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-संपादकीय-किसान को क्या अब ’’अन्नदाता’’ माना जाना चाहिये....?

-संपादकीय-किसान को क्या अब ’’अन्नदाता’’ माना जाना चाहिये....?


देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शात्री ने वर्ष 1962 में भुखमरी से जूझ रहे तथा अमरीकी लाल गेंहू खा रहे हिंदुस्तानी अवाम के हालात को देखते हुए खाद्यान्न उत्पादन को प्रोत्साहन देने के लिए ’जय किसान’ का नारा दिया ’जय जवान’ के साथ। उनका साथ देने के लिए तत्कालीन नेता विनोवा भावे आगे आए तथा किसानों के लिए जमीन की व्यवस्था करने के लिए उन्होंने ’’भू-दान’’ आंदोलन/यात्रा आरम्भ की। विनोवा भावे पूरे देश में पैदल घूमे तथा सामंतो, रजवाड़ों, पूर्व शासकों, जागीरदारों तथा कुछेक संपन्न लोगों के दरवाजे पर पहुंचते रहे और उन्होंने उनसे अत्याधिक और अतिरिक्त अथवा बंजर पड़ी जमीनों को ’’भू-दान’’ के माध्यम से ’दान’ देने को कहा। परिणाम यह निकला कि चंद वर्षों में ही हजारों एकड़ जमीन केंद्र और राज्य सरकारों को ’’भू-दान’’ के माध्यम से मिली और तत्कालीन सरकारों ने किसानों को ये जमीनें खेती करने के लिए पांच से अधिक एकड़ में देनी शुरू कीं। साथ ही सरकार ने किसानों को अन्य सहूलियतें देने के साथ ही उन्हें सम्मान तथा प्रतिष्ठा देने के लिए उन्हें ’’अन्नदाता’’ का नाम दिया।

उस वक्त इन गांधीवादी तथा भूदानी नेताओं का योगदान लगातार परवान चढ़ता रहा। सभी राज्य खेती पर जोर देने लगे। कद काठी और जुझारू पंजाब के किसानों ने इस क्षेत्र में बाजी मारी और चंद सालों में ही देश के समक्ष अपने राज्य को संपन्न बनाने की दिशा में कदम बढ़ाकर देश को खाद्यान्न क्षेत्र में आत्म निर्भर बनाने का श्रीगणेश कर दिया। इसके बाद अन्य राज्य भी पंजाब से उदाहरण लेने लगे और आज वर्ष 2024 के आते-आते देश खाद्यान्न उत्पादन की दिशा में आत्मनिर्भर बन चुका है। लेकिन इसके साथ ही जिस शब्द से किसानों को ’’अन्नदाता’’ के रूप में अलंकृत किया गया था उसकी आड़ में वो लोग इस पेशे में शामिल होते चले गए जिनका खेती और किसानी से कोई वास्ता नहीं था। धन के प्रवाह, आर्थिक रूप से संपन्न होते राष्ट्र के लोगों ने किसानी के नाम पर अथवा किसानों से जमीनें खरीद कर संपत्ति को बढ़ाने का सिलसिला आरम्भ कर दिया। आज देश में जितने भी संपन्न, प्रभावशाली अथवा धनाड्य या नव धनाड्य हैं., ने समय-समय पर किसानों की जमीनें खरीदना आरम्भ कर दिया। कईयों ने तो स्वयं को इस पेशे में उतार दिया लेकिन इनमें से अधिकांश वो वर्ग भी रहा जिसने सिर्फ पंूजी निवेश के नाम पर जमीनें खरीदीं और फिर ’’बटाई’’ पर इन जमीनों को देना आरम्भ कर दिया। आज देश में 50 प्रतिशत से अधिक जमीनें बटाई पर ही चल रही हैं। अर्थात जमीन का खरीददार कोई और तथा बटाई पर किसानी या खेती करने वाला व्यक्ति कोई दूसरा।

हम इस ऐतिहासिक सच्चाई को वर्तमान में पंजाब में चल रहे किसान आंदोलन के संदर्भ में उठा रहे हैं। अगर पंजाब के ही किसानों का इतिहास उठाकर देखा जाए तो वर्ष 1947 के समय अंगुलियों पर गिनने लायक किसानों के पास ही जमीनें थीं। बाद में ’’भू-दान’’ आंदोलन के माध्यम से ये जमीनें उन्हें पट्टे पर आवंटित की गईं। इसके बाद पंजाब सहित देश के अधिकांश राज्यों में खेती को प्रोत्साहन देने के लिए केंद्र तथा राज्य सरकारों की अनेकानेक योजनाएं आरम्भ हुई। वर्ष 1970 और 1980 का दशक आते-आते ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छ हवा में रहने, हरियाली का आनंद लेने तथा अपने जीवन के शेष समय को सुखपूर्वक बिताने के लिए सरकारी अधिकारियों से लेकर संपन्न हो चुके लोगों ने जमीनों को खरीदने और बेचने के कारोबार में डाल दिया। इनमें से कईयों ने किसानी का आवरण ओढ़ा लेकिन साथ ही खेती की जमीन पर ’फार्म हाउस’ और मकान भी बनाये। इसी दौरान सरकारी योजनाओं को प्राप्त करने की होड़ भी लगी। किसानी पेशे में लोगों की भीड़ आने के कारण मतदाताओं की संख्या भी बढ़ती गई और राजनेताओं ने सत्ता में बने रहने के लिए गांवों के मतदाताओं को विभिन्न माध्यमों से रिझाने का काम आरम्भ कर दिया।

हमने इस संपादकीय के माध्यम से ऐतिहासिक सच्चाई रखी है। पूरा देश जानता है कि पंजाब का 90 प्रतिशत किसान आज सपंन्न हो चुका है। उसके पास खेती और ऐशोआराम के समस्त साधन मौजूद हैं। पंजाब के अलावा देश के अधिकांश राज्यों के किसान अब अपनी खेती को ’व्यापार अथवा कारोबार’’ का रूप दे चुके हैं। अब वे व्यापारी बन चुके हैं और ’’अन्नदाता’’ की श्रेणी से बाहर निकल आए हैं। अब इस शब्द का दुरूपयोग रूकना चाहिये। अब इस शब्द के सहारे न तो राजनीति होनी चाहिये और न ही कोई आंदोलन और ना ही रेबड़ियां बांटने का काम। अब कोई किसान किसी को ’दान’ में ’अन्न’ नहीं देता है। वह अपनी पैदावार की कीमत चाहता है। दूसरी बात यह है कि अब किसानी पूंजीनिवेश तथा व्यापार का रूप ले चुुका है। अब देश को यह विचार करना ही होगा कि अब कोई ’’अन्नदाता’’ नहीं है और इस शब्द के नाम पर राजनीति या आंदोलन नहीं होना चाहियें।
(updated on 26th feb 24)