65 साल हो गए हैं देश की आजादी को। 66वें साल में बड़ा भाई हिन्दुस्तान आजादी का जश्न मना रहा है तो छोटा भाई पाकिस्तान भी आजादी का मजा ले रहा है। लेकिन यह एक सत्य है कि 65 साल के परिपक्व होने के बावजूद हमनेे (हिंदू और मुसलमानों) देश को संवारने और हममें ही से कुछ ने देश को बरबाद करने और जातीय दंगों की तरफ ले जाने का काम भी किया है। इस देश में जो मुसलमान रह रहे हैं वो इसी माटी के हैं क्योंकि वो पाकिस्तान नहीं गए और उनकी भावी पीढ़ियां आज हमारे बीच हैं। लाखों हिन्दू पाकिस्तान वाले हिन्दुस्तानी-हिस्से को छोड़ भारत में शरणार्थी के रूप में आए थे। 15 अगस्त 1947 के वक्त जो हिंदू और मुसलमान थे उन्होंने निश्चित रूप से अपनी आज की पीढ़ियों को बताया होगा कि कितनी मुश्किलों, परेशानियों, जलालत और गरीबी के बीच उन्होंने अपने जीवन को आगे बढ़ाया और आज वर्तमान पीढ़ी उस आजादी का आनंद ले रही है। लेकिन सच्चाई यह है कि हम आजादी के अर्थ को गलत रूप में ले गए और हमने कुछ अपवादों और उदाहरण को छोड़ कभी भी -एक दूसरे- की मदद तहे-दिल से नहीं की। अगर की होती तो आज देश में सम्प्रदायवाद का झंडा नहीं होता और दोनों ही कौम पूरी तरह से विकास तथा संपन्नता के बीच मुल्क की तरक्की में साथ दे रही होतीं। पेश है एक विवेचन
अगर पाकिस्तान में रह रहे हजारों हिंदुओं से आज एक सवाल पूछा जाए कि क्या वो हिन्दुस्तान में रहना चाहते हैं तो शायद ही कोई ऐसा होगा जो इंकार करेगा। अगर किसी हिन्दुस्तानी मुसलमान से पूछा जाए कि क्या वह पाकिस्तान में बसना चाहता है तो शायद ही कोई ऐसा हो जो ऐसा कहे। आखिर इस सच्चाई का कारण क्या है कि पाकिस्तान में रह रहा हिंदू भारत में आ कर बसना चाहता है लेकिन एक हिन्दुस्तानी मुस्लिम पाकिस्तान में बसना नहीं चाहता? इसका कारण यही है कि 65 साल के अंतराल में इस मुल्क में लोकतंत्र और भाई-चारा मजबूत हुआ है। व्यापार, व्यवसाय और रहन-सहन के बीच दोनो ंही कौम के लोग रह रहे हैं और कारोबार तथा नौकरी के बीच एक-दूसरे की जरूरतों को पूरा कर रहे हैं। लेकिन इसके बावजूद यह सत्य है कि इतिहास की गल्तियों को हम वर्तमान में खत्म करने का प्रयास नहीं कर रहे हैं और इसका ही परिणाम है कि कभी गोधरा कांड होता है, कभी मुंबई के दंगे होते हैं और कभी असम में भीड़ बेकाबू हो जाती है तो कभी मुंबई में सड़कों पर तांडव मचता है।
इस देश के आम नागरिकों जिसमें हर कौम का व्यक्ति शामिल है ने जो सबसे बड़ी गलती की है वह यही है कि उसने लोकतंत्र की खुली हवा का मजाक ज्यादा उड़ाया है। उसने लोकतंत्र की रस्सी को तो मजबूत किया लेकिन गरीबी को खत्म करने की दिशा में मिल-जुलकर कोई प्रयास नहीं किया। कुछ लोग सभी समुदायों में विकास और प्रगति की मंजिल को छूते हुए संपन्न तो हो गए लेकिन अधिकांश ने पीछे छूट गए अपने समाज और देशवासियों को गरीबी, जलालत और जाहिलता से निकालने का प्रयास नहीं किया। कुछ लोग भ्रष्टाचार और अपराध के सहारे जब संपन्न होकर अमीर बन गए तो इस देश के लोगों ने उनके पैर छूना शुरू कर दिये। पैर छूना कोई गलत बात नहीं है लेकिन कुछ ने उनके ही रास्ते को पकड़ लिया जिसके सहारे वो संपन्न और अमीर होकर ऐश्वर्य तथा सुख-सुविधाएं भोगने लगे। परिणाम यह निकला कि हमारे देश में विकास और प्रगति का जो रास्ता शिक्षा, साक्षरता, सहयोग, भाईचारा, सौहार्द और आपसी रिश्तों के माध्यम से जाता था उसमें भ्रष्टाचार और अपराध का बोलवाला हो गया। आज कुछ समाज को छोड़ दिया जाए तो देश की अधिकांश आबादी जिसमें हिंदू, मुसलमान और सिख मूल रूप से शामिल हैं गरीबी का सामना कर रहे हैं। हिंदू और मुसलमानों में ही अधिकांश आबादी झुग्गी-झौपड़ियों, गंदी बस्तियों, किराये के मकानों में रह रही है तो दूसरी ओर भारतीय जेलों में अपराधियों की संख्या कम नहीं हो रही है।
देश की आजादी की 66वीं वर्षगांठ के मौके पर इस वास्तविकता को हर देशवासी को समझने की आवश्यकता है कि विकास का रास्ता साक्षरता, शिक्षा, सहयोग, सौहार्द तथा मदद के माध्यम से ही जाता है। हर व्यक्ति, हर समाज और हर कौम को मदद की आवश्यकता ठीक उसी तरह से होती है जैसे एक छोटे से शिशु या बच्चे को। इस सच्चाई को हमें समझना होगा कि हमें अपने संकीर्ण विचारों और मानसिकता को त्यागना होगा। अगर अपनी वर्तमान और भावी पीढ़ी को संपन्न तथा प्रगतिशील बनाना है तो हमें कौमी सौहार्द को कायम करना तथा मजबूत करना होगा। हमें एक-दूसरे की मदद करनी होगी। हर संपन्न व्यक्ति को मदद के लिए आगे आना होगा तथा हर गरीब को सच्चाई और ईमानदारी के रास्ते को पकड़ना होगा। जो लोग सच्चाई और ईमानदारी के रास्ते पर चलते हैं उनके लिए रास्ता तो लंबा होता है लेकिन असीम सुख और समृद्धि उसी में आती है और इस सच्चाई को बयां करने के लिए हमारे गीता और कुरान की इबारतें, पन्ने, अलफाज काफी हैं। हम उम्मीद करते हैं कि सभी कौम के लोग अपनी भावी पीढ़ियों की संपन्नता और खुशहाली के लिए मुल्क की 66वीं आजादी की वर्षगांठ पर यह शपथ अवश्य लेंगे और देश के लिए एक नई कहानी नये असीम जोश के साथ लिखेंगे।
-अपडेटेड 15 अगस्त 2012, नई दिल्लीhow often do women cheat on their husbands
link read here