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पवन ताम्रकार
देश में इस वक्त आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। इसी क्रम में 15 अगस्त, स्वतंत्रता दिवस की बेला भी है। 77 वर्ष पहले भले ही हमारा देश आजाद हुआ लेकिन हमें इस विषय पर विचार मंथन करने की जरूरत है कि क्या हम वास्तव में आजादी के महत्व को समझ पा रहे हैं और वास्तव में क्या हमने आजादी के बाद अपने कर्तव्य निभाने की दिशा में काम किया है?

बीतते वर्षों के साथ मैं यह विचार मंथन और मनन करते हुए पाता हॅू कि सिर्फ बड़े-बड़े नेताओं, उद्योगपतियों तथा सम्भ्रांत वर्ग तक ही यह आजादी सीमित रही है। ऐसा लग रहा है आज भी ग्रामीण क्षेत्र की आबादी जहां आदिवासी, दलित,पिछड़ा वर्ग और सामान्य वर्ग के लोग बहुतायात में हैं, अपनी आजादी की राह देख रहे हैं। अंग्रेज चले गए लेकिन जिन्हें सत्ता सौंपी गई वो आज भी भारतीय जनमानस के ऊपर अपना एकाधिकार मानकर शासन कर रहे हैं। आम जनमानस की किसी को कोई चिंता नहीं है। धन की इतनी अधिक हवस बढ़ गई है कि समझ में नहीं आता कि आगे की कितनी पीढ़ी तक के लिए वो धन कमाकर रखना चाहते हैं? जो अनैतिक तरीके से धन कमा रहे हैं उन्हें स्वयं इस बात का आभास और ज्ञान है कि अनैतिक तरीके से संचित किया गया धन भविष्य की पीढ़ी का निर्माण नहीं बल्कि विनाश ही करता है। दर्जनों ऐसे उदाहरण हैं जिनमें अनैतिक तरीके से अर्जित धन ने भावी पीढ़ी को संकट में डाला है या उनकी दुर्गती हुई है।

आजादी की इस वर्षगाठ को मनाते वक्त मैं यही उम्मीद करता हॅू कि देश का हर व्यक्ति ईमानदार और जिम्मेदार बने एवं दूसरों की मदद को आगे रहे। स्वतंत्रता दिवस की बधाई और शुभकामनाएं। जय हिंद।

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लेखक एवं प्रस्तुति
मध्यप्रदेश के जिला सतना स्थित उचेहरा व्यापारी संघ के अध्यक्ष, केट सतना के उपाध्यक्ष और बौद्धिक वर्ग के प्रतिनिधि पवन ताम्रकार