आजादी की 66वीं सालगिरह मनाते हुए हर देशवासी को इस बात का गर्व होता है कि वह अपने इस देश में पूरी तरह से आजाद है। अपनी सोच और मानसिकता के आधार पर अपना कार्य और व्यवसाय कर सकता है। वह कुछेक हिस्से को छोड़ देश के किसी भी हिस्से में विचरण कर सकता है। पूर्व से लेकर पश्चिम और उत्तर से लेकर दक्षिण के बीच दर्जनों राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों की आवोहवा का आनंद ले सकता है। इस आजादी को दिलवाने में पूरे 200 साल लगे हैं उन भारतवासियों को जो अब इतिहास का हिस्सा हो गए हैं। उनकी कुर्बानियों का ही यह परिणाम है कि हम अपने मुल्क में हर तरह के रंग, हर तरह की संस्कृति, हर तरह की प्रकृति सहित विभिन्न नैसर्गिक उपहारों को देख व महसूस कर सकते हैं। यह वह देश है जहां हर मौसम में हर ऋतु का आगमन होता है। ग्रीष्म, शीत और वर्षा का मौसम का आनंद प्राप्त करने वालों में भारतीय ही शामिल हैं। अधिकांश देशों को पृथ्वी पर यह सौभाग्य नहीं है। इसी देश में हम विभिन्न पर्व ईद, दीपावली, क्रिसमस, बैसाखी जैसे बड़े पर्वों के साथ अनेकानेक पर्व मिलकर मनाते हैं। हमारे यहां प्रकृति की दौलत भरपूर है। हमारे यहां विभिन्न भाषाएं और विभिन्न धर्म हैं।
आजादी की 66वीं सालगिरह पर इन विषयों को उठाते हुए दर्द इस बात का होता है कि हम आजादी के अर्थ को गलत समझ बैठे। हर भारतीय अपने घर में आजादी के साथ रहते हुए अनुशासन का भी पालन करता है और तभी उसका घर अर्थात परिवार चलता है। अधिकांश परिवारों में अनुशासन का पालन किया जाता है और इसलिए वह परिवार और घर कहलाता है। लेकिन यह भी सत्य है कि हम अपने देश को सिर्फ एक देश मानते हैं ना कि घर और ना ही परिवार। हम अपने मुल्क के प्रति अनुशासन का काम नहीं करते हैं। इसी का परिणाम है कि आज देश में करीब 40 से 50 प्रतिशत आबादी झुग्गी-झौपड़ियों, गंदगी, गली मुहल्लों और किराये के मकानों में रहती है। अनुशासन की कमी का ही कारण है कि हम अपने लिए तो कमाते हैं और परिवार का भरण-पोषण करते हैं लेकिन अधिक कमाने पर समाज,प्रदेश तथा मुल्क के गरीब लोगों का पालन करने से दूर हट जाते हैं। हमने मेहनत करने के रास्ते को तो आजादी के आरंभ के दशकों में पकड़ा लेकिन पिछले दो दशक के दौरान हमने पश्चिमी सभ्यता, फैशन, माॅल्स, सैक्सी आधुनिकता को अपनी प्रगति के लिए इतनी तेजी से पकड़ा कि आज कथित प्रगतिशीलता के नाम पर सड़कों पर जाम लगने लगा है। गली और मुहल्लों में निकलने के लिए जगह नहीं है। हम अपनी आजादी के नाम पर कहीं पर भी वाहन खड़े कर देते हैं। हम कहीं पर भी अतिक्रमण कर लेते हैं और हम कहीं पर भी कचरे को डाल देते हैं। याने हमने परिवार के अनुशासन को देश के स्तर पर लागू नहीं किया। हमने अपने परिवार की तरफ तो ध्यान दिया लेकिन परिवार के बाद पड़ोसी, समाज और मुल्क के लोगों की तरफ ध्यान नहीं दिया जिसका परिणाम यह निकला कि कुछ लोग तो शिक्षित और संपन्न होते चले गए लेकिन दूसरों को गरीबी और अशिक्षा से निकालने का काम हमने नहीं किया। परिणाम यह निकला कि आज समाज का एक हिस्सा असंतुलित होकर अपराध क तरफ बढ़ गया है। विकास का जो धन देश के निर्माण कार्यों में लगना था वो अब अपराध को नियं़ित्रत करने में लग रहा है। हमने इतने अधिक वाहन सड़कों पर उतार दिये या उतर जाने दिये कि अब हम खुद उसका शिकार होने लगे हैं। जिसके पास अधिक धन है उसने सुविधाओं को खरीद लिया है और उसका आम जनजीवन से कोई संपर्क नहीं है। परिणाम यह निकला कि धर्म के आधार पर देश बंटता चला गया। आजादी के आंदोलन में बिना धर्म के आधार पर लोगों ने हिस्सा लिया लेकिन आजादी के बाद हम और अधिक कट्टर हिंदू तथा मुसलमान होते चले गए।
बीते 65 साल की देश की आजादी की यात्रा को चंद शब्दों के माध्यम से हम देशवासियों को आईना दिखाने का प्रयास कर रहे हैं। हम यह महसूस करते हैं कि हमने आजादी के अर्थ को अपने जीवन में उतार तो लिया लेकिन आजादी के साथ अनुशासन के विषय को महत्व नहीं दिया। परिणाम यह है कि आज 66 वें साल में भी मुल्क विकासशील राष्ट्रों में हैं जबकि इतने वर्ष में तो हमें विकसित हो जाना चाहिए था। इतने वर्ष में तो एक व्यक्ति बूढ़ा हो जाता है और ईश्वर की अदालत में जाने के लिए तैयार हो जाता है लेकिन देश आज तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह कहने की स्थिति में नहीं है कि हम परिपक्व, हम संपन्न, हम अपराधमुक्त, हम गरीबी से मुक्त और भ्रष्टाचार से रहित हो गए हैं। इन शब्दों को अगर हमारे पाठक अपने जीवन में उतारें, अपना चेहरा आईने में देखें तो वास्तविकता समझ में आ जाएगी। 66वें स्वतंत्रता दिवस की बधाई देते हुए हमें आशा है कि आने वाले चंद वर्ष में हम हिंदू, मुसलमान, सिख,ईसाई और सभी धर्म के लोग अनुशासन की परिभाषा को समझेंगे तथा गरीबी और मुफलिसी को मिलकर खत्म करेंगेे। जयहिन्द्! जय भारत।
-अपडेटेड 15 अगस्त 2012, नई दिल्ली।reason why husband cheat
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