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 -’सालिड बेस्ट प्रबंधन’ को लेकर गडकरी फार्मूले पर मंथन जरूरी

लेखक : SHEKHAR KAPOOR


 

 
 इस वक्त संपूर्ण देश जिस समस्या से पर्यावरण एवं स्वच्छता स्तर पर जूझ रहा है., वह है सालिड बेस्ट प्रबंधन। अर्थात देश के हर शहर में कचरा तो प्रतिदिन निकल रहा है लेकिन उसको कहां पर और किस तरह से ठिकाने पर लगाया जाए जैसे विषय पर सिर्फ चिंता ही व्यक्त की जा रही है। केंद्र और राज्य सरकारों से जुड़ी एजेंसियां जिन्हें इस काम के लिए मुकर्रर किया गया है अभी तक बहुत प्रभावकारी परिणाम नहीं दे पाई हैं। इसी का परिणाम है कि देश के कई शहरों में कचरे के पहाड़ खड़े होते जा रहे हैं तो वहीं अपने काम में लापरवाही और अकर्मण्याता का प्रदर्शन करने वाली एजेंसियों और नगर निगमों तथा नगर पालिकाओं के कर्मचारी तात्कालिक स्तर पर एकत्रित कचरे को 90 प्रतिशत तक नदियों, नालों, कुओं,बावड़ियों और हरियाली वाले क्षेत्रों के अलावा सूनसान इलाकों में फैंककर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर रहे हैं। कर्मचारियों का वेतन सरकारी खजाने से लगातार जारी है तो वहीं इस कार्य में लगी आउटसोर्सिंग एजेंसियां कमीशन तथा रिश्वतखोरी के माध्यम से खुद भी मालामाल हो रही हैं तो जिम्मेदारों के पेट को भरने का काम कर रही हैं। दूसरी ओर शायद ही कोई ऐसा दिन बीतता होगा जब कचरे के फैंकने की जगहों को लेकर स्थानीय लोगों तथा प्रशासन के बीच टकराव ना होता हो।

हम आज इस विषय को प्रदेश के साथ ही राष्ट्रीय संदर्भ में इसलिए उठा रहे हैं क्योंकि हम कल कारखानों, मकानों ,इमारतों, टावरों और व्यवसाय के साथ ही रहवासी क्षेत्रों की संख्या तो लगातार बढ़ाते जा रहे हैं लेकिन इन मकानों और कारोबारियों के स्थलों के अंदर से निकलने वाले कचरे के निष्पादन की दिशा में ठोस पहल नहीं कर पाये हैं। केंद्र और राज्य सरकारें वैज्ञानिक संस्थानों के सहयोग के माध्यम से कचरे के निष्पादन की दिशा में ठोस कदम उठाने की बात तो कहती चली आ रही है लेकिन सत्यता यह है कि इस दिशा में सकारात्मक परिणाम ना के बराबर ही हैं। इसी क्रम में कचरे के निष्पादन का जिम्मा केंद्र और राज्य सरकारों पर छोड़ दिया गया है। निजी स्तर पर शहरी एवं ग्रामीण इलाकों में जाकर तथा जानकार और उपायकारी लोगों से बातचीत एवं सुझाव की दिशा में कोई प्रगति दिखायी नहीं पड़ती है। जिन राजनीतिज्ञों को जनता का सेवक माना जाता है उन्हें मात्र पद, पैसा, प्रभाव का चस्का लग गया है। उनके पास इन कार्यों के लिए समय ही नहीं है।

आशा की एक किरण केंद्रीय काबिना मंत्री नितिन गडकरी के उस बयान और सुझाव में आई है जिसमें उन्होंने कहा है कि घरों और व्यवसायिक स्थलों, होटलों, रेस्टारेंटों, चिकित्सालयांे से जो कचरा निकलता है उसको ’’री-सायकिल’’ कर उसका उपयोग सड़कों के निर्माण में किया जा सकता है। इसी प्रकार उन्हांेने पुलों और इमारतों में प्रयोग होने वाली सामग्री में भी इस कचरे के ’’री-सायकिल’’ के बाद मिश्रित कर उपयोग करने की बात कही है लेकिन मुख्य सवाल यही है कि आखिर कचरे के ’’री-सायकिल’’ करने तथा उसके पहले कचरे के एकत्रीकरण करने का काम कौन करेगा? हमारा कथन इस दिशा में यही है कि केंद्र सरकार का एमएसएमई मंत्रालय इस दिशा में प्रभावकारी भूमिका निभा सकता है। वह प्रादेशिक कार्यालयों के माध्यम से हर राज्य के जिलों में कचरे के 10 से 15 छोटे ’’री-सायकिल’’ उद्योग स्थापित करने की दिशा में कार्य करे और इन छोटे उद्योगपतियों को भरपूर मदद करे तो एमएसएमई सेक्टर के ये उद्योगपति इस समस्या के निवारण में राष्ट्रीय स्तर पर एक प्रभावकारी भूमिका निभाने के साथ ही इस समस्या का सदा के लिए समाधान कर मानव जाति के स्वास्थ्य एवं प्रगति में योगदान दे सकेंगे। बस शुरूआत तो कीजिए।
(UPDATED ON 27TH SEPT 24)