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-संपादकीय-’स्ट्रीट डॉग’ अब ’’शहरी आंतरिक
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-संपादकीय-’स्ट्रीट डॉग’ अब ’’शहरी आंतरिक आतंकवाद
पूरी विनम्रता और पशुओं के प्रति आस्था के साथ हम देश के लोगों जो कि श्वान अर्थात डॉग अर्थात कुत्तो से प्रेम करते हैं के समक्ष रख रहे हैं। यही विषय हम देश के कर्णधारों जो कि राजनीति और सरकार से लेकर शासन में हैं., के समक्ष भी प्रस्तुत कर रहे हैं कि जिस तेजी के साथ शहरों का फैलाव हो रहा है उसके क्रम में ही डॉग्स के प्रति स्नेह और अपनत्व ने अब आंतरिक आतंकवाद का रूप ले लिया है। देश के महानगरों चाहे दिल्ली हो या कोलकाता या फिर मध्यप्रदेश के भोपाल अथवा इंदौर या अन्य शहरों में ’’पालतू डॉग और आवारा डॉग्स’’ एक विकराल समस्या बन चुके हैं। बीते महीनों और वर्षों में अनगिनत ऐसी घटनाएं हुई हैं जिनमें ’’आवारा डॉग्स’’ ने राह चलते लोगों को काटा तो वहीं ’’पालतू डॉग’’ के कारण स्थानीय लोगों में संघर्ष की घटनाएं भी हुई हैं। शहरों के अंदर या किसी भी बस्ती में अगर देखा जाए तो कचरा बीनने वालों और बुजुर्गों पर अक्सर स्ट्रीट डॉग हमला करने को हमेशा तैयार रहते हैं और ऐसी घटनाएं भी हुई हैं। हाल ही में एक बच्चे की मौत स्ट्रीट डॉग के काटने के कारण हुई तो वहीं एक अन्य घटना में स्ट्रीट डॉग ने एक शिशु को नोच डाला। इस तरह के अनेक मामले बीते महीनों और वर्षों में देश के कई हिस्सों में समय-समय पर हुए तथा मीडिया के माध्यम से जनसाधारण तक पहुंचे। इसी प्रकार दो पहिया से लेकर चार पहिया वाहनों के पीछे स्ट्रीट डॉग्स के दौड़ लगाने से भी दुर्घटनाएं हुईं। किसी भी पार्क या गार्डन में पालतू और स्ट्रीट डॉग्स के कारण सुबह और शाम की भ्रमण दिनचर्या रखने वालों विशेषकर महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों के लिए भी ये डॉग्स एक विकराल समस्या बन चुके हैं।
किसी भी महानगर की बस्ती और विशेषकर अपार्टमेंट में अगर एक या दो लोगों के पास भी ’श्वान’ है तो उसके कारण दूसरे निवासियों को किस तरह की परेशानी होती है इस विषय को समझने का प्रयास कभी नहीं किया गया। जिनके पास ’श्वान’ है वो अक्सर बाहर जाते वक्त अपने मकानों या फ्लेटों को बंद कर देते हैं और कई घंटों तक ’श्वान’ के भौंकने,रोने और चीखने की आवाजें गूंजती रहती हैं। इन आवाजों से मकानों और फ्लेटों में रहने वालों को विशेषकर रात के वक्त सबसे ज्यादा तकलीफ होती है। इतना ही नहीं महानगरों में बने अपार्टमेंटों में ’श्वान’ के द्वारा गदंगी किए जाने और उसके बाद स्थानीय लोगों के आक्रोश की घटनाएं भी लगातार बनी हुई हैं।
हम इस संपादकीय के माध्यम से इस ज्वलंत प्रश्न को उठा रहे हैं। हम यह कहना चाहते हैं कि महानगरों या शहरी लोगों में श्वान को पालने के शौक बढ़ रहा है इससे शायद ही किसी को कोई एतराज हो। श्वान को अगर तरीके से रखा जाता है और उसके कारण किसी को कोई दिक्कत नहीं होती है तो विरोध का सवाल ही नहीं लेकिन जब स्ट्रीट डॉग्स से लेकर पालतू डाग्स के प्रति अपनी जिम्मेदारी से शासन, प्रशासन और डाग्स प्रेमी मुंह मोड़ लेते हैं तो उसी का परिणाम है कि देश के कई पुलिस स्टेशनों में डॉग्स के कारण घटनाओं, दुर्घटनाओं तथा लोगों के बीच संघर्ष की घटनाओं के मामले दर्ज हैं और दर्ज हो रहे हैं।
एक मुख्य बात यह भी है कि शहरों में प्राधिकरणों, बिल्डरों ने लाखों और करोड़ों रूपये के फ्लेट खरीदने, बेचने और रखने के नियम तो बना दिये लेकिन डॉग्स प्रेमियों के लिये नियम और शर्तें तय नहीं की गईं। डॉग्स प्रेमियों ने फ्लेट और मकान अपने रहने के लिए खरीदे लेकिन शौक और सुरक्षा के नाम पर दूसरों या पड़ोसियों के अधिकारों और सुरक्षा की अनदेखी की। यही स्थिति हर राज्य के नगर निगमों, नगर पालिकाओं और स्थानीय निकायों की है जिन्होंने अपने शहर के लोगों की स्ट्रीट डॉग्स से सुरक्षा को लेकर अपने अधिकारों का सही दिशा में उपयोग नहीं किया। गलियों और बस्तियों में स्ट्रीट डॉग्स नियंत्रण को लेकर कभी सख्त कदम उठाने की दिशा में कार्रवाई नहीं हो पाई।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि जो श्वॉन नागरिकों के लिए खतरा हों, नागरिकों की दिनचर्या को प्रभावित करते हों और आपसी संघर्ष को बढ़ावा दे रहे हैं वो ’’आंतरिक आतंकवादी’’ से कम कम नहीं है। आतंरिक आतंकवादियांे से किस तरह से निपटा जाता है इसकी व्याख्या करने या समझाने की जरूरत नहीं है। इस दिशा में शासन, प्रशासन तथा जिम्मेदार हस्तियों को ही आगे बढ़ना होगा जो नागरिकों की सुरक्षा को लेकर जिम्मेदार हैं और अपनी जिम्मेदारी से न मुंह मोड़ सकते हैं और न ही बच सकते हैं।
(updated on 24th january 24)
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