-अधिकांश भारतीय अनजान हैं इन भारतीयों से। नेपाली और चीनी कहते हैं इन्हें
पूरा देश 28 राज्यों, 6 केंद्र शासित प्रदेशों और एक राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से बनता है। हम कश्मीर के आतंकवाद के कारण कश्मीर को तो जानते हैं लेकिन पूर्व से लेकर पश्चिम और उत्तर से लेकर दक्षिण तक करीब 125 करोड़ की आबादी की करीब 4 प्रतिशत उस आबादी से अधिकांशतः परिचित नहीं हैं जो कि रोजाना आतंकवाद, घुसपैठ, भेदभाव तथा नागरिकता को लेकर एक अलग मुहाने पर खड़ी है। ये राज्य असम, मेघालय, अरूणाचल प्रदेश, मिजोरम, नगालैंड और त्रिपुरा हैं जहां से देश की संसद के लिए 25 सांसद चुने जाते हैं। इन 6 राज्यों को भारत की सिक्स सिस्टर्स के नाम से भी पुकारा जाता है लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि शेष भारत की अधिकांश आबादी इनके चेहरों के आधार पर कभी इन्हें चीनी तो कभी नेपाली कहती अथवा समझती है। नार्थ-ईस्ट के सबसे शिक्षित इन लोगों के साथ अधिकांश हिन्दुस्तानियों का संपर्क ना के बराबर है। अपने ही देश में ये लोग बेगाने होकर रह गए हैं। असम के हालिया दंगों के कारण 14 से 16 अगस्त के बीच कर्नाटक में इन्हें अज्ञात तत्वों ने राज्य से निकल जाने की अफवाह फैलाई तो फिर ये लोग एकबार चर्चा में आए हैं।
किसी देश में अपनी पहचान बनाने के लिए क्या जरूरी है कि हमेशा चर्चा में रहा जाए और उस रास्ते को पकड़ा जाए जो आतंकवाद या अपराध अथवा अपराधिक प्रवृत्ति का है? कम से कम कश्मीर के मामले में अगर यह सत्य है तो यह सत्य देश के नार्थ-ईस्ट के 6 राज्यों के लिए अभिशाप साबित हुआ है। इन राज्यों के लोग आज देश में सबसे अधिक सहमे, डरे हुए और अलग-थलग दिखाई पड़ते हैं। देश की राजधानी दिल्ली हो या महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई अथवा देश का कोई भी हिस्सा सभी जगह इन्हें सिर्फ चीनी अथवा नेपाली ही उस वक्त तक समझा और महसूस किया जाता है जब तक कि वह एक बार संपर्क में ना आ जाएं। यह भी सत्य है कि नार्थ ईस्ट के लोगों से शेष भारत के लोगों ने अपनी दूरी को बनाये रखा है और इसका कारण अज्ञानता ज्यादा है क्योंकि देश के लोग इन राज्यों के बारे में बहुत कम जानते हैं। चीनी और नेपाली शब्द ने उन्हें देश के शेष हिस्सों से पूरी तरह से अलग-थलग कर दिया है। उनके पहनावे में कोई फैशन तथा सैक्स ना होकर सिर्फ संस्कृति ही झलकती है। वह पूर्वी और मध्य भारत के अधिकांश लोगों के मुकाबले कहीं ज्यादा, शिक्षित, कहीं ज्यादा संस्कृति के प्रति जागरूक, कहीं ज्यादा प्रकृति के नजदीक रहते हुए कहीं ज्यादा हिंसा अथवा हिंसक व्यवहार का सामना कर रहे हैं। दिल्ली के अपराधिक मानसिकता के लोग नार्थ-ईस्ट की लड़कियों को -चिंकी- के नाम से संबोधित कर हमेशा जलील करते रहे हैं। दिल्ली में तो नार्थ-ईस्ट की लड़कियों के साथ यौन अपराध और बलात्कार के कई मामले सिर्फ इसलिए भी होते हैं या हो जाते हैं क्योंकि उन्हें चीनी और नेपाली समझ लिया जाता है। हम शेष भारतवासी आज तक नार्थ-ईस्ट के लोगों को गले नहीं लगा पाये हैं। हाल ही में जब कर्नाटक में अध्ययनरत और नौकरियों में लगे नार्थ-ईस्ट के युवा वर्ग को कर्नाटक छोड़ने की धमकी कथित रूप से कुछ शरारती तत्वों ने दी तो एक बार फिर से नार्थ-ईस्ट के ये निवासी देश में चर्चा में आए हैं।
शेष हिन्दुस्तान के लोगों को हम नार्थ-ईस्ट के लोगों के बारे में ही जानकारी देकर यह बताना चाहते हैं कि ये हमारे ही देश के लोग हैं। इनके चेहरों के आधार पर इन्हें चीनी अथवा नेपाली ना समझा जाए बल्कि इन काबिलियत पर भी गौर किया जाने की आवश्यकता है। उत्तरप्रदेश में ही वरिष्ठ आईएएस अधिकारी नृपसिंह नपच्याल इसी नार्थ-ईस्ट के रहने वाले रहे हैं। कर्नाटक के वर्तमान डीजीपी भी नार्थ ईस्ट के ही हैं। इसके अलावा देश के प्रमुख पदों पर भी नार्थ-ईस्ट के अधिकारियों और कर्मचारियों ने अपनी छाप बनाई है। नार्थ-ईस्ट के लोगों ने साक्षरता में सबसे अधिक उच्च स्थान प्राप्त कर गरीबी को अपने से हमेशा के लिए खत्म कर दिया है। नार्थ-ईस्ट के लोगों की एकता ने उन्हें गरीबी के दलदल से प्रायःप्रायः निकाल दिया है। नार्थ-ईस्ट के लोगों ने आधुनिकता को तो स्वीकार किया लेकिन फैशन और सैक्स की बजाय अपनी संस्कृति को ही महत्व दिया है। चीन, म्यामांर और बांग्लादेश की सीमा पर नार्थ-ईस्ट होने के कारण अक्सर इन पर हमले होते रहते हैं। अरूणाचल के लोगों का दुर्भाग्य है कि कभी चीन उन्हें अपना नागरिक कहता है तो कभी हिन्दुस्तान अरूणाचल प्रदेश के लोगों के हितों की रक्षा ही नहीं कर पाता है। लेकिन इसके बावजूद इस सत्य को स्वीकार करने की आवश्यकता संपूर्ण देश को है कि नार्थ-ईस्ट के लोग ही चीन, बर्मा, बांगलादेश की घुसपैठ गतिविधियों को रोकने का काम पूरी देशभक्ति के साथ कर रहे हैं। नार्थ-ईस्ट के लोगों से शिक्षा, सौहार्द और सहयोग के रूप में आपसी विकास से उदाहरण लेने की जरूरत शेष भारत को है।
-अपडेटेड 18 अगस्त 2012, नई दिल्लीreason why husband cheat
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