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-संपादकीय--उम्मीदवारों का पैमाना ध्यान रखें पार्टियां
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इस वक्त 18वीं लोकसभा के लिए सभी राजनीतिक दल उम्मीदवारों के चयन को लेकर सक्रिय हो गए हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से लेकर कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, टीएमसी सहित अन्य राजनीतिक दल अपने-अपने उम्मीदवारों की लिस्ट को तैयार कर रहे हैं। जो पार्टियां राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर सत्ता में हैं वो मतदाताओं को सरकारी योजनाओं की जानकारी दे रही हैं तो अपनी उपलब्धियां भी बता रही हैं। वो जो वायदे कर रहे हैं उन पर भी मतदाताओं को विश्वास करना है या नहीं यह विषय मतदाताओं का है लेकिन हम जिन विषयों पर सभी राजनीतिक दलों और उनके प्रमुख नेताओं के समक्ष उठा रहे हैं और उन्हें सचेत कर रहे हैं वो यही है कि किस तरह का उम्मीदवार सम्बंधित संसदीय क्षेत्र में उतारा जाना चाहिये इस बारे में सम्बंधित संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं की भावनाओं का ख्याल रखने के साथ ही देश की अस्मिता, देश की संस्कृति, भाईचारा, सद्भाव, ईमानदार व्यक्तित्व और जनता से जुड़ा रहने वाला व्यक्ति या राजनीतिज्ञ ही मतदाताओं के समक्ष उतारा जाना चाहिये।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारतीय जनता पार्टी का एक प्रमुख चेहरा हैं। उनके साथ पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और चाणक्य अमित शाह हैं। राष्ट्रीय स्तर पर इस वक्त इस पार्टी की हवा लगातार बहती हुई दिखाई पड़ रही है। वहीं दूसरी ओर देश में राष्ट्रीय स्तर की अन्य पार्टियों की जब बात आती है तो कांग्रेस एक प्रमुख राष्ट्रीय दल दिखाई पड़ता है। इस पार्टी की घोषित और अघोषित कमान श्रीमती सोनिया गांधी, राहुल गांधी तथा श्रीमती प्रियंका गांधी वडेरा के हाथों में हैं। वहीं समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव हैं तो वहीं पश्चिम बंगाल में टीएमसी की प्रमुख सुश्री ममता बनर्जी पार्टी की कमान संभाले हुए हैं। ये पार्टियां इस वक्त इस विषय पर ज्यादा जोर दे रहे हैं कि कौनसा उम्मीदवार उनकी पार्टी के लिए प्रमुख है और वो उसे अपनी पार्टी में शामिल कराने के अभियान में लगे हुए हैं।
बीतते समय का अनुभव हम बयां करना चाहेंगे। हम बताना चाहेंगे कि आम जनता के बीच उन उम्मीदवारों को जनता या मतदाता पसंद नहीं करते हैं जो पहले तो एक पार्टी में रहते हुए दूसरी पार्टी के नेता और पार्टी के प्रति जलीलता से भरपूर शब्दों का प्रयोग करते हैं और अगर यह कहा जाए कि ’नग्नता’ पर आमदा हो जाते हैं तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी लेकिन जिस पार्टी पर आरोप लगाए गए वही पार्टी उस नेता को जब स्वीकार करती है तो सम्बंधित पार्टी की छबि पर भी प्रभाव पड़ता है और यह भावना जनमानस के मस्तिष्क में प्रवेश कर जाती है कि राजनीति के ’’हमाम में सभी नंगे होते हैं’’ और उनके कोई सिद्धांत या नीति नहीं होती है। अर्थात सत्ता में आने और सत्ता प्राप्ति के लिए वो उन उम्मीदवारों को गले लगा लेती हैं जिन पर अदालतों में आपराधिक मामले चल रहे हैं या जिनकी छबि दागदार है भ्रष्टाचार या अन्य कारणों से। इसी प्रकार जो उम्मीदवार जनता के बीच उतारे जाएंगे वह विजयी तो हो सकते हैं लेकिन जनता के बीच लोकप्रिय नहीं हो सकते या उनके मददगार नहीं हो सकते।
हमने इस विषय को देश की सार्वभौमिकता के संदर्भ में इस संपादकीय के माध्यम से उठाया है। हमने इस विषय को देश की एकता तथा अखंडता के संदर्भ में उठाया है। हम चाहते हैं कि जिन उम्मीदवारों को जनता के बीच चुनाव लड़ने के लिये उतारा जाए उनका व्यक्तित्व पूरी तरह से बिना दाग का होना चाहिये। उनकी जनता के बीच विश्वसनियता तथा उपलब्धता का विषय मुख्य होना चाहिये। उम्मीदवार के जीतने के बाद उनका अपने मतदाताओं से सतत संपर्क और संवाद और अधिक मजबूत होना चाहिये। क्योंकि आम मतदाता वोटिंग करते वक्त उम्मीदवार तथा सम्बंधित पार्टी की विश्वसनियता और ईमानदारी जैसे विषयों को तो ध्यान में रखता है लेकिन साथ ही उनके चरित्र पर भी ध्यान रखता है। मतदाता का भावनात्मक पक्ष भी होता है जिसमें एक उम्मीदवार उतरता है। जब मतदाताओं की इस सोंच को नजरअंदाज किया जाता है तो उसका नुकसान संबंधित पार्टी को होता है ना कि उम्मीदवार को। हम उम्मीद करते हैं कि सभी राजनीतिक दल देश के हित में इन विषयों को अवश्य ध्यान में रखेंगे तथा लोकतंत्र के प्रहरी साबित होंगे।
(updated on 2nd march 2024)
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