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-संपादकीय--भाजपा से ’’निराशा’’ होगी पर ’’कट्टी’’ नहीं

-संपादकीय--भाजपा से ’’निराशा’’ होगी पर ’’कट्टी’’ नहीं

देश के 75वंे गणतंत्र दिवस समारोह के समापन होते-होते बिहार में राजनीतिक घटनाक्रम पर जो कुछ हुआ अथवा होने जा रहा है उस पर इस वक्त देश की निगाहें हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार जिन्हें अपने कार्यकाल में ’पलटूराम’ की उपाधि राजनीति में दी गई और उनके बारम्वार राजनीतिक लाभांश के लिए पलटियां मारने के कारण बिहार के लोग कितना उन्हें सम्मान देते होंगे यह विषय हम बिहार पर ही छोड़ते हैं लेकिन देश के आम सर्वहारा वर्ग से लेकर बौद्धिक वर्ग के बीच उनकी साख को लेकर हमेशा नकारात्मक भाव बनता रहा है। कहा जा रहा है कि बिहार में वह अब भाजपा के समर्थन से सरकार बनाएंगे और रिकार्ड 9वीं बार मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ले सकते हैं। इस राजनीतिक परिवर्तन के साथ ही देश के लोगों में भाजपा के प्रति लोगों में क्या विचार अर्थात भाव आते हैं यह तो समय बताएगा लेकिन जिस तरह से नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व काल में भाजपा को अधिकांश राज्यों में सच्चाई के साथ समर्थन मिल रहा है वह विषय अवश्य ही चर्चा का केंद्र बनेगा।

इस बात में कोई संदेह नहीं कि आगामी लोकसभा चुनाव में अधिकांश हिंदी भाषी राज्यों से भाजपा उम्मीदवारों को विजयश्री इसलिए मिलना तय है क्योंकि भाजपा का नेतृत्व प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी के पास है। भाजपा अगर अधिकांश राज्यों में अपनी शानदार परफारमेंस कर रही है तो इसका कारण पार्टी से ज्यादा मोदी की कार्यशैली कहीं ज्यादा मायने रखती है। बीते साढ़े नौ वर्ष के कार्यकाल में मोदी की ही कार्यक्षमता के कारण भाजपा अधिकांश हिंदी राज्यों में लगातार आगे बढ़ती रही। इस देश के सर्वहारा वर्ग ने उन मसलों को हल होते हुए देखा जिनकी कल्पना देशवासियों ने कभी नहीं की थी। देश के लोग उन विषयों को हल होते देखते रहे जो वह चाहते थे।

आखिर बिहार के नवीनतम राजनीतिक घटनाक्रम को लेकर बौद्धिक वर्ग में नितीश के प्रति क्यों अप्रियता का भाव है तो इसका कारण पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने मोदी के नेतृत्व वाले गठबंधन के रूप में चुनाव लड़ा था तथा मुख्यमंत्री बने। कुछ समय बाद जैसे ही उन्होंने भाजपा को आंखें दिखाईं और पलटी मार कर लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद के साथ बिहार की राजनीति में उथल-पुथल कर मुख्यमंत्री बन गए उस कदम को लोग पचा नहीं पाये थे। नितीश कुमार की तर्ज पर ही दूसरा घटनाक्रम महाराष्ट्र में हुआ जहां विधानसभा चुनाव में शिवसेना ने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा लेकिन मुख्यमंत्री बनने की चाहत में उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने उन कांग्रेसियों एवं शरद पवार की पार्टी से हाथ मिला लिया जिनका चुनाव के दौरान विरोध किया था। उद्धव ठाकरे और नितीश कुमार प्रकरण ने भाजपा के प्रति इन दोनों ही राज्यों और देश में उस वक्त स्नेह,अपनत्व और प्यार के भाव को मजबूत कर भाजपा के प्रति सहानुभूति दिखाई। जब महाराष्ट्र में भाजपा ने शिवसेना के किले में संेध लगाकर एकनाथ शिंदे को उनसे अलग करवा कर सरकार बनाई तो देशवासियों के मन में यह भाव था कि जैसे को तैसा मिला। लेकिन नितीश कुमार के ताजा पलटी मार कर पुनः भाजपा के साथ सरकार बनाने के फैसले पर देश में भाजपा के प्रति जो आस्था और विश्वास का भाव तेजी के साथ विकसित हुआ था वह अवश्य कहीं न कहीं से प्रभावित हुआ है। इसका कारण यही है कि नितीश कुमार ने लालू की पार्टी के साथ सत्ता में रहते हुए जितनी आलोचना भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर की थी उसे देशवासी पचा नहीं पाये थे।

यह हो सकता है कि चंद घटों बाद ही नितीश कुमार भाजपा के पाले में आकर सरकार बना लें और मुख्यमंत्री पद पर पुनःविराजमान हो जाएं लेकिन इससे नितीश कुमार के प्रति देशवासियों में प्यार नहीं पनपना है लेकिन भाजपा के प्रति निश्चित रूप से स्नेह और अपनत्व और सहानुभूति को लेकर निराशा उत्पन्न होगी लेकिन इसका मकसद यह नहीं कि हिंदी भाषी राज्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति अपने विश्वास में कमी आने देंगे या ’कट्टी’ करेंगे अर्थात नाराज होंगे। आम मतदाता के मन और मस्तिष्क में यह भाव जरूर है कि भाजपा कमजोर नहीं होनी चाहिए। हो सकता है कि राजनीतिक गुणाबाजी में लोकसभा चुनाव और 400 सीटें प्राप्त करने की भाजपा की रणनीति का यह हिस्सा हो लेकिन नितीश कुमार के प्रति लोगों में कोई सहानुभूति नहीं है यह बात भाजपा को अवश्य मन में रखना चाहिये।
(UPDATED ON 27TH JANJARY 2024)
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