिए उठा रहे हैं क्योंकि वर्तमान केंद्रीय सरकार देश में जाति और साम्प्रदायिक विषयों को खत्म करने की दिशा में प्रयासरत है। वर्तमान केंद्र सरकार महिलाओं को हर क्षेत्र में प्रोत्साहन दे रही है तो वहीं मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को भी भारतीय कानून के तहत लाया गया है जिससे कि मुस्लिम महिलाएं भी अपने जीवन को सुधार सकें। दूसरी ओर हम देख रहे हैं कि हिंदू समुदाय के बीच ही ग्रामीण स्तर पर आज भी जातिगत राजनीति को भले ही प्रोत्साहन नहीं दिया जाता हो लेकिन जातिगत राजनीति के कारण ही ग्रामीण क्षेत्रों में अक्सर संघर्ष की घटनाएं सामने आती हैं। बिहार जैसे राज्य के विकास के क्रम में भले ही कितने दांवे किए जाएं लेकिन इस राज्य में जातिगत राजनीति इतनी अधिक हावी हो चुकी है कि अक्सर इस राज्य से जातिगत दबंगई की खबरें आती रहती हैं। इसका मतलब यही है कि इस राज्य में धन और बाहुबल इतना अधिक प्रभावी है कि उसके आगे राज्य और केंद्र सरकार के सारे संवैधानिक प्रयास असफल साबित हो रहे हैं।

नवादा की इस घटना की लपटें कहीं इसी राज्य या अन्य राज्यों के कुछ जिलों को अपनी लपेट में ना ले लें इस दिशा में भारत सरकार के साथ ही राज्य सरकार को भी सचेत रहना होगा। भारतीय जनता पार्टी को भी दलगत और दबंगई वाली राजनीति से स्वयं को दूर रखने की दिशा में कोशिश करनी होगी। इस पार्टी को भारतीय जनमानस की उस भावना को समझना होगा जिसमें भारतीय मतदाताओं ने इस पार्टी को देश में क्रांतिकारी परिवर्तन तथा समाज सुधार के लिए ही सत्ता के शिखर तक पहुंचाया है।
(updated on 20th Sept 24)
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