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-संपादकीय--टकराव’ नहीं बनना चाहिये मांग रूपी ’’प्रदर्शन’’



देश के पंजाब प्रांत के किसानों का सभी फसलों की एमएसपी तय करने, बैंकों के सारे लोन, माफ करने, किसानों को हर महीने पेंशन देने सहित कई मांगों को लेकर चला आंदोलन हिंसक हो रहा है। ये प्रदर्शनकारी किसान दिल्ली की तरफ बढ़ना चाहते हैं। इसलिए अधिकारी और सुरक्षाबल पहले उन्हें समझाते हैं, बातचीत करते हैं लेकिन 11वें दिन भी ये प्रदर्शनकारी जब आधुनिक हथियाररूपी वाहनों, लाठी, डंडों के साथ आगे बढ़ते हैं तो उन पर आंसू गैस के गोले छोड़े जाते हैं। दूसरी ओर देश की तमाम विपक्षी पार्टियां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह पर ना-ना प्रकार के आरोप लगा रहीं हैं। मुख्य बात यह है कि ये आंदोलन सिर्फ और सिर्फ पंजाब के उन किसानों के द्वारा किया जा रहा है जो कि पहले ही से संपन्न नहीं बल्कि अति-संपन्न हैं और मार्के की बात यह भी है कि शेष भारत का किसान इन आंदोलनकारी किसानों के समर्थन में कहीं भी उनके साथ खड़ा दिखायी नहीं पड़ता है और ना ही सहानुभूति है देश की।

लोकतंत्र के तहत सभी को प्रदर्शन करने का अधिकार है। लेकिन जब यही प्रदर्शन देश को प्रभावित करने वाला होता है तो सरकार का यह भी काम होता है कि वह उन लोगों के अधिकारों और जीवन की रक्षा करे जो कि शेष भारत में बसते हैं। कोई भी प्रदर्शनकारी 10 या 20 लोगों के साथ दिल्ली पहुंचकर प्रदर्शन कर सकता है लेकिन जब यही प्रदर्शन सैकड़ों ट्रैक्टरों,लाठी-डंडों, अवरोध हटाने वाले भारी भरकम टैंकनुमा वाहनों, आंदोलन के दौरान अपने लिए खाद्य सामग्री की रसद सहित अन्य सामग्री लेकर आगे बढ़ता है तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि प्रदर्शन के नाम पर कहीं न कहीं से ये प्रदर्शनकारी सरकार के साथ टकराव चाहते हैं। चूंकि लोकसभा चुनाव चंद दिन बाद ही हैं तो इस आंदोलन की ’’टाइमिंग’’ पर सवाल उठना जरूरी है।

निश्चित रूप से किसान इस देश की आत्मा हैं और परमात्मा के दूत हैं। पूरा देश किसानों को सम्मान भी देता है। यह बात भी सत्य है कि किसानों की हर वाजिब मांग पर पूरा देश उनके साथ खड़ा भी हो जाता है लेकिन जब प्रदर्शनकारियों की मांगे एक सीमा के बाद स्वीकार नहीं की जा सकती तो सवाल यही उठते हैं कि आखिर किसानों की मांग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसा व्यक्ति मानने को तैयार क्यों नहीं है जो कि पूरी तरह भारतीय जनमानस के दिलों और दिमाग पर छाया हुआ है। वो नरेंद्र मोदी किसानों की मांग को क्यों पूरा नहीं करना चाहता जो कि सनातन धर्म के साथ ही सिख धर्म में भी अपनी आस्था एवं विश्वास रखता है। वो पीएम मोदी क्यों पंजाब के किसानों की गैर-वाजिब मांग नहीं मान रहा है जो कि स्वयं किसानों को अन्नदाता मानता है?

इस संपादकीय के माध्यम से हम इस विषय को उठाते हुए स्पष्ट करना चाहेंगे कि पंजाब का किसान देश के अन्य प्रांतों के किसानों में सबसे संपन्न और आधुनिक यंत्रों से खेती करने वाला माना जाता है। यह भी सत्य है कि पंजाब के किसानों के हर दूसरी और तीसरे परिवार का एक सदस्य सेना से लेकर पुलिस सहित अन्य सुरक्षाबलों का हिस्सा है। इसी प्रकार पंजाब के हर चौथे और पांचवें घर का सम्बंध कनाडा सहित अन्य देशों में हैं जहां उनके कारोबार हैं। कनाडा जैसे देश को तो हिंदुस्तानी सिख बिरादरी के कारण मिनी पंजाब भी कहा जाता है। इसके अलावा पहले ही से करीब 8 केंद्रीय योजनाओं का लाभांश देश सहित पंजाब के किसानों को मिल रहा है। अर्थात संपन्नता के बावजूद उन मांगों को इस वक्त ये प्रदर्शनकारी पीएम नरेंद्र मोदी के समक्ष रख रहे हैं जो कि देश की अर्थव्यवस्था को परोक्ष रूप से प्रभावित कर देंगे अर्थात शेष भारत को हर स्तर पर प्रभावित कर देंगे। उनकी मांगे ठीक उसी प्रकार से कही जा सकती है जैसे किसी परिवार में संपन्नता के बावजूद ’’गरीबी का रोना रोकर अधिक सुविधाएं’’ प्राप्त की जाती हैं। प्रदर्शनकारियों की मांगों पर विचार और बातचीत होनी चाहिए हम इसके पक्षधर हैं लेकिन हम कहना चाहेंगे कि जो मांग पूरी की ही नहीं जा सकती है उसको मनवाने की बात कहकर मांग करना सिर्फ टकराव की मंशा जाहिर करता है।
(updated on 23rd feb 24)