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-संपादकीय--राजनीति में आरोप, राजनीतिक कवच और सच्चाई

-संपादकीय--राजनीति में आरोप, राजनीतिक कवच और सच्चाई


देश का ऐसा कौनसा राजनेता होगा जो राजनीति में रहते हुए आरोपों की कीचड़ में न फंसा हो। आरोपों की कीचड़ में कुछ राजनेता ऐसे फंसे कि आज तक उनके दामन से वो दाग नहीं हट पाये जो लगे थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृहमंत्री अमित शाह, मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, शिवराज सिंह चौहान तो वहीं कांग्रेस से कमलनाथ भी। इन पर समय-समय पर आरोप लगते रहे। वर्तमान में ही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी विधायकों की खरीद-फरोख्त के आरोपों का सामना कर रहे हैं और जांच एजेंसियां तीन फरवरी को उनके आवास पर डटी थीं कि बताओ आरोप की सच्चाईं। झारखंड के मुख्यमंत्री रह चुके हेमंत सौरेन इस वक्त न्यायिक हिरासत में हैं। उनके पिता शिबू सौरेने लम्बे वक्त तक आर्थिक अपराधों के कारण जेल में रह चुके हैं। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव भी चारा घोटाले में आरोपित होने के बाद कई साल जेल में रहे। हरियाणा में तो एक धार्मिक नेता आरोपांे के चलते जेल में हैं और साल में कई बार पैरोल पर आकर धार्मिक प्रवचन करते हैं। कुल मिलाकर जब भी किसी राजनेता पर आरोप लगते हैं तो संबंधित नेता यही कह देता है कि राजनीतिक द्वेष, ईर्ष्या, बदले की भावना इत्यादि से उस पर आरोप लगा दिये गए हैं। जब इस तरह के मामले न्यायालय की शरण में जाते हैं या ले जाए जाने वाले होते हैं तो प्रभावित पक्ष आरोप लगाने वाले व्यक्ति पर मानहानि का दावा करता है और अपने वकील के माध्यम से निश्चित अवधि के अंदर माफी मांगने की मांग करता है। ऐसा न होने पर मामला न्यायालय के समक्ष पहुंच जाता है। आर्थिक एवं अन्य संगीन मामलों में भी जांच एजेंसियां जब किसी राजनेता को पकड़ती हैं तो जांच एजेंसियों पर ही आरोप लगा दिये जाते हैं। आरोप लगते ही सबसे पहले आरोपित पक्ष राजनीतिक सुरक्षा कवच ओढ़ लेता है और कहता है कि उसके खिलाफ राजनीति की जा रही है जबकि आरोपों में कोई दम नहीं है।

कुल मिलाकर राजनीति में रहते हुए आरोप लगने से इंकार नहीं किया जा सकता है। लेकिन मुख्य बात यह है कि आरोप और प्रत्यारोप कब साबित होंगे और क्या परिणाम निकलेगा इस बारे में देश बहुत कम जान पाता है । इन आरोपों और प्रत्यारोपों के बीच न्यायालय का समय और धन बरबाद होता है तो वहीं मीडिया जगत भी इन्हीं नेताओं की आरोपों से सम्बंधित कार्रवाई की खबरों को लगातार प्रसारित और मुद्रित करता रहता है। बाद में कुछ समय बाद मालूम पड़ता है कि आरोपित और आरोपकर्ता पक्ष के बीच समझौता हो गया और मामला क्षमा याचना के बाद वापिस ले लिया गया। जो मामले अनंतकाल तक चलते रहते हैं वह चलते ही रहते हैं और कब उनका निराकरण हो जाता है देश की अवाम को मालूम नहीं पड़ पाता।

हम इस गंभीर विषय को देश की न्यायपालिका, कार्यपालिका, बौद्धिक जगत तथा जिम्मेदार हस्तियों के समक्ष रख रहे हैं। हम जानते हैं कि लोकतंत्र में राजनेताओं की जिंदगी सार्वजनिक जिंदगी होती है। सार्वजनिक जिंदगी में रहते हुए आरोप लग सकते हैं। लेकिन जो आरोप लगते हैं और जब उनका निराकरण होता है कुछ चुनिंदा मामलों को छोड़ इन मामलों का अंत कहां पर हुआ इसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं हो पाती है। कई मामलों का तात्कालिक निराकरण क्षमा याचना के साथ हो जाता है लेकिन सवाल यही उठता है कि आखिर जब आरोप लगाने वाले ने आरोप लगाए थे तो उसने आखिर क्षमा याचना कैसे कर ली ? क्यों नहीं सम्बंधित मामले को सच्चाई की दहलीज तक ले गया जिससे कि देश को मालूम पड़ सके कि आखिर सच्चाई क्या थी? इसी प्रकार जिस नेता या व्यक्ति पर आरोप लगे उसके बारे में तो लोगों ने पढ़ा,सुना और देखा लेकिन जरूरी नहीं कि क्षमा याचना या केस वापसी के मामले की जानकारी भी उसे मिल पाई हो। परिणाम यह होता है कि जिस पर आरोप लगा वह जिंदगी भर झूठे मामले का दंश झेलता रहता है।

ुकुल मिलाकर यह एक गंभीर विषय हम देशवासियों के समक्ष रख रहे हैं और उम्मीद करते हैं कि हमारी न्यायपालिका और जिम्मेदार लोग तथा मीडिया भी इस दिशा में गंभीरता का परिचय देते हुए अपनी जिम्मेदारियों को बेहतर तरीके से करेंगे। जनता को यह मालूम पड़ना चाहिये कि आरोपित व्यक्ति क्या वास्तव में दंडित हुआ या नहीं..? मीडिया को भी यह अहसास हो कि उसने इस तरह के मामले में जबरिया अपना धन और समय बरबाद किया। न्यायालय को भी इस तरह के मामलों में कुछ कठोर और प्रभावकारी कदम उठाने की जरूरत है जिससे कि लोकतंत्र स्वच्छ हो सके तथा न्यायालयों में मामलों की संख्या न बढ़ सके।

(UPDATED ON 3RD FEB 24)