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-संपादकीय--धार्मिक स्थल पर्यटन स्थल नहीं हैं

-संपादकीय--धार्मिक स्थल पर्यटन स्थल नहीं हैं


हालांकि निर्णय मद्रास उच्च न्यायालय का है लेकिन कानूनी किताबों में यह दर्ज हो गया है और जब भी धार्मिक स्थलों को लेकर निर्णय दिये जाएंगे तो मद्रास उच्च न्यायालय का यह निर्णय एक नजीर बनेगा। मद्रास उच्च न्यायालय में जनवरी 2024 के अंतिम सप्ताह में दिये गए निर्णय में कहा गया है कि कोई भी धार्मिक स्थल/मंदिर., पर्यटन स्थल नहीं हो सकता। अगर कोई गैर हिंदू मंदिरों में प्रवेश करता है तो उसे एक अंडरटोैकिंग देनी होगी कि वह सम्बंधित मंदिर या धर्म के प्रति अपना सम्मान व्यक्त करता है।

हम इस संपादकीय के माध्यम से धार्मिक स्थलों विशेषकर हिंदू देवी देवताओं के स्थल अर्थात मंदिरों के बारे में बात कर रहे हैं जिन्हें राज्य सरकारें पर्यटन की श्रेणी में शामिल करते हैं या करते रहे हैं या फिर कर रहे हैं। कोई भी पर्यटन स्थल कई चीजों के लिए जाना जाता है। जैसे भ्रमण करना, रातें बिताना और विवाह के बाद का भ्रमण। जब कोई जोड़ा या इंसान या टोलियां किसी पर्यटन स्थल पर जाती हैं तो उनके मन-मस्तिष्क तथा शरीर में जो क्रियायें होती हैं वो धार्मिक नहीं होती हैं बल्कि उनमें आमोद-प्रमोद, मद्यपान तथा जीवन के मजे लेने जैसे कई विषय होते हैं। इस दौरान उनका खानपान भी एक पर्यटक के रूप में ही होता है। पर्यटन स्थलों पर जाते वक्त लोगों की भावनाएं भी कतई धार्मिक नहीं होती हैं।

एक लम्बे वक्त से देखा जा रहा है कि प्रकृति से भरपूर कई स्थलों को पर्यटन के रूप में विकसित किया जा रहा है। विभिन्न राज्य सरकारों के उद्देश्य पर्यटन को बढ़ावा देने के रहे हैं जिससे कि वहां के स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिल सके तथा राज्य सरकार के खजाने में भी वृद्धि हो । यह अच्छी बात है कि पर्यटन को राज्य सरकारों को प्रोत्साहन देना चाहिए जिससे कि कुछ वक्त के लिए इंसान अपने परिवार के साथ प्रकृति और पर्यटन का आनंद लेकर जीवन को कुछ वक्त के लिए ताजगी से भर सके लेकिन जब धार्मिक स्थलों की यात्रा को भी पर्यटन और पर्यटक से जोड़ दिया जाता है तो उस पर विरोध या विवाद से इंकार नहीं किया जा सकता है। देखा गया है कि विवाह के बाद अधिकांश जौड़े वैष्णोदेवी की यात्रा करते हैं। निश्चित रूप से यह एक धार्मिक स्थल है और इस स्थल पर जाते वक्त धार्मिक भावना मन-मस्तिष्क में होनी चाहिए लेकिन अगर कोई कश्मीर की वादियों को घूमना चाहता है तो एक पर्यटक के रूप में यह उचित है। लेकिन कश्मीर की पर्यटन यात्रा पर जाते वक्त वैष्णोदेवी के दर्शन कहीं न कहीं से उन लोगों की भावनाओं को प्रभावित करते हैं जो मंदिरों एवं धार्मिक स्थलों को लेकर संजीदा रहते आए हैं।

मद्रास उच्च न्यायालय ने यह निर्देश एक याचिका के सम्बंध में दिया है और कहा कि किसी क्षेत्र में किसी के आने-जाने पर कोई रोक नहीं हो सकती है लेकिन अगर किसी धार्मिक स्थल अर्थात मंदिर में गैर हिंदू प्रवेश करता है तो उसके मन एवं मस्तिष्क में धार्मिक भाव तथा संस्कार होने चाहियें जो कि सम्बंधित धर्म की आस्थाओं और भावनाओं को चोंट न पहुंचा सकें। ध्यान रहे कि यह निर्णय एक राज्य को लेकर है लेकिन कानून की व्याख्या होते वक्त ये उदाहरण दिये जाते हैं। इस दृष्टि से सभी राज्य सरकारों को अपने आप को सचेत करना होगा। जो पर्यटन बोर्ड या निगम विभिन्न राज्यों में हैं उन्हें इस दिशा में विशेष सावधानी रखनी होगी। क्योंकि पर्यटन के नाम पर अधिकांश राज्य और बुकिंग करने वाली एजेंसियां पर्यटन के नाम पर धार्मिक स्थलों को भी इसी श्रेणी में शामिल कर लेती हैं। पर्यटन की दृष्टि से गये जौड़े या परिवार जब धार्मिक स्थलों में प्रवेश करते हैं तो उनके वस्त्र, वेशभूषा और खानपान भी हिंदू धर्म के अनुसार होने के साथ ही सम्मानीय होना चाहिये। मद्रास उच्च न्यायालय का यह निर्णय आने वाले वक्त में अन्य राज्यों की उच्च न्यायालयों में भी स्वीकार किया जाएगा ऐसी हम आशा करते हैं। (updated on 31st january 2024)