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-संपादकीय--शीर्ष अदालत का ’आरक्षण’ सुझाव देश के लिए जरूरी
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-संपादकीय--शीर्ष अदालत का ’आरक्षण’ सुझाव देश के लिए जरूरी
पिछले सप्ताह देश की शीर्षस्थ अदालत उच्चतम न्यायालय ने सरकारी नौकरियों में आरक्षण को लेकर एक रिट पर अपनी बात कही। हालांकि उच्चतम न्यायालय ने कोई निर्णय नहीं दिया लेकिन प्रधान न्यायधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि देश की आजादी के बाद जिन लोगों को सामाजिक स्तर पर आरक्षण दिया गया तथा जो लोग आरक्षण श्रेणी में लाभांश पाने के बाद संपन्न और प्रभावशाली हो गए उनके आरक्षण पर विचार किए जाने की जरूरत है। अर्थात इस श्रेणी के लोगों को आरक्षण का लाभांश नहीं दिया जाना चाहिए। उन्हें आरक्षण की श्रेणी से बाहर करने की जरूरत है। लेकिन दुःख की बात यह रही कि यह समाचार न तो राजनीतिज्ञों ने पढ़ा और न ही मीडिया जगत ने इस समाचार को प्रमुखता दी। परिणाम यह रहा कि यह समाचार और विषय देश के विकास में मील का पत्थर बनते-बनते रह गया। आखिर इस सुझाव को महत्व क्यों नहीं दिया गया यह भी हमारी केंद्र और राज्य सरकारों के लिए एक महत्वपूर्ण विषय है।
हम एक बार पुनः यह स्पष्ट कर दें कि उच्चतम न्यायालय ने आरक्षण को लेकर सामाजिक स्तर पर जो सरकारी व्यवस्था है उस पर कोई निर्णय नहीं दिया लेकिन सुझाव यही था कि आरक्षण का लाभांश पाकर जो लोग संपन्न,शिक्षित और उच्च पदों पर पहुंच चुके हैं अब उनके बारे में सोंचे जाने की जरूरत है। हम यह भी बता दें कि उच्चतम न्यायालय ने आरक्षण को समाप्त करने की कोई बात नहीं कही लेकिन यह प्रश्न देश के समक्ष अपने सुझाव के माध्यम से रख दिया है।
निश्चित रूप से जब देश आजाद हुआ उस वक्त 90 प्रतिशत से अधिक आबादी गरीब,निर्धन तथा विपन्न हालात में थी। अनुसूचित जाति, जनजाति सहित कुछ वर्गों को सामाजिक और आर्थिक स्तर पर केंद्र और राज्यों की सरकारों ने समय-समय पर कानून बनाये तथा आरक्षण के माध्यम से इस आरक्षित वर्ग को आगे बढ़ाया। परिणाम यह रहा कि जब हम गणतंत्र के 75वें अमृतकाल महोत्सव में गुजर रहे हैं तो आरक्षण जैसे विषय पर पुनः विचार और सोंच की जरूरत बौद्धिक तथा राजनीतिज्ञ स्तर पर जरूी है जिससे कि देश का विपन्न और आर्थिक हालात में मजबूर व्यक्ति को भी सरकारी स्तर पर प्रोत्साहन मिल सके।
वास्तविकता आज यह है कि आरक्षण का लाभ जिन लोगों ने समय-समय पर दशकों पूर्व लिया उनमें से अधिकांश आज केंद्र एवं राज्य स्तर पर वरिष्ठ पदों पर कार्यरत हैं। आईएएस से लेकर आईपीएस तथा गजेटेड पोस्टों पर आरक्षण लाभांवित देश की सेवा भी कर रहे हैं। उनके योगदान की चर्चा पूरा देश समय-समय पर करता है। इतना ही नहीं इस श्रेणी की प्रगति के कारण आज सामाजिक स्तर पर इस वर्ग को समानता भी प्राप्त हो रही है। वैवाहिक और सामाजिक संबंध भी दूसरी जातियों में बन रहे हैं क्योंकि इस आरक्षित श्रेणी के लोग एक और दो तथा तीन पीढ़ी के बाद प्रमुख पदों पर हैं। अगर उच्चतम न्यायालय ने यह सुझाव दिया है तो हम इस सुझाव की प्रशंसा करते हैं। हम ही नहीं बल्कि पूरा देश इस बात का समर्थन करेगा कि जो कभी विपन्न,अशिक्षित, अछूत और गरीब थे अगर वो संपन्नता की श्रेणी में प्रवेश कर चुके हैं तो उन्हें स्वयं आगे बढ़कर आरक्षण के लाभ से स्वयं को अलग कर सामान्य श्रेणी में शामिल होकर राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल हो जाना चाहिए। बेहतर तो यह रहेगा कि इस श्रेणी के लोग स्वयं आगे बढ़कर एक उदाहरण देश के समक्ष प्रस्तुत करें तथा दूसरे वंचितों के लिए रास्ता बनाये जिससे कि जो लोग अभी संपन्न नहीं हो पा रहे हैं उन्हें भी मौका मिल सके।
हमारा यह भी सुझाव है कि अब केंद्र और राज्य सरकारों को उच्चतम न्यायालय के इस सुझाव के क्रम में विचार मंथन तथा निर्णय लेने की प्रक्रिया आरम्भ कर देनी चाहिए। यह देश आरक्षण के माध्यम से संपन्नता तथा आत्मनिर्भरता प्राप्त कर चुके लोगों का आभारी रहेगा अगर वो स्वयं को इस श्रेणी से बाहर करते हैं। देश के विकास तथा जातिगत विषयों से उठने की देश को जरूरत है। यह वर्ग अगर इस दिशा में पहल करता है तो यह देश के विकास की दिशा में यह कदम ’’मील का पत्थर’’ साबित होगा।
(UPDATGED ON 11TH FEB 24)
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