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-संपादकीय--जहर के घूंट भी कभी-कभी पीने पड़ते हैंा

-संपादकीय--जहर के घूंट भी कभी-कभी पीने पड़ते हैंा


कहते हैं कि राजनीति में सब कुछ चलता है। आगे बढ़ने के लिए या खेल के मैदान में लम्बी छलांग लगाने के लिए पीछे की तरफ जाना पड़ता है और फिर दौड़ लगाकर छलांग मारी जाकर लक्ष्य को भेदा जाता है। शायद कुछ ऐसा ही बिहार की राजनीति को लेकर भारतीय जनता पार्टी और विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोचा और विचारा हो। इसी के बाद नीतिश कुमार की जदयू पार्टी के साथ प्रांतीय स्तर पर समझौता कर आगामी लोकसभा चुनाव में 400 से अधिक सीटें प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया हो।

यह सत्य है कि बिहार की राजनीति में नीतिश कुमार इस वक्त वो ’’अभिनेता’’ हैं जो कभी भी अपना ’’रूप और रंग’’ बदलते रहे हैं। पिछले तीन साल में ही तीसरी बार उन्होंने राजनीतिक कुश्ती के अखाड़े में पहले सर्वप्रथम दूसरे अर्थात विपक्षी पहलवानों को चित करने के लिए भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा लेकिन बाद में वह लालू प्रसाद यादव की उसी ’राजद’ पार्टी के साथ गठबंधन कर मुख्यमंत्री बन गए। अब उन्होंने हालिया स्तर पर राजनीतिक परिदृश्य को समझकर भाजपा के साथ सरकार बना ली। जबकि पिछले कार्यकाल के दौरान इन्हीं नीतिश कुमार ने भाजपा को जमकर कोसा था। उन्होंने एक बार कहा था ’मरते दम तक भाजपा के साथ अब समझौता नहीं करूंगा’ लेकिन चंद महीनों में ही अब वह भाजपा के साथ आ चुके हैं। दूसरी ओर कालंतर में ही उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी, अमित शाह सहित कई नेताओं को राजनीतिक स्तर पर जमीन दिखाने के मामले में कसर नहीं छोड़ी। अपने राजनीतिक जीवन में कई बार पलटियां मारने वाले नीतिश कुमार की राष्ट्रीय स्तर पर छवि कभी उज्जवल नहीं हो पाई। उन्हें हमेशा राजनीतिक स्तर पर ’’अवसरवादी अभिनेता’’ के रूप में जाना गया। भाजपा के अंदर ही उनकी छवि को लेकर और किसी भी गठजोड़ के मुद्दे पर भले ही खुलकर विरोध न हुआ हो लेकिन ’’मन की बात’’ के समय भाजपा नेताओं के समक्ष नीतिश कुमार एक खलनायक के अलावा कुछ नहीं रहे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जो छवि पिछले 9 साल के दौरान बनी और हाल के दो साल में तेजी से उनका जो व्यक्तित्व निखरा उसके कारण वह देश ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर के नेता बन गए। उनकी ईमानदारी, दूरदर्शिता तथा तपस्वी जीवन एवं व्यक्तित्व का दीवाना हर कोई हो गया जिसके कारण भाजपा को लगातार फायदा होता रहा। इसी दौरान जो गतिविधियां नीतिश कुमार बिहार में भाजपा और नरेंद्र मोदी को लेकर चला रहे थे उससे पार्टी के नेता ही नहीं बल्कि आम जनता में भी ’’रोष एवं क्रोध’’ दिखायी पड़ता रहा। बिहार को छोड़ दीजिए, शेष देशवासियों और विशेषकर भाजपा शासित राज्यों में आम लोगों ने कल्पना भी नहीं की थी कि नीतिश कुमार का स्वागत एक बार फिर भाजपा करेगी।

खैर! राजनीतिक मजबूरियां होती हैं। आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा को 400 सीटें प्राप्त करना है और इसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उन्हें संभवतः नीतिश कुमार को गले लगाना पड़ा अर्थात विष का घूट पीना पड़ा है। लेकिन डर इसी बात का है कि अपने जीवन में दलबदलू, गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले और पलटूमार की राजनीतिक उपाधियां प्राप्त कर चुके नीतिश कुमार से भाजपा को सावधान रहना होगा। हर कदम पर भाजपा को उन पर नजर रखनी होगी। पौराणिक स्तर पर अगर जहर कभी अमृत बन जाता है तो अधिकांश बार जहर, जहर का ही काम करता है।
(UPDATED ON 28TH JANUARY 2024)