अधिकांश बार ही नहीं बल्कि हर बार इस सत्य को देखा गया है कि जब भी देश में महंगाई बढ़ती है उसके साथ ही अर्थजगत में भूचाल आ जाता है। केंद्र सरकार और राज्य सरकारें जब भी कोई टैक्स प्रभावशील करती हैं तो उसके साथ ही सबसे पहले उपभोक्ता वस्तुओं के दामों से लेकर जीवन की हर वस्तु को महंगा कर दिया जाता है लेकिन जिस विषय पर ध्यान नहीं दिया जाता है वह है महंगाई बढ़ने के साथ ही महंगाई भत्ते के प्रावधान अर्थात नियम का क्रियान्वयन ना करवाना। सरकार महंगाई तो विभिन्न कारणों के कारण बढ़ा देती है और इतने में ही अपनी इतिश्री कर लेती है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महंगाई से निपटने की वृद्धि दर को यह बताया जाता है कि यह हमारी प्रगति का आधार है लेकिन सरकार महंगाई बढ़ने साथ के महंगाई भत्ते वाले नियम का पालन ना करवा कर भी देश को अधिक गरीबी की तरफ ले जाने का काम कर रही है। इसका परिणाम यह निकला है कि इंसान का प्रतिदिन का भरण-पोषण मुश्किल होता जा रहा है। कुछ लोग इसी कारण आत्महत्या कर लेते हैं, कुछ अपराध का रास्ता चुन लेते हैं, कुछ लोग अपने बच्चों को शिक्षा से दूर कर नौकरी की तरफ लगा देते हैं तो कुछ लोग जीवन को जीने के लिए जितना श्रम प्रतिदिन करते हैं उसमें वो कुछ घंटों की और अधिक वृद्धि कर देते हैं। सभी का उद्देश्य यही होता है कि किसी तरह आज का दिन, वर्तमान सप्ताह और महीना निकल जाए बाकी परमात्मा ही जीवन को पार लगाएगा।
जीवन को जीने की वास्तविकता को अगर केंद्र और राज्यों में कार्यरत सरकारें तथा प्रशासनिक अधिकारी नजदीक से देखें तो उन्हें जीवन की वास्तविकता का पता चल जाएगा। उन्हें इस बात की जानकारी हो जाएगी कि प्रतिदिन का जीवन जीने के लिए आम आदमी को कितना संघर्ष करना पड़ रहा है। विज्ञान और तकनीकी के सहारे एक वर्ग विशेष का वेतन और भत्ते तो लाखों में पहुंच रहे हैं लेकिन अधिकांश सर्वहारा वर्ग जो कि विभिन्न कारणों के कारण निजी कारखानों, निजी दुकानों और निजी प्रतिष्ठानों में काम करता है वहां पर सरकार के मासिक वेतन की दरों और महंगाई भत्ते जैसे नियमों का कोई पालन नहीं होता है। महंगाई बढ़ने के साथ ही स्पष्ट प्रावधान है कि निजी सेक्टर के सभी प्रतिष्ठान, व्यापारी और उद्योगपति अपने यहां कार्यरत दैनिक वेतनभोगियों और मासिक वेतन आधार पर कार्यरत कर्मचारी वर्ग को बढ़ी महंगाई से निपटने के लिए उनके वेतन में महंगाई के अंश के रूप में वृद्धि करें लेकिन इस नियम का 99 प्रतिशत पालन ही नहीं हो रहा है। इसी प्रकार आज विदेशी पूंजी निवेश, देशी पूंजी निवेश और जिम्मेदारियों से बचने के लिए स्वयं सरकार ने -आउट सोर्सिंग-नौकरी को मान्यता प्रदान कर दी है। याने कि किसी कंपनी या सरकारी कार्यालय में जो कर्मचारी काम करते हैं वे दिहाड़ी मजदूर हो गए हैं। उनका वेतन बाहर से दिया जाता है ना कि सीधे तौर पर रोजगार देने वाली कंपनी इस काम को करती है। याने जो कर्मचारी वर्ग है उसके पास उसका मेहनताना तीसरे व्यक्ति के माध्यम से कर्मचारी वर्ग तक पहुंचता है। ना कोई महंगाई भत्ता, ना कोई चिकित्सा भत्ता, ना कोई लीव इत्यादि जैसी सुविधाएं आज अधिकांश निजी संस्थानों में कर्मचारियों को प्राप्त हो पा रही हैं।
हमारा इस दिशा में स्पष्ट रूप से केंद्र और राज्य सरकारों से यही आग्रह है कि टैक्स और पेट्रोलियम पदार्थों के दाम में अगर कीमत बढ़ाना आपकी मजबूरी है तो इस मजबूरी से तो आप निपट लेते हैं लेकिन जिस सर्वहारा वर्ग के लिए आपने निजी सेक्टर में विभिन्न नियम और कानून कायदे तय किए हैं और इसमें महंगाई भत्ता जैसा विषय भी शामिल है; की ओर क्या आपने कभी ध्यान दिया है? क्या आपने इस बात को देखने और समझने की कोशिश की है कि निजी सेक्टर में जिन लोगों का वेतन आज से पांच या कुछ साल पहले जो था उसमें कुछ वृद्धि हुई हैं? निजी सेक्टर क्या अपने कर्मचारियों और श्रमिकों को महंगाई बढ़ने के साथ ही उनके वेतन और भत्तों में वृद्धि करता है? पर्याप्त मेहनत करने के बावजूद अगर एक आम हिन्दुस्तानी अपने हर दिन को जी नहीं पाता तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है? संपन्न और सुविधा प्राप्त वर्ग को तो कोई दिक्कत नहीं है लेकिन सर्वहारा वर्ग के लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति जब नहीं होती है तो यह वर्ग अपने रास्ते से भटकने लगता है और इस सच्चाई को आम सर्वहारा वर्ग के बीच में देखा जा सकता है जो कि देश का मतदाता है, देश की सरकारों के भविष्य को तय करता है, देश की दिशा को अपने वोट के माध्यम से तय करता है और कितने ही राजनीतिज्ञों का जीवन हर साल बनाता चला आ रहा है लेकिन उसके पास आज अगर रहने के लिए मकान नहीं हैं, आय के साधन होने के बावजूद अगर पर्याप्त आय नहीं हो रही है तो वह किस रास्ते पर जाए? आखिर अपनी गरीबी और दरिद्रता को वह किस के समक्ष जाकर बयां करें?
(updated on 18th Sept. 2012)
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