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-संपादकीय--सुलझा लीजिए सारे विवाद यही


-संपादकीय--सुलझा लीजिए सारे विवाद यही स्वर्णिम समय है



-सच्चाई को स्वीकार करना वक्त की जरूरत होती है। जो लोग सच्चाई को स्वीकार कर लेते हैं उन्हें कुछ कष्ट वर्तमान में होता है लेकिन भविष्य में वे सुखी ही रहते हैं। इसी प्रकार बीते समय में जो गल्तियां हुई होती हैं उन्हें भी अगर समय पर सुधार लिया जाए तो वक्त भी उनका साथ देता है। यह बात इस वक्त हम रामजन्मभूमि विषय के संदर्भ में कह रहे हैं।

हमारे देश हिन्दुस्तान में सभी धर्म के लोग रहते हैं। हिंदू, मुसलमान, सिख और इसाई के अलावा अन्य जातियां और मजहब भी हैं लेकिन आजादी के बाद से सिर्फ हिंदू और मुसलमानों के बीच ही कई मसलों पर विवाद रहे जिनका निराकरण नहीं हो पाया। परिणाम यह रहा कि साथ-साथ रहते हुए, मताधिकार का प्रयोग करते हुए, सरकारी सुविधाओं का उपयोग करते हुए तथा निजी स्तर पर दोनों समुदाय एक-दूसरे के सहयोगी और शुभचिंतक रहे लेकिन कई विषयों पर तकरार और विषाद मन और मस्तिष्क में हमेशा रहा जिसका परिणाम यह रहा कि देश के कई हिस्सों में समय-समय पर दंगे हुए और दोनों ही कौम के कई लोग इनमें हताहत हुए। नुकसान किसका सबसे ज्यादा हुआ यह तो आंकड़ों की बात है लेकिन सत्य यह रहा कि मुस्लिम वर्ग का एक हिस्सा राष्ट्रवादी विचारधारा से अलग-थलग होता दिखाई पड़ा। इसका असर यह हुआ कि कट्टरपंथियों ने जनसंख्या ज्यादा करने और धर्मांतरण जैसे मामलों में तेजी लाई और परिणाम स्वरूप उसके नकारात्मक परिणाम दिखायी पड़ते रहे। शिक्षा और विकास के के मामले में हिंदू समुदाय ने बुलंदगी हासिल की लेकिन मुस्लिम समुदाय इससे पिछड़ता चला गया। इस पिछड़ेपन के कारण भी दूरियां और वैमनस्य समय-समय पर देश के समक्ष दिखायी दिया। इन दूरियां का यह भी परिणाम रहा कि छोटे-छोटे मसले भी विकराल रूप धारण करते रहे। हालांकि जिन मुस्लिमों ने स्वयं को राष्ट्रवादी विचारधारा में डालकर देश, शिक्षा और प्यार को महत्व दिया वे देश के राष्ट्रपति, मुख्य न्यायधीश, न्यायधीश, आईएएस सहित विभिन्न पदों पर सुशोभित होते रहे।

हम आज इस प्रसंग को इसलिए देशवासियों और विशेषकर मुस्लिम समुदाय के समक्ष रहे हैं क्योंकि आजादी के बाद यह पहला मौका है जब शीर्ष अदालत के निर्णय के बाद श्रीराम जन्म भूमि मुद्दा सुलझा है और वह भी आजादी के सात दशक के अधिक समय के बाद। हम इतिहास के पन्नों को भी पलटना चाहेंगे जिनमें स्पष्ट तौर पर कहा गया कि भारत में बाहरी मुस्लिम आक्रमणकारी शासकों ने धर्मांतरण एवं बलपूर्वक बहुसंख्यक आबादी को मिटाने के प्रयास किए। इतिहास में यह भी दर्ज है कि अयोध्या, काशी और मथुरा जैसे हिंदू धार्मिक स्थलों को इन शासकों ने चोट पहुंचाई। यह भी सत्य है कि वर्ष 1947 में भारत का विभाजन धर्म के आधार पर किया गया तथा मुस्लिम समुदाय को संतुष्ठ करते हुए पाकिस्तान नामक एक देश सृजित कर दे दिया गया। अर्थात इसके बाद जो मुस्लिम आबादी भारत में रह गई थी उसे अपने हिंदू भाईयों के साथ स्नेह, अपनत्व और सहयोग का परिचय देते हुए पूरी तरह से राष्ट्रवादी विचारधारा में शामिल हो जाना चाहिए था। अधिकांश मुस्लिम भाईयों ने ऐसा किया भी लेकिन चंद चरमपंथियों के दबाव और भविष्य का डर दिखाकर मुस्लिम समुदाय को बहुसंख्यक आबादी से दूर करने की कोशिश की गई जिसका परिणाम यह रहा कि बहुसंख्यक हिंदू हमेशा इस डर में रहे कि मुस्लिम आबादी बढ़ रही है और जिस तरह से उसे बढ़ाया जा रहा है वह हिंदू समुदाय तथा देश के लिए खतरा है। इसी दौरान हिंदू समुदाय ने अदालतों से हटकर अपने धार्मिक स्थलों को मुस्लिम समुदाय से वापस करने की मांग समय-समय पर की लेकिन ऐसा हो नहीं पाया।

हमारा कहना यही है कि क्या सारे मसले अदालतों के जरिये ही हल होना चाहिये? क्यों न हम अपने मसलों को आपस में बैठकर हल करें और कालंतर में जो गल्तियां कट्टरपंथियों ने कीं उन्हें स्वीकार कर उन गल्तियों को सुधार लिया जाए तथा मुस्लिम समुदाय अपने परिवार और समाज को और अधिक बेहतर बना सके? वर्तमान समय की वास्तविकता अब यही है कि इस वक्त देश में अमन और चैन है। देश विकास कर रहा है और कोई दंगा-फसाद नहीं है तो क्यों न हिंदू और मुस्लिम मिलकर उन मुद्दों का निराकरण कर दें जो दोनों समुदायों के लिए हानिकारक हैं। यह सत्य है कि इस देश का मुस्लिम इसी देश का हिस्सा है। प्रेम और सहयोग तथा स्नेह के रिश्ते झुककर ही मजबूत किये जा सकते हैं। आईये! हम प्रण करें कि अपने परिवार, अपने समाज और देश को और अधिक मजबूत करें तथा ऐतिहासिक गल्तियों के सुधार की दिशा में कदम बढ़ा लें।
(UPDATED ON 22ND JANUARY 24)
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