’’मैं हूं मोदी का परिवार’’-भाजपा का भावनात्मक ’’चौका’’/////रक्षा-उत्पादन क्षेत्र को बना रहे हैं आत्मनिर्भर-राजनाथ सिंह //// मोदी ने तेलंगाना में 56 हजार करोड़ रुपये की विकास-परियोजनाओं का शुभारंभ किया/////मेडिकल छात्रों और मेडिकल/गैर मेडिकल सलाहकारों के एक समूह ने राष्ट्रपति सेमुलाकातकी///////विवेक भारद्वाज ने रांची, झारखंड में दूसरे क्षेत्रीय सम्मेलन का उद्घाटन किया//////भाजपा की दूसरी लिस्ट कल आ सकती है//////-संपादकीय--’’कानून’ शब्द पर विधायिका व न्यायपालिका से उम्मीदें हैं/////
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-संपादकीय--50 साल पुरानी नक्सल समस्या, पीएम मोदी से ही अपेक्षा है


दो दिन पहले 17 फरवरी को मध्यप्रदेश से लगे छत्तीसढ़ राज्य के बीजापुर जिले में नक्सलवादियों ने सुरक्षाबलों के एक कंपनी कमांडर की कुल्हाड़ी से हमला कर हत्या कर दी और फरार हो गए। याने सुरक्षाबलों का एक और अधिकारी/जवान नक्सलवादियों के हाथों मारा जाकर सरकारी और निजी स्तर पर शहीद हो गया। चंद दिन में ही राज्य और केंद्र सरकार इस शहीद के परिजनों को तात्कालिक, एक मुश्त राशि और अन्य मदद दे देंगी और इसके बाद यह हत्या सरकारी फाइलों में बंद हो जाएगी। अब खबर आने वाली है कि इस हत्या का बदला लेने के लिए सुरक्षा बल और अधिक कड़ी कार्रवाई करेंगे और कुछ नक्सली पकड़े जाएंगे या मारे जाएंगे। कुछ दिन तक या महीनों तक नक्सली शांत रहेंगे और अचानक फिर खबर आएगी कि नक्सलवादियों ने देश के अर्द्धसैनिक बलों के कुछ जवानों पर घात लगाकर हमला किया जिसमें अर्द्धसैनिक बलों के इतने और जवान मारे गए तथा विनाशक विस्फोटक से अर्द्धसैनिक बलों के वाहनों परखचे उड़ गए।

शनिवार को जो यह वारदात हुई उसका सिलसिला पांच दशक के अधिक समय से लगातार जारी है। हर साल देश के करीब 10 राज्यों के किसी न किसी हिस्से में नक्सली आतंकवाद में अर्द्धसैनिक बलों के जवान शहीद होते चले आ रहे हैं। सुरक्षा के लिए दिये गए वाहन इन नक्सलियों के हमलों में संपूर्ण रूप से तबाह होते रहे हैं। हर नक्सली आतंकवाद पर सम्बंधित सरकारें इस दिशा में तात्कालिक कदम उठाने का प्रण करते हुए दम्भ भरती रही हैं कि हम अब नक्सल समस्या को खत्म करके ही रहेंगे। जब सरकार भारी पड़ती है तो मालूम पड़ता है कि कुछ नक्सली आत्म समर्पण करना चाहते हैं तो सरकार तात्कालिक शांति के लिए उनके आत्म समर्पण का स्वागत करती है और समझती है कि अब नक्सलवाद खत्म हो गया है। लेकिन सरकार की यह नरमी कुछ समय बाद नक्सलियों को पुनः आतंक फैलाने का अवसर देती है। अभी तक नक्सलियों का खात्मा नहीं हुआ लेकिन केंद्र और राज्यों के सुरक्षाबलों के सैकड़ों जवान शहीद हो चुके हैं तथा हर साल करोड़ों रूपये का बजट खर्च करने के बावजूद यह समस्या खत्म नहीं हो पाई।

यह सिलसिला वर्ष 1967 से कानू सान्याल नामक नक्सलवादी से आरम्भ हुआ था और आज यह देश के 10 से अधिक राज्यों में फैला हुआ है। नक्सलवादी जिन राज्यों में सक्रिय हैं वो वहां पर मौजूद सरकारी वन तथा कोयला प्रापर्टी को लेकर एक प्रकार से समानांतर सरकार चलाते चले आ रहे हैं। इन राज्यों के वन और कोयला क्षेत्र में सरकारी अधिकारियों से लेकर व्यापारियों और उद्योगपतियों तक को समय-समय पर उन्होंने अपना निशाना बनाया। नक्सलवादियों के नाम पर आज भी देश के इन राज्यों में धमकी भरे पत्र व्यापारियों तथा उद्योगपतियों को मिलते हैं। छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में जब विद्याचरण शुक्ल परिवार ने नक्सलवाद को जड़ मूल से समाप्त करने का प्रण किया तो इस परिवार को ही नक्सलवाद ने जड़मूल से निशाना बनाकर इस अंचल में अपने खौफ का सिक्का और मजबूत कर दिया। यह भी सत्यता है कि छत्तीसगढ़ में अगर किसी को रोजगार या नौकरी करनी है तो उसे नक्सलवादियों से मिलकर ही रहना पड़ता है और मदद भी करनी पड़ती है। हर साल करोड़ों रूपये का व्यय राज्य और केंद्र सरकारें नक्सलवाद को खत्म करने के लिए खर्च करती रहीं हैं तथा दूसरी ओर शहीद जवानों की संख्या भी बढ़ती रही लेकिन एक निर्णायक लड़ाई न तो राज्य सरकारों ने लड़ी और ना ही केंद्र की ओर से इस जंगलों में घुसकर नक्सलियों को खत्म करने की योजना सफल हो पाई। इस बात पर कभी भी ध्यान नहीं दिया गया कि इन नक्सलवादियों के पास आधुनिक हथियार और गोला बारूद तथा जंगलों में रहकर जीवन जीने की आवश्यक सामग्री आखिर किस तरह से पहुंच जाती है?

हम इस विषय को देशहित में उठाते हुए राज्य सरकारों तथा केंद्र को बताना चाहते हैं कि इन 10 राज्यों का नक्सलवाद हमारे देश का ’’आंतरिक आतंकवाद’’ बन चुका है। करीब 50 साल होने को आ रहे हैं लेकिन अगर कुछ नक्सली मरते हैं तो दर्जनों अन्य पैदा हो जाते हैं। इनका खात्मा करने का सरकारें निर्णय करती हैं पर आज भी जहां की तहां खड़ी है। कांग्रेस की सरकारें भी इस दिशा में कुछ ठोस नहीं कर पाईं। छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में भाजपा की सरकारें भी नाकाम रहीं हैं। लेकिन कहते हैं कि उम्मीद की लौ को हमेशा प्रज्जवलित करके रखना चाहिये। उम्मीद से ही हौंसला बढ़ता है तथा हौंसला ही योजना को मूर्तरूप देता है। छत्तीसगढ़ में इस वक्त भाजपा अर्थात एनडीए की सरकार है। केंद्र में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार है। आने वाले वक्त में भी केंद्र में मोदी की ही सरकार बनने के अवसर हैं और हम उम्मीद करते हैं कि अब मोदी सरकार यह तय कर ले कि पांच दशक पुराने इस आंतरिक आतंकवाद को इन 10 राज्यों से खत्म करने की निर्णायक लड़ाई छेड़ ही दी जाए। मोदी सरकार को राज्य की सरकार को पूरा संरक्षण देकर कम से कम इस राज्य से हमेशा के लिए इस नक्सली आंतरिक आतंकवाद को खत्म करना ही होगा। अन्य राज्यों में भी केंद्र प्रभावकारी कदम उठाने में सक्षम है।

(updated on 18 th feb 24)
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