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देश के विकास के लिए उदंडता से दूर रहें
देश की आजादी का 75वां वर्ष देश मनाने जा रहा है। बीते वर्षों में हमने कितनी प्रगति की? क्या खोया और क्या पाया इसका अवलोकन देश के विकास के लिए जरूरी है। दैनिक ’युगप्रदेश’ द्वारा आज से आरम्भ की जा रही विचारों की श्रृंखला में प्रस्तुत है दिल्ली एनसीआर कौशाम्बी-गाजियाबाद स्थित यशोदा सुपर स्पेशलिटी हास्पिटल की डायरेक्टर और विभिन्न सामाजिक एवं अंतरराष्ट्रीय संस्थानों से सम्बद्ध श्रीमती उपासना अरोड़ा के विचार। प्रस्तुति-शेखर कपूर।
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मैंने हमेशा से आजादी के बाद देश के संदर्भ में कल्पना की कि विचारांे की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सभी को है लेकिन हम अनावश्यक प्रलाप न करें और अपनी सीमाओं का ध्यान रखें। शब्दों का सही चयन करें और भारत स्वयं सक्षम बनें और हम बनाएं भी। हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी ने कहा है कि आत्म निर्भर भारत। तो मैं सचमुच चाहती हॅू कि ऐसा हो। काफी हद तक हमने उसमें सफलता भी प्राप्त की है। हम काफी चीजे बना रहे हैं। अभी हमें और अधिक रोजगार सृजन करने की जरूरत है। स्वतंत्र भारत का मतलब यह है कि हर व्यक्ति अपने अनुसार अपने जीवन को जी सके। लेकिन मेरा कहना यह है कि संविधान के अनुरूप ही ऐसा हो। स्वतंत्रता का मतलब संविधान की अवलेहना करना नहीं होता। समाज और व्यक्ति उचित तरीके से आगे बढ़े। हमें अपनी भारतीय संस्कृति को हमेशा आगे रखते हुए उसे भूलना नहीं चाहिए। बड़े अफसोस से कहना पड़ रहा है कि इंटरनेट के माध्यम से जो ’ग्लोबलाइजेशन’ हो रहा है उसमें बाहर के देश हमारी सभ्यता अपना रहे हैं और हम हिन्दुस्तानी मिक्स कल्चर की तरफ जा रहे हैं।
मेरा मानना है कि स्वतंत्र भारत का मतलब है कि सभी लोग अपने कार्य करने में सक्षम हों और आत्म निर्भरता की तरफ बढ़ें। केवल नौकरी पर ही निर्भर न हों बल्कि उद्योग या व्यापार करें। जो बच्चे शिक्षित होकर निकलते हैं तो वो इस तरह का उद्योग स्थापित करें जिसमें वह स्वयं को आत्मनिर्भर बनाएं एवं दूसरों को भी रोजगार दें सकें। मेरा मानना है कि अगर हम भारत की स्वतंत्रता और अखंडता को बनाये रखना चाहते हैं तो पूरे समाज में सौहार्द बनाये रखना होगा। हमें समाज और जातिगत बातों को लेकर झगड़ा नहीं करना चाहिए। हम भारतीय ऐसा माहौल बनाएं जिससे कि सभी एक साथ रह सकें और सभी को साथ में रहना भी है। मेरा सपना है कि हम एक दूसरे की मदद करें और अपने देश पर गर्व करें कि हम भारतीय हैं। मुझे लगता है कि अधिकांश लोग ऐसा मानते भी हैं और करीब 70 प्रतिशत लोग ऐसे हैं। सिर्फ 30 प्रतिशत लोग ही काम नहीं करते हैं और वे चाहते हैं कि लोग उनकी मदद करें। सरकार उनको मुफ्त में बिजली दे और राशन दे। इन लोगों को ऐसा सोचना नहीं चाहिए और न ही मुफ्त शैली को अपनाना चाहिए। ध्यान रहे कि हर एक को बिना कोई काम किए कुछ नहीं मिलता। यह बात ध्यान रखते हुए सभी को भारत की प्रगति में योगदान देना जरूरी है। जो हमारे दिग्गज भारतीय हैं जो इंजीनियर हैं या चिक्त्सिक हैं या अन्य पेशे में हैं उन्हें बाहर अर्थात विदेश में न जाकर बल्कि देश को ही उसका लाभांश देना जरूरी है। अपनी योग्यता को वे देश में ही उपयोग में लाएं। उन्हें ध्यान में रखना होगा कि जब उन्हें देश योग्य बना रहा है तो देश अर्थात मातृभूमि के प्रति उन्हें अपना कर्तव्य निभाना ही होगा।
इसी क्रम में देश के हर व्यक्ति के लिए साक्षरता बहुत ही आवश्यक है। अगर हम सृदड़ और सक्षम देश देश चाहते हैं तो अधिक से अधिक लोगों को बिना लिंग भेद के साक्षर होना होगा। लिंग भेद न करें। साक्षरता पर जोर दें। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओं पर जोर दें। लड़कियां भी शानदार भूमिका निभाती हैं। उन्हें बराबर का हक मिलना चाहिए। हमें स्वच्छंद जीना है लेकिन उदंड नहीं होना है। स्वच्छंद और उदंडता के बीच की लक्ष्मण रेखा का ध्यान रखना हैं। युवा पीढ़ी को इस दिशा में विशेष ध्यान रखने की जरूरत है। जय हिन्द!
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