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-संपादकीय---हरदा दुर्घटना ’’कार्रवाई’’ नजीर बननी चाहिए यादवजी!



मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव वरिष्ठ विधायक हैं और प्रदेश के ऐसे पहले मुख्यमंत्री बने हैं जिनका चयन ’’वरिष्ठों और अनुभवियों’’ की दावेदारी और सीएम पद की इच्छा के विपरीत किया गया है। उनका चयन इस पद पर करते वक्त पार्टी आलाकमान ने जो सबसे अधिक विश्वास किया है वह यही है कि तपे-तपाये राजनेताओं की बजाय वह कहीं ज्यादा प्रभावी और कारगर होंगे तथा प्रदेश को ऐसा नेतृत्व देंगे जो कि आने वाले वक्त में नजीर बन सकें। अर्थात उन्हें बहुत कुछ करना और करके दिखाना है और जो हरदा दुर्घटना हुई है वह उनके कार्यकाल की ऐसी पहली दुर्घटना है जो कि उनके राजनीतिक कद में कार्रवाई के रूप मे दर्ज की जाएगी।

आज की संपादकीय में हम सीएम यादव और हरदा दुर्घटना का विशेष रूप से एक-दूसरे को जोड़कर कर रहे हैं। कारण यही है कि हरदा दुर्घटना के पीछे के कारणों में अगर देखा जाए तो मध्यप्रदेश गठन के बाद कई दशकों तक गैर भाजपाई मुख्यमंत्रियों का शासन रहा। उनके शासनकाल में तत्कालीन सत्तापक्ष ने अपने-अपने तरीके से सरकारें चलाईं। अधिकारिक तंत्र का एक बड़ा हिस्सा लापरवाही अथवा अनदेखा करने जैसे नैगेटिव विषयों को महत्व देता रहा तथा इसके कारणों में कहीं न कहीं से भ्रष्टाचार भी हावी रहा। अर्थात दुर्घटनाओं को एक निरंतर प्रक्रिया मान लिया। लापरवाही को जिदंगी का एक हिस्सा जिम्मेदारों ने समझा तथा अपने जिम्मेदारी से अनदेखी करते रहे। औद्योगिक इकाईयां प्रदेश में लाई जाती रहीं तथा रोजगार और गरीबी के नाम पर स्थापित करने के बाद ’’नियमों और सावधानियों ’’ जैसे विषयों को महत्व नहीं दिया गया। अर्थात सकारात्मक कार्य कब नकारात्मकता में बदल सकता है इसका शाश्वत उदाहरण हरदा फटाखा दुर्घटना है जिसमें सरकारी स्तर पर तो 11 लोग ही मारे गए हैं लेकिन पूरा प्रदेश इन मृतकों की संख्या के आंकड़ों को सही मानने को तैयार नहीं है जैसा कि भोपाल गैस त्रासदी के दौरान 1984 में हुआ था जब सरकारी स्तर पर तो साढ़े चार हजार लोग मारे गए थे लेकिन पूरा विश्व मृतकों की संख्या लाखों में आंक रहा था।

खैर! कहते हैं कि गुजरी हुई घटनाएं सबक देती हैं और वर्तमान में भविष्य के लिए सचेत करती हैं। इसी भाव के साथ सीएम यादव को उन पुरानी फाइलों को खंगालना चाहिए जिनमें इस तरह की या इससे मिलती जुलती घटनाएं एवं दुर्घटनाएं हुईं। बीते हुए समय की इन घटनाओं और दुर्घटनाओं की जांच रिपोर्ट सामने आई उनमें जिम्मेदार तंत्र अर्थात अधिकारियों को कितना दोषी माना गया और उन पर क्या कार्रवाई हुई जैसे विषय को भविष्य की नजीर बनाया जा सकता है। मंगलवार को हरदा में हुआ हादसा सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही का ही एक बड़ा कारण तात्कालिक रूप से सामने आता है। पहली बात यही है कि रिहायशी इलाके में आखिर यह कारखाना कैसे स्थापित हो गया? दूसरा कारण कि फटाखा फैक्ट्री को जितना माल रखने की अनुमति दी गई थी उससे ज्यादा ज्वलनशील सामग्री कैसे रखी गई और इसकी सूचना उन स्थानीय अधिकारियों को क्यों नहीं दी गई या उन्हें सूचना नहीं मिली जो कि जिम्मेदार हैं?

मुख्य बात अब सीएम यादवजी के लिए यही है कि इस दुर्घटना को लेकर चंद अधिकारियों के तबादले तथा निलम्बन जैसी कार्रवाई से कहीं आगे की कार्रवाई की अपेक्षा पूरा प्रदेश कर रहा है। अगर व्यक्तिगत स्तर पर किसी भी व्यक्ति से जब इस विषय को लेकर बातचीत की जा रही है या की जाती है तो सभी लोग इस दुर्घटना के लिए पहले स्तर पर फैक्ट्री मालिक को तो जिम्मेदार मानते ही हैं लेकिन इसके बाद उनका कहना यही होता है कि इस तरह के मामलों में अगर फैक्ट्री मालिक जिम्मेदार माना जाता है तो फिर उन अधिकारियों को क्यों पूरी तरह से जिम्मेदार नहीं माना जाए जो कि नियमों का पालन करने और करवाने के लिए जिम्मेदार होते हैं तथा जिन पर फैक्ट्रियों पर निगरानी की जिम्मेदारी होती है। इन अधिकारियों पर भी वही कार्रवाई होनी चाहिए जो फैक्ट्री मालिकों पर हुई है।

अब तक के जो कदम हताहतों के लिए मुख्यमंत्री की ओर से उठाए गए हैं वो सोंच से भी कहीं अधिक हैं और उनकी तारीफ की जाएगी आने वाले समय में लेकिन वर्तमान का विषय यही है कि इस दुर्घटना को लेकर मुख्यमंत्री को भी अपनी दूरदर्शिता, पारदर्शिता, सजगता तथा निर्णय लेने की क्षमता जैसे विषय पर बहुत कुछ कर दिखाना होगा तथा यह अपेक्षा प्रदेश कर रहा है।

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