PM lays foundation stone and inaugurates various projects in Jharkhand//// Modi takes part in cleanliness drive with youngsters ////Modi receives congratulatory messages on Swachh Bharat Mission///Coal Ministry Successfully Concludes Swachhta Hi Seva Campaign/////'धरती पर सभी झूठे मरे होंगे तब राहुल का जन्म हुआ होगा-शिवराज सिंह चौहान?////-धर्मस्थलों में युवतियों एवं बच्चों की मौजूदगी खुली किताब की तरह हो//////
Home | Latest Articles | Latest Interviews |  Past Days News  | About Us | Our Group | Contact Us
-संपादकीय--’’कर्म’’ को ’’धर्म परिवर्तन’’ तक न ले जाईये

-संपादकीय--’’कर्म’’ को ’’धर्म परिवर्तन’’ तक न ले जाईये


मध्यप्रदेश के शिवपुरी के एक इलाके में जाटव समाज के 40 परिवारों के बौद्ध धर्म अपनाने का समाचार रविवार को सुर्खियों में रहा। आरम्भिक स्तर पर जो कारण सामने आया उसके अनुसार एक समारोह में झूठे पत्तल इस समाज के लोगों से उठवाने का काम दिया गया। हालांकि प्रशासनिक स्तर पर इस मामले की जांच की जा रही है तो वहीं इस बात पर भी यकीन नहीं किया जा सकता कि मात्र एक सामाजिक बुराई होने के एक दिन के अंदर ही जाटव समाज के 40 परिवारों ने धर्म परिवर्तन कर लिया। लेकिन यह सत्य है कि जो आरोप जाटव समाज ने लगाया तथा जिस आरोप के कारण उन्होंने दूसरे धर्म को अपनाया वह अपने आप में गंभीर विषय इसलिए बन जाता है कि कहीं न कहीं से सनातन धर्म के अंदर जात-पति, गरीबी-अमीरी,सामाजिक भेदभाव तथा अस्पृश्चता की जड़े भले ही अब कमजोर हो चुकी हों लेकिन कहीं न कहीं से अस्पृश्यता का भाव उन लोगों के प्रति है जो कि गंदगी एवं मलमूत्र को साफ करने के काम में लगे हुए हैं।

हम यह बताना चाहेंगे कि जिस वक्त भारतीय सनातन धर्म की स्थापना या शुरूआत भारतीय धर्मग्रंथों के अनुसार हुई उसमें क्षूद्र वर्ग सामने आया जिसका काम था कि वह मनुष्य, मनुष्यों की बस्तियों या संस्थानों को स्वच्छ करे। उसी वक्त कई कार्यों का दायित्व समाज के लोगों को सौंपा गया था जिससे कि मनुष्य जाति आगे बढ़ सके। इसमें क्षत्रिय को यौद्धा का दायित्व सौंपा गया तो वहीं शिक्षित होने के कारण धार्मिक कार्यों के लिए ब्राह्मण समाज की शुरूआत करवाई गई। इसी प्रकार व्यापार का दायित्व अग्रवंश को सौंपा गया अनादिकाल से यह व्यवस्था चलती रही लेकिन वक्त के साथ या शनै...शनै क्षुद्र को दलित बताकर हेय दृष्टि से देखा जाने लगा। आजादी के पूर्व महात्मा गांधी ने इस पीड़ा को समझते हुए इस वर्ग के उत्थान के लिए ’हरिजन’ शब्द को समाज के बीच रखा जिसका अर्थ था कि ’हरि अर्थात भगवान’ और ’जन’ याने हरि का प्रिय। आजादी के बाद इस शब्द को मान्यता भी मिली तथा समाज में इस वर्ग को लेकर सकारात्मक परिवर्तन भी आया लेकिन अपने आप को समाज में सर्वश्रेष्ठ और धनवान तथा ताकवर मानने वाले कुछ लोगों ने स्वीकार नहीं किया जिसका परिणाम यह निकला कि दलित समाज कभी न कभी और किसी न किसी मौके पर ’जलालत’ झेलता रहा तथा इसके परिणाम स्वरूप इस वर्ग के लोग धर्मांतरण करने लगे।

अब आईये हम महात्मा गांधी के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दलित समाज के प्रति उठाये गये कदमों की कर लेते हैं। उन्होंने अपने कार्यकाल में दलित समाज के उत्थान की दिशा तय की। उन्होंने स्वयं झाड़ू हाथ में लेकर स्वच्छता की शुरूआत करवाई। उन्होंने राजनीतिक स्तर पर स्वच्छता कार्य में सभी को आगे बढ़कर हिस्सा लेने के जिए जागृत किया और केंद्र सरकार में मंत्रालय भी गठित किया। क्या इस कार्य को करने से श्री मोदी तथा अन्य समाज सुधारक दलित अथवा क्षुद्र वर्ग की श्रेणी में आ गए? संपूर्ण भारतीय समाज तथा अपने को उच्च जाति का मानने वाले लोग कल्पना करें कि अगर उनके घरों, मकानों, दुकानों, गलियों, मुहल्लों में की गलियों, नालों में कचरा और गंदगी हटाने वाले लोग नहीं हों तो क्या शेष उच्च जाति के लोग स्वच्छ रह सकते हैं? क्या वो दुर्गंध से बच सकते हैं? क्या वो इस दुर्गंध के कारण स्वस्थ्य रह सकते हैं?ा

इस संपादकीय के माध्यम से हम यही कहना चाहते हैं कि ’’कर्म को धर्म’’ से बिल्कुल भी न जोड़ा जाए। हर प्रकार का कर्म भगवान का वरदान है तथा समाज और देश को बनाये रखने के लिए हर कर्म महान है। किसी को भी दलित होने के कारण हेय दृष्टि से न देखा जाए और जब कभी ऐसा भाव आए तो कम से कम कौरोनाकाल को अवश्य याद कर लें। अभी दो साल ही हुए हैं इस महामारी को। कोरोनाकाल में ब्राह्मण, बनिया, जाट अथवा क्षत्रीय सभी समाज के लोगों को अपने घरों की गंदगी स्वयं साफ करनी पड़ी। कोरोनाकाल में इस वर्ग के लोगों ने अपने घरों के कचरे को साफ किया। उन्होंने शौचालय और मूत्रालय स्वयं साफ किए तो क्या इस ’’कर्म’’ से वो छोटे हो गए या उनकी जाति अथवा समाज दलित या क्षूद्र हो गया?
(updated on 4th feb 24)