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-संपादकीय--हरदा हादसा ’’दुर्घटनात्मक भ्रष्टाचार’’ ही है
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-संपादकीय--हरदा हादसा ’’दुर्घटनात्मक भ्रष्टाचार’’ ही है
मध्यप्रदेश के हरदा जिले में स्थित एक इलाके में मंगलवार को फटाखा कारखाने में करीब 10 से अधिक लोगों की मौत और करीब 70 से अधिक लोगों के घायल होने की घटना क्या एक ’’दुघर््ाटनात्मक-भ्रष्टाचार’’ है या ’’लापरवाही’’ यह सच्चाई तो जांच के बाद ही सामने आ पाएगी लेकिन प्रथम दृष्टया जो कुछ हुआ उसके मूल में भ्रष्टाचार ही है। इस हादसे ने कई प्रश्नों को एक बार फिर से जन्म दिया है। मुख्य प्रश्न यही है कि यह कारखाना रिहायशी इलाके में कैसे चल रहा था? दूसरी बात यह है कि क्या इस कारखाने को चलाने की वैधानिक स्वीकृति नियमों के तहत हुई थी या नहीं? इसके बाद सवाल यह उठता है कि अगर इस कारखाने को चलाने की स्वीकृति थी तो उसकी समय-समय पर सुरक्षात्मक जांच की गई या अधिकारियों ने निरीक्षण किया या नहीं? अगर हां तो उसके बावजूद यह दुर्घटना कैसे हो गई?
हालांकि इस मामले में राज्य सरकार और विशेषकर मुख्यमंत्री डा.मोहन यादव ने तत्काल आपात कदम उठाने के साथ ही सरकारी स्तर पर जो मदद और सहूलियतें घायलों को दी है उसकी प्रशंसा की जानी चाहिए लेकिन इसके बावजूद यह दुर्घटना इस बात का सबूत है कि हमारे देश और मध्यप्रदेश में कहीं न कहीं से अभी भी दुर्घनात्मक भ्रष्टाचार मौजूद है जो कि अधिकांश बार नजर अंदाज किया जाता रहा है। हमारे देश और प्रदेश में हादसे होते हैं और केंद्र से लेकर राज्य सरकारें इन मामलों में तात्कालिक कदम उठाते हुए सबसे पहले हताहतों के लिए एक मुश्त धनराशि देने की घोषणा करती हैं जो कि जरूरी भी है लेकिन हर बार सवाल यही उठता है कि आखिर इस तरह की दुर्घटनाओं को रोकने की दिशा में सरकार और शासन का तंत्र क्यों प्रभावी कदम नहीं उठा पाता है? किसी भी दुर्घटना के बाद एक रिपोर्ट आती है जिसके पूरे होने में कई महीने अथवा साल भी लग जाते हैं। रिपोर्ट आने के बाद रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई करने की जिम्मेदारी राज्य सरकार या सम्बंधित विभागों अथवा वरिष्ठ अधिकारियों की होती है लेकिन दुर्घटना के जिम्मेदार हमेशा बचते रहे हैं अथवा मामूली अर्थदंड चुकाने के बाद इन मामलों की इतिश्री हो जाती है। इसके बाद ये मामले फिर उस वक्त तक लाल फाइलों में बद रहते हैं जब तक कि अन्य कोई दूसरी घटना या दुर्घटना न हो जाए।
हम अपने देश में लोकतंत्र को मजबूत होते हुए तो देख रहे हैं लेकिन संभावित दुर्घटनाओं की तरफ हमारा कभी भी ध्यान नहीं जाता है। उदाहरण के तौर पर हरदा हादसे के लिए जो लोग जिम्मेदार होंगे क्या उन्हें ऐसी सजा मिल पाएगी जो दूसरों के लिए नजीर बन सके? इसी प्रकार दुर्घटना के लिए कारखाना प्रबंधन पर तो कार्रवाई होगी लेकिन जो अधिकारी इस विषय को लेकर जिम्मेदार हैं उन पर भी भारतीय दंड सहिता के अनुसार कार्रवाई होगी? तात्कालिक रूप से क्या इस बात की छानबीन होगी कि जब यह कारखाना रिहायशी क्षेत्र में चल रहा था तो सम्बंधित अधिकारी तथा स्थानीय पुलिस को क्या इस कारखाने के बारे में जानकारी नहीं थी? ऐसा हो ही नहीं सकता कि इन जिम्मेदार अधिकारियों और पुलिस को इस कारखाने के बारे में पता न हो। कुल मिलाकर यह दुर्घटना एक ’’दुर्घटनात्मक भ्रष्टाचार’’ है और इस कारखाने को लेकर जबाव देही से सम्बंधित अधिकारियों को अलग नहीं किया जा सकता है।
कुल मिलाकर दुर्घटनाओं को लेकर हमारा तंत्र कभी भी संजीदा नहीं रहा है। उदाहरण के तौर पर मध्यप्रदेश के कई शहरों में इस वक्त कुत्ते के काटने से लोगों के जख्मी होने की खबरें आ रही हैं। सड़कों पर भागते और वाहनों के पीछे उनके भागने से भी कई दुर्घटनाएं हो रही हैं। इसी प्रकार सड़कों के निर्माण में भ्रष्टाचार तो आम बात हो चुकी है। हमारे प्रदेश तथा देश की सड़कें कब बनती हैं और कब खराब होती हैं इस पर हमारा सरकारी तंत्र हमेशा से पर्दा डालने का काम करता रहा है। इसी प्रकार भारी मालवाहक वाहनों के अनुसार सड़कों के निर्माण तथा गुणवत्ता जैसे विषयों पर कभी भी आम जनता के सामने जानकारी नहीं आ पाती है। परिवहन विभाग और यातायात पुलिस मालवाहक वाहनों पर कितनी कार्रवाई करती है? स्कूली बसों से लेकर निजी यात्री बसों में सुरक्षा तथा फिटमेंट जैसे मसलों पर ध्यान न दिये जाने के कारण दुर्घटनाएं आम बात हो चुकी हैं। समय का तकाजा अब यही है कि जब आर्थिक अपराधों को लेकर ईडी,सीबीआई और अन्य एजेंसियां कार्रवाई कर सकती हैं तो इस तरह के मामलों में आकस्मिक जांच और छापे जैसी कार्रवाई भी सरकारी तंत्र की जिम्मेदारी का एक न रूकने वाला कदम होना चाहिए। वरना तो हरदा कारखाने की दुर्घटना सहित अन्य दुर्घटनाएं होती रहेंगी। सरकार मुआवजा देकर इतिश्री कर लेंगी और जिम्मेदार अधिकारी बचते रहेंगे।(updated on 6th feb 24)
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