जिस वक्त जनसंघ और बाद में भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित हो रही थीं उस वक्त हिंदुत्व, राष्ट्रवादी, देशभक्ति, ईमानदारी और सर्वधर्म सम्भाव में विश्वास रखने वाले हजारों और फिर लाखों मतदाता भाजपा के नजदीक होते चले गए। जिन हजारों और लाखों लोगों ने भाजपा के प्रति आस्था व्यक्त की उन्हें उम्मीद थी कि एक दिन ऐसा आएगा जब देश में ईमानदारी और सत्यनिष्ठा तथा सद्चरित्र लोगों की यह पार्टी सत्ता में आएगी और उन राक्षसों और राक्षसी प्रवृत्ति का नाश करेगी जिन्होंने देश के साथ नाइंसाफी की। भाजपा के साथ सहानुभूति रखने वाले स्थानीय, प्रादेशिक और राष्ट्रीय स्तर के ’भाजपा और संघ’ की विचारधारा से जुड़े नेताओं को पूरी तरह से उम्मीद थी कि राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के बल पर केंद्र की सत्ता तक वे भाजपा को पहुंचा देंगे और ऐसा करके भारतीय बहुसंख्यक मतदाताओं ने दिखा भी दिया। सत्ता के इस शीर्ष स्तर पर पहुंचने के बाद भाजपा ने जिस तेजी से दूसरे दलों के नेताओं और उन कार्यकर्ताओं का अपनी पार्टी में स्वागत करने का सिलसिला आरम्भ किया जो कि जिंदगी भर भाजपा, संघ और हिंदुत्व, ईमानदारी और राष्ट्रवाद को कोंसते रहे थे तो उसके बाद अधिकांश बहुसंख्यक राष्ट्रवादियों को यह महसूस हो रहा है कि कहीं उन्होंने भाजपा के प्रति अपनी आस्था और सहयोग व्यक्त कर गलती तो नहीं की?।
हम इस विषय को इसलिए इस वक्त उठा रहे हैं क्योंकि भाजपा बरसाती मेंढक रूपी दूसरे दलों के नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल तो करती जा रही है लेकिन दूसरी ओर पार्टी के ही वरिष्ठ, समर्पित और निष्ठावान कार्यकर्ताओं से लेकर मतदाताओं तक में निराशा का भाव भी पैदा हो रहा है। इसका कारण यह है कि 65 साल पहले देश में केंद्र से लेकर राज्यों की सरकारों में जो भ्रष्टाचार, कदाचार, अनैतिकता, देश के साथ गद्दारी, समाज में विष फैलाने वाले जो राजनीतिज्ञ रहे उन्हीं को भाजपा ने जल्द सत्ता पकड़ने के चक्कर में गले लगाना आरम्भ कर दिया। विभिन्न दलों से भाजपा में आए राजनीतिज्ञों से नैतिकता और ईमानदारी की आशा नहीं की जा सकती है। वहीं भाजपा के प्रति आस्था रखने वाले करोड़ों लोगों की देश और राज्यों में ईमानदार सरकार, सरकार में ईमानदारी वाली भावना प्रभावित होती दिखाई पड़ रही है। पूरा देश देख रहा है कि देश में मोदी और अधिकांश राज्यों में भाजपा की सरकारों के बावजूद ईमानदारी और नैतिकता जैसे विषयों पर सफलता संभवतः इन्हीं मेंढकों के कारण नहीं मिल पा रही है जो कि भाजपा में प्रवेश कर चुके हैं। ये मेंढक रूपी नेता भाजपा में रहते हुए उस जल को लगातार प्रदूषित कर रहे हैं जिसमें वो अपने को जीवित रखे हुए हैं। अर्थात जिन लोगों ने अपनी आस्था और ईमानदारी की भावना को मजबूत कर देश को मजबूत बनाने का निर्णय लिया था वह विचार और निर्णय इन मेंढ़कों के कारण लगातार प्रभावित हो रहा है। लोकसभा चुनाव में देश ने भाजपा में ऐसे नेताओं के प्रवेश को देखा जिनकी आस्था कभी भाजपा, हिंदुत्व, राष्ट्रीयता और ईमानदारी की नहीं रही। इस वक्त दिल्ली विधानसभा के चुनाव चल रहे हैं और 24 घंटे पहले ही दिल्ली की आम आदमी पार्टी के 10 विधायक भाजपा में शामिल हो गए जिन्होंने बीते 15 साल में राष्ट्रीय विचारशील पार्टी भाजपा को कुचलने, बदनाम करने और सत्ता में नहीं आने के लिए जमकर प्रचार और धन का उपयोग किया। अब यही विपक्षी विधायक दिल्ली भाजपा के अंदरूनी क्रियाकलाप को कितना प्रभावित करेंगे यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन आम लोगों में यह भावना प्रबल होती जा रही है कि जिन सिद्धांतों, आदर्श और विषयों को लेकर उन्होंने गैर-भाजपा पार्टियों से किनारा कर भाजपा को शीर्ष स्तर तक पहुंचाया वहीं भाजपा अब उन्हीं मेंढकों को गले लगा रही है तो फिर भाजपा में क्या फर्क रहा?।
हमारा इस विषय में चिंतन यही है कि राष्ट्रवाद, नैतिकता और सिद्धातों की बुनियाद पर स्थापित हुई भाजपा को अपने अस्तित्व को पलटकर देखना होगा। पार्टी आगे की ओर बढ़ती रहे लेकिन अपने सिद्धांतों और बुनियाद डालने वाले नेताओं और कार्यकताओं के साथ ही भाजपा के प्रति आस्थावना मतदाताओं की भावनाओं को भी समझे। अगर इस दिशा में कदम नहीं उठाए गए तो इसके नकारात्मक परिणाम भी भाजपा को भुगतने पड़ सकते हैं। इसकी झलक लोकसभा चुनाव में मतदाता दिखा चुके हैं। अर्थात अब केंद्र सरकार अपने पैरों पर नहीं बल्कि बैसाखी के सहारे है।।(updated on 2nd february 25)
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