न्यायपालिका क्या बिक चुकी है? न्यायपालिका के कुछ विशिष्ट में धन,बल व प्रभाव काम करता है? यह सवाल हम नहीं उठा रहे हैं बल्कि इस सवाल को नये सिरे से उठाया है देश की एक जिम्मेदार राजनीतिक पार्टी तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री तथा भारतीय राजनीति में जमीनी संघर्ष कर केंद्र और पश्चिम बंगाल की राजनीति में शीर्ष नेतृत्व प्राप्त करने वाली ममता बनर्जी ने। हम तो सिर्फ उनके इस सवाल की मीमांसा अर्थात समीक्षा कर रहे हैं कि इस सवाल को जब वह स्वतंत्रता दिवस की पूर्व बेला पर उठा रही थीं उस वक्त मौका था पश्चिम बंगाल विधानसभा के 75 वर्ष पूर्ण होने का। वह इस मौके पर एक सेमीनार में बोल रही थीं। उनके इस आरोप की जद में पूरी की पूरी न्यायपालिका आ गई। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं है। न्यायिक फैसले भी खरीदे जाते हैं।
ममता बनर्जी एक राज्य की मुख्यमंत्री हैं लेकिन यह सत्य है कि भारतीय राजनीति और विशेषकर केंद्र की सत्ता को हिलाने-डुलाने में भी उनकी भूमिका हमेशा बनी रहती है। उनकी पार्टी के चंद सांसद ही हैं लेकिन चार कंेद्रीय मंत्री उनके कोटे में हैं और तो और रेलवे मंत्रालय तो पिछले आठ साल से उनकी ही पार्टी के पास है। इस मंत्रालय का माई-बाप प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह नहीं हैं। इस मंत्रालय की रहनुमा ममता बनर्जी ही हैं। वह भले ही पश्चिम बंगाल जैसे राज्य की मुख्यमंत्री हैं लेकिन रेलवे मंत्रालय की रेल कोलकाता से ही चलती है। वह जब चाहती हैं इस रेल मंत्रालय के ड्रायवर को बदल देती हैं। अगर केंद्र सरकार रेलवे की प्रणाली में कोई संशोधन अपने स्तर पर करती है तो वह केंद्र के निर्णय को पलट देती हैं। जब वह नाराज होती हैं तो पश्चिम बंगाल ही नहीं बल्कि केंद्र की राजनीति में भी प्रलयरूपी तांडव का वातावरण उपस्थित होने लगता है। भारतीय जनता पार्टी भी उनको अपने साथ केंद्र में रख चुकी है और पिछले दिनों मुलायम सिंह भी उनके साथ कुछ घंटों के लिए उस वक्त मिल गए थे जब राष्ट्रपति जैसे पद पर कांग्रेस के उम्मीदवार प्रणव मुकर्जी के नाम पर वह सहमत नहीं थीं। इस बात को भी ध्यान में रखना होगा कि ममता बनर्जी ने जमीनीं वास्तविकता को देखा है। वह आज भी अपनी निजी मारूति कार का ही उपयोग करती हैं और जनता के बीच इस तरह से उपस्थित होती हैं कि जनता को लगता है कि वह पश्चिम बंगाल की गांधी हैं। ममता को सुरक्षा की भी आवश्यकता महसूस नहीं होती है। दिल्ली में जब रेलवे मंत्री पद पर थीं तब वह बिना सुरक्षा तामझाम के दिल्ली की सड़कों पर आवागमन रहती थीं। उनकी सादगी को लोगों ने पसंद किया तो उनके गुस्से पर कई बार देश में बौद्धिक वर्ग ने बहस भी चलाई। लेकिन यह सत्य है कि उन्होंने समय-समय पर भारतीय राजनीति, भारतीय लोकतंत्र और उसके अंगों पर प्रहार कर विषयों को बहस के लायक बनाया। ताजा प्रहार न्यायपालिका पर है जिसमें वह आरोप लगा रही हैं कि हमारी न्यायपालिका बिक चुकी है।
हम इस विषय को केंद्र सरकार या राजनीतिक दलों के समक्ष नहीं रख रहे हैं बल्कि हम न्याय जगत की हस्तियों के समक्ष रख रहे हैं कि न्याय जगत ही इस आरोप पर अपना जवाब दे क्योंकि न्याय जगत स्वयं कहता है कि वह किसी के दबाव में काम नहीं करता है और देश के कानून का पालन करता है। लेकिन इस सत्य के बावजूद यह भी एक सत्य है कि पिछले कई सालों में दिखाई पड़ा है कि न्यायपालिका कहीं ना कहीं से आरोपों में घिरी है। देरी से न्याय मिलने के लाखों मामले विभिन्न अदालतों में आज भी लंबित है। यह भी सत्य आंखों के समक्ष दिखाई पड़ता है कि न्याय देने और दिलवाने में कई विशिष्ट लोगों के साथ समझौते किए जाते हैं। इतना ही नहीं न्यायपालिका के पास भले ही एक संपूर्ण व्यवस्था ना हो लेकिन सुविधाएं अवश्य हैं। हालांकि विलम्ब से न्याय का कारण यह भी कहा जाता है कि न्याय मिलने में भले ही देरी हो जाए लेकिन कोई निरपराध व्यक्ति अपराधी नहीं बनना चाहिए लेकिन शीघ्र न्याय देने के पैमाने का तो हनन होता ही है। इसी प्रकार महंगी न्याय व्यवस्था भी चिंता का विषय है।
हम न्याय जगत की शीर्षस्थ हस्तियों से यही आग्रह करेंगे कि वो अपने अंतर्मन में झांके और इस ताजा प्रसंग के संदर्भ में अपने आप को और अधिक उज्जवल करने की कोशिश की दिशा में काम करें जिससे कि 125 करोड़ की आबादी वाले इस देश में आम जनता न्याय पाने के लिए न्याय जगत की सीढ़ियों पर दम ना तोड़े।
-अपडेटेड 16 अगस्त 2012, नई दिल्ली।my fiance cheated on me
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