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-संपादकीय--स्वच्छ शहर के नाम पर

-संपादकीय--स्वच्छ शहर के नाम पर ’अॅवार्ड’ की शोशेबाजी

हाल ही में केंद्र सरकार की ओर से राष्ट्रीय स्तर पर देश सहित मध्यप्रदेश के कई शहरों को स्वच्छता की दिशा में शानदार प्रदर्शन के लिए अॅवार्ड दिये गए। इनमें इंदौर को प्रथम और उसके बाद भोपाल सहित कई शहरों को विभिन्न स्तर पर अॅवार्ड मिले। वरिष्ठ अधिकारियों से लेकर मंत्रियों और सांसदों ने राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपदी मुर्मू से अवार्ड लिये और देश तथा मध्यप्रदेश में यह संदेश दिया कि मध्यप्रदेश स्वच्छता की दिशा में आगे बढ़ रहा है।

हम इस विषय को सकारात्मक स्तर पर आगे बढ़ा रहे हैं और जिम्मेदार हस्तियों को यह संदेश देना चाहते हैं कि क्या वास्तव में स्वच्छ शहर की दिशा में सार्थक प्रयास मध्यप्रदेश के जिला स्तर पर किए गए हैं? क्या मध्यप्रदेश के ही इंदौर, भोपाल, ग्वालियर जैसे शहरों में सड़कों पर गंदगी नहीं है? क्या अन्य जिले आज भी नालों और अतिक्रमण सहित बेतरतीव यातायात से मुक्त हो गए हैं? क्या सड़कों पर पान की दुकानें, गुमठियां, दुकानों के आगे अतिक्रमण करना तथा मकानों के दायरे को अतिक्रमण की सीमा तक ले जाने वालों पर मध्यप्रदेश में कोई वाई होती है? इंदौर के सांसद शंकर लालवानी विगत साल से इंदौर को स्वच्छता की दिशा में मिल रहे अॅवार्ड से अवश्य प्रसन्न हो रहे हैं लेकिन क्या इंदौर शहर में आज तक वो उन जरूरतों को पूरा करवा पाये जो कि स्वच्छता की दिशा में मायने रखते हैं? इंदौर के व्यापारियों से जो कि राजवाड़ा, सराफा बाजार में हैं वहां के यातायात को सुगम बनवा पाये हैं?

यह सत्य तथ्य हम सिर्फ इंदौर के संदर्भ में ही नहीं उठा रहे हैं बल्कि संपूर्ण प्रदेश के संदर्भ में अॅवार्ड मिलने के विषय को प्रदेश और जिम्मेदार हस्तियों के समक्ष रखना चाहते हैं। शायद ही कोई ऐसा शहर हो जहां पर सड़कें बनती हैं लेकिन चंद दिनों और महीनों में ही भ्रष्टाचार अथवा निकम्मेपन की कहानी कहने लगती हैं। जब बरसात का मौसम आता है तो हर शहर में नगर निगम और निकाय अधिकारियों के साथ ही लोक निर्माण विभाग की करतूतों की सच्चाई सामने आने लगती है। यह एक अच्छी बात है कि मध्यप्रदेश स्वच्छता की दिशा में आगे बढ़ रहा है लेकिन यह भी सत्य है कि स्वच्छ शहर तभी ’’अॅवार्ड’’ का वास्तविक हकदार होता है जब अतिक्रमण, सड़कें, यातायात की सुगमता सहित विभिन्न मसले हल कर लिये जाएं। आज भी व्यापारी समुदाय का 99 प्रतिशत हिस्सा जो कि दुकानों के माध्यम से कारोबार करता है स्वयं अतिक्रमण करता है। आज भी पार्किंग जैसे मसलों को बाजारों के स्तर पर सुव्यवस्थित नहीं किया गया है। विभिन्न नगर निगमों ने लाखों रूपये खर्च कर मल्टी लेबल पार्किंग की निर्माण तो करा दिया लेकिन दुकानदारों से लेकर आम लोगों को इन पार्किंग में अपने वाहन ले जाने के लिए ना तो प्रेरित किया और न ही इस दिशा में अभियान चलाया। भोपाल में ही कई मल्टी लेबल पार्किंग हैं लेकिन इन पार्किंग्स में एक या दो मंजिल तक ही वाहन पहुंच पाते हैं और शेष मंजिले खाली पड़ी हुई हैं। इन मंजिलों पर गंदगी के रूप को देखा जा सकता है।

हम मध्यप्रदेश का विकास चाहते हैं। हम भी अपने प्रदेश को पूरी तरह से स्वच्छ और अनुशासित देखना चाहते हैं लेकिन जब स्वच्छता के नाम पर अॅवार्ड मिलते हैं तो सवाल यह भी उठता है कि अॅवार्ड की ज्यूरी उपरोक्त विषयों पर क्यों ध्यान नहीं देती है? क्यों नहीं किसी शहर की बाल्ड सिटी के वास्तविक स्वरूप को देखती है? क्यों नहीं यातायात अव्यवस्था तथा जाम अर्थात मार्ग अवरोध जैसे विषयों पर ध्यान नहीं जाता है? क्यों नहीं हमारे जनप्रतिनिधि उपरोक्त विषयों को भी हल करवाने के प्रयास करते हैं?

अंत में हमारा यही कहना है कि उपरोक्त विषयों के निराकरण के बिना कोई भी अॅवार्ड सिर्फ एक शोशेबाजी है। इस प्रतिष्ठित अॅवार्ड के लिए जरूरी विषयों पर भी जिम्मेदारों को ध्यान देने की जरूरत है। उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि जनता की आवश्यकताओं की पूर्ति करने की जिम्मेदारी अधिकारियों, सांसदों, विधायकों और अन्य जनप्रतिधियों की ही है।
(updated on 23rd january2024)