किसी भी समाज या जाति, हमारा देश हो या विदेश., अगर किसी के घर में कोई व्यक्ति बिना जानकारी के, बिना अनुमति और बिना परिचय के प्रवेश कर जाता है तो उसे चोर, उचक्का या डाकू कहा जाता है और अधिकांशबार पुलिस के आने या पुलिस को सौंपने से पहले उसकी खातिरदारी की जा चुकी होती है। भले ही उसने घर में घुसकर सेंधमारी, डकैती या लूटमार नहीं की हो लेकिन उसका यह कृत्य अपराध की श्रेणी में आता है। हम हिंदुस्तानी ही प्रति सप्ताह कई ऐसे चोरों को चोरी करने से पहले पकड़ कर पुलिस के हवाले कर देते हैं। अर्थात वे अपराधी कहे जाते हैं। अदालतें चोरी ना करने पर भी कुछ दिन की सजा अवश्य देती हैं। इसी प्रकार अगर हम भारतीय बिना वीजा, बिना निमंत्रण, बिना वैध कागजात के किसी भी देश में प्रवेश करें तो वह भी अपराध की श्रेणी में ही आता है। हाल ही में जब अमेरिकी सरकार ने 104 भारतीयों को हथकड़ियांे में बांधकर अमेरिका से भारत में प्रत्यार्पित किया तो संपूर्ण विपक्ष ने अमेरिकी सरकार के इस कदम की निंदा की। विपक्ष ने लोकसभा में इस विषय पर प्रधानमंत्री मोदी सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि क्यों नहीं उन्होंने इस मामले में अमेरिकी सरकार से अपना विरोध जताया।
आज हम इस विषय को नये सिरे से देशवासियों के समक्ष रख रहे हैं। हम खुलकर बेईमानों को बेईमान कह रहे हैं। हम अपराधियों को अपराधी कहने से आखिर क्यों परहेज करें?। आखिर हम उन अपराधियों के प्रति मानवीयता की बात क्यों करें जिन्होंने देश अर्थात भारत की साख को अमेरिका में प्रवेश करने के नाम पर दाग लगाया और स्वयं को भी अपराधी साबित करने की तरफ कदम बढ़ा दिया। बिना वीजा के अमेरिका जाने की इच्छा आखिर इन हिंदुस्तानियों को क्यों पड़ीं?। ऐसी क्या जल्दबाजी उन्हें थी कि उन्होंने अपना घर बेचा, कारोबार बेचा और वीजा दिलाने के नाम पर ठगी करने वाले अनजाने लोगों को लाखों रूपये दे दिये?। जिस वक्त वे बिना वीजा के अमेरिका जाने के लिए रवाना हुए तो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि उन्हें यह पता नहीं था कि जो कदम वो अमेरिका जाने के लिए बिना वीजा के उठा रहे हैं वो गैर-कानूनी है और पकड़े जाने पर वे अपराधी कहे जाएंगे। उन्हें यह आभास नहीं था कि परिवार के साथ ही अपने देश के नाम को भी वो बदनाम कर देंगे?।
विचार और चिंतन की बात यह है कि जब हम बांग्लादेश और म्यांमार से अवैध तरीके से भारत में प्रवेश करने वालों को अपराधी मानकर भारत से बाहर करने की मांग करते हैं और इस सम्बंध में कानूनी कदम उठाते हैं तो अमेरिकी सरकार के इस कदम पर आपत्ति क्यों,?। अगर अमेरिकी सरकार ने कुछ घंटों के लिए उनके हाथों और पैरों में जंजीरें डाल दी तो उसे अमानवीयता और मानव अधिकारों का उल्लंघन कैसे माना जा सकता है? जबकि इस कदम के पीछे भाव दूसरा था और वास्तविकता यह थी कि वे अमेरिकी कानून के अनुसार अपराधी थे और उनके साथ एक अपराधी के रूप मंे मामूली सा व्यवहार किया गया। इसी प्रकार जब गलत तरीके से अमेरिका जाने वाले भारतीय वापिस भेजे गए तो उन्हें सरकारी नौकरी, बैंक से लोन और कारोबार शुरू करने में केंद्र सरकार से सहयोग करने की मांग हमारा विपक्ष मानवीय स्तर पर कैसे कर सकता है जबकि विपक्ष को तो पहले भारत का नाम बदनाम करने वाले इन हिंदुस्तानियों को नियमों और भारतीयता का पाठ पढ़ाने की जरूरत बतानी चाहिये।
हम विदेश जाने की इच्छा रखने वालों से यही आग्रह करेंगे कि विदेश जाने के नाम पर सबसे पहले तो वह अपनी जमीन, जायदाद को बेंचने जैसी पहली गलती कतई ना करें। विदेश जाएं लेकिन वीजा और वैध कागजातों के सहारे ही। जितने दिन का वीजा हो उतने दिन खत्म होने से पहले स्वदेश वापस आ जाएं और बिताए गए दिनों की अवधि के दौरान भारत की साख को मजबूत करें। हम अपने देश की साख को कतई बदनाम ना करें। हम अपनी मेहनत और बुद्धि पर विश्वास करें और जो भी काम करंे उसको करते वक्त यही भावना हमारे मन-मस्तिष्क में हो कि हमें परिवार, समाज और देश का नाम रोशन करना है। बिना इनके जीवन नहीं चल सकता है। खैर! कहते हैं कि सुबह का भूला शाम को वापस घर लौट आए तो उसे भूला नहीं माना जाना चाहिये। अब ये हिंदुस्तानी अपने घर आ गए हैं। हमारे ही देश में काम की कमी नहीं है बस करने की जरूरत है।
(UPDATED ON 8TH FEBARY 25)
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