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-संपादकीय--चुनाव प्रचार अनुशासनात्मक हो
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देश में 18वीं लोकसभा के गठन के लिए हालांकि चुनाव आयोग ने अभी तारीखों की घोषणा नहीं की है लेकिन राजनीतिक दलों ने देश की 543 लोकसभा सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों की सूची जारी करना आरम्भ कर दिया है। भाजपा ने इस मामले में बाजी मारी है लेकिन इसी सप्ताह कई अन्य दल भी अपने-अपने उम्मीदवारों की सूची जारी कर देंगे। संभवतः इसी सप्ताह के अंत तक देश का चुनाव आयोग भी चुनाव की तारीखों की घोषणा भी कर देगा जिसके बाद मतदाताओं तक पहुंचने और अपनी बात को उन तक बताने एवं पहुंचाने के तरीकों का प्रयोग उम्मीदवारों द्वारा किया जाने लगेगा। हम चाहते हैं कि इस बार का चुनाव प्रचार कुछ इस प्रकार का हो जो कि मतदाताओं को भी बेहतर लगे। मतदाताओं को भौंडापन, लाउड स्पीकरों से जोर की आवाजें, चौराहों पर यातायात को अवरूद्ध कर प्रचार करना, शराब एवं धन का दिखावा करना सहित अन्य नकारात्मक विषय कतई पसंद नहीं आते हैं विशेषकर परिपक्व, महिलाओं और युवतियों को। विनम्रता, शालीनता तथा सादगी चुनाव प्रचार का हिस्सा हो तो इससे उम्मीदवारों की परिपक्वता लोगों को पसंद आती है।
इस विषय को हम राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के समक्ष इसलिए उठा रहे हैं क्योंकि वो जनता के हितों के लिए चुनाव लड़ने जा रहे हैं। उन्हें पहले ही पायदान पर अर्नगल प्रचार से स्वयं को फिसलाना नहीं है। जनता के हितों की शुरूआत चुनाव प्रचार के माध्यम से ही दिखायी पड़नी चाहिये। पूर्व में होता यह रहा है कि जो उम्मीदवार धनवान होता है वह वाहनों के काफिले के माध्यम से अपनी समृद्धि तथा ताकत दिखाता है। इसी प्रकार शहर और मुहल्लों तथा गलियों में लाउड स्पीकरों के माध्यम से लोगों की दिनचर्या प्रभावित की जाती है। देर रात तक किया जाने वाला प्रचार बच्चों अर्थात विद्याथियों की शैक्षणिक गतिविधियों को प्रभावित करता है।
इसी क्रम में हम सभी उम्मीदवारों से यह भी आग्रह करना चाहेंगे कि लोगों की धार्मिक भावनाओं तथा आस्था का भी ख्याल चुनाव प्रचार के समय रखना जरूरी होता है। कोई ऐसा पोस्टर या बयान जारी नहीं होना चाहिए जो कि दूसरे धर्म की आस्था और धार्मिकता को प्रभावित करे। इसी प्रकार चुनाव प्रचार का जो समय होता है उसमें अगर लाउड स्पीकरों का प्रयोग हो तो वो ’कर्णप्रिय’ हो ना कि इमारतों और जमीन को हिला देने वाली तेज आवाजों के साथ लोगों को बहरा कर देने वाला हो। जब भी चुनाव प्रचार के लिए उम्मीदवार निकले या उनके कार्यकर्ता तो सामने आ रहे विपक्षी दल के काफिले पर कोई फब्तियां नहीं कसी जानी चाहियें। इसी प्रकार मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर, अस्पताल, शिक्षा संस्थान सहित संवेदनशील स्थानों से गुजरते वक्त प्रेम और सौहार्द का परिचय दिया जाए। लाउड स्पीकरों की आवाज से इन स्थानों की पवित्रता को कायम रखने की जिम्मेदारी भी उम्मीदवारांे तथा उनके कार्यकर्ताओं की है। इसके अलावा जब उम्मीदवार अपने नामांकन दाखिल करने के लिए निर्वाचन कार्यालय पहुंचे तो उस वक्त पूरी तरह से अनुशासित हों तथा यातायात नियमों का पालन करें। सड़कों पर कतई भी जाम नहीं लगना चाहिये। निर्वाचन कार्यालय के बाहर तक काफिला जाने की अनुमति पहले ही से प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारियों से ली जानी चाहिये। जब सार्वजनिक स्थान पर आमसभा हो तो उसमें भाषा पर नियंत्रण रखना जरूरी है। भाषण के दौरान द्वि-अर्थी संवाद से बचना जरूरी है। महिलाओं और बच्चों पर किसी प्रकार का कमेंट्स नही होना चाहिये। बच्चों को कतई भी चुनाव प्रचार का हिस्सा ना बनाया जाए।
इस संपादकीय के माध्यम से हमने इन विषयों को इसलिए उठाया है जिससे कि हर संसदीय क्षेत्र में शांति तथा सौहार्द का माहौल रहे। लोग अर्थात मतदाता राजनीतिक दलों और कार्यकर्ताओं की इज्जत और सम्मान करें। प्रचार के तरीकों को अपनाते वक्त मतदाताओं की भावना को समझना भी कार्यकर्ताओं और दलों का कर्त्तव्य है। चुनाव प्रचार के वक्त शराब और मादक पदार्थों का उपयोग कतई नहीं किया जाना चाहिये। अगर वो ऐसा करते हैं तो उनके इस कृत्य की जानकारी मतदाताओं तक परोक्ष और अपरोक्ष रूप से पहुंच ही जाती है। हम उम्मीद करते हैं कि लोकतंत्र को स्वस्थ्य, स्वच्छ और कम खर्चीला बनाने में सभी राजनीतिक दल और उनके कार्यकर्ता अपना योगदान देंगे। इसके बाद जब ’विजय और पराजय’ का समय आए तो उस परिणाम को पूरी शिद्दत के साथ विनम्रता से स्वीकार किया जाए।(updated on 3rd march 24)
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