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 टैक्स में राहत का ’’स्वागत’’ पर डर है ’’भरपाई’’ का चाबुक कहां चलेगा!

लेखक : SHEKHR KAPOOR


 
 हर साल जब भी भारत सरकार द्वारा वार्षिक बजट प्रस्तुत किया जाता है तो देश ही नहीं बल्कि दुनिया भी उस बजट पर अपना ध्यान केंद्रित करती है। हर विकासशील और विकसित देश प्रमुख देशों के बजट पर ध्यान केंद्रित करते हैं और उसके आधार पर अपनी आर्थिक नीतियां, विदेश नीति, रक्षा, संचार, गरीबी, अमीरी जैसे विषयों को अपने-अपने देश के बजट में शामिल करते हैं। इन वार्षिक बजट की महत्ता यह भी होती है कि यह बजट हर देश की सरकार के लिए ’’दर्पण’’ का काम करता है जो कि अपने-अपने देश के हालात को बयां करता है। लेकिन नागरिकों के स्तर पर यह देखा जाता है कि उनकी सरकार बजट में टैक्स को लेकर कितनी रियायतें देने जा रही है और उसके बदले किन-किन स्तर पर टैक्स बढ़ाये भी गए हैं। इस बार जब देश की वित्तमंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने वर्ष 2025-26 का बजट पेश किया तो उसमें 12 लाख रूपये तक की आय वाले लोगो को टैक्स से मुक्त कर दिया गया। अर्थात इतनी धनराशि साल भर में कमाने वालों पर कोई टैक्स भारत सरकार का नहीं लगेगा। याने कोई भी व्यक्ति अगर हर महीने एक लाख रूपये तक की कमाई करता है तो उसे इस धनराशि को सरकार के समक्ष बताने की जरूरत नहीं है।

जहां तक हमारी जानकारी है केंद्र सरकार ने इस तरह की रियायतों की घोषणा करते वक्त कंेद्र सरकार के कर्मचारियों एवं निजी सेक्टर में हर माह लाखों रूपये कमाने वाले अधिकारियों, कारपोरेट जगत और प्रमुख हस्तियों पर ध्यान दिया है। यह वास्तविकता है कि इस सेक्टर में कार्यरत कर्मी एक लाख रूपये प्रतिमाह या उससे अधिक कमाते हैं। सरकार ने इस श्रेणी पर इतनी मेहरबानी क्यों कर दी यह एक विचार का विषय है लेकिन सत्य यह भी है कि इतनी राशि कमाने वालों की संख्या सरकारी आयकरदाताओं में कम कर दी गई या अब कम हो जाएगी। लेकिन सवाल यह भी पैदा होता है कि हर माह लाख रूपये कमाने वालों की संख्या हमारे देश में कितनी है? क्या केंद्र सरकार ने अपनी एजेंसियों और राज्य सरकारों के माध्यम से शहरों के कारखानों, उद्योगों, बिजनेस हब, होटलों, रेस्टारेंटों एवं तृतीय से लेकर चतुर्थ श्रेणी तक के निजी कर्मियों की मासिक और वार्षिक आय का पता लगाने की कोशिश की है?। जबाव होगा 70 प्रतिशत नहीं। वित्तमंत्री भूल गई कि देश में आज भी लाखों ही नहीं बल्कि करोड़ों निजी कर्मचारी ऐसे हैं जिनकी मासिक आय मात्र 15 से 25 हजार के बीच में ही है। आज भी सरकारी स्कूलों के नियमित शिक्षक अपने मातहत अनाधिकृत रूप से शिक्षकों की नियुक्ति कर मात्र 10 हजार से 15 हजार रूपये का वेतन देते हैं और खुद बिना बच्चों को शिक्षा दिये 80 प्रतिशत वेतन अपनी जेब में डालते हैं। मध्यप्रदेश में तो ऐसे दर्जनों स्कूल मिल जाएंगे जहां सरकार ने शिक्षकों की नियुक्ति की और शिक्षकों ने अनाधिकृत रूप से बेरोजगारों की नियुक्ति कर रखी है। अर्थात इस श्रेणी के लोग तो देश के टैक्स प्रदान करने वालों में शामिल ही नहीं हो पाते क्योंकि उनका वेतन 10 से 15 हजार के बीच ही होता है।

अब आती है बात 12 लाख तक की आय पर मिली आयकर छूट की। शायद केंद्र सरकार यहां आयकर में राहत देकर इन लोगों की जेब से उन मदों पर खर्च करवाना चाहती है जो कि आमोद-प्रमोद और सुविधाजनक साधन श्रेणी में आते हैं। इस श्रेणी के लोग अगले एक वर्ष तक कितना धन इस धनराशि से बचाकर अपना भविष्य संवार पाएंगे यह उनके जीवन में खर्चों पर निर्भर करेगा। लेकिन हम जिस बात से चिंतित हैं वह यही है कि सरकार के पास अब आयकर दाताओं की संख्या जिनकी आय 10 से 12 लाख थी वह कम हो जाएगी। अर्थात सरकार को अपना राजस्व बढ़ाने तथा संग्रहित करने के लिए धन की जरूरत तो पड़ेगी ही और यह राशि संभवत आने वाले उन टैक्सों के माध्यम से वसूली जाएगी जो कि हम अपने जीवन में भोजन, पानी, खानपान की वस्तुओं, मकान खरीदी, वाहन खरीदी पर आवश्यक रूप से खर्च करते हैं। याने इस बात की उम्मीद ज्यादा ही है कि आने वाले वक्त में देश को और अधिक महंगाई का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिये।
(updated on 1st february 2025)