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-संपादकीय--कट्टरता तथा अशिक्षा स्पष्ट जनादेश नहीं देती है
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किसी भी देश में दो तरह के शासन होते हैं। एक शासन होता है जनता की सरकार का और दूसरा शासन होता है अधिकारियों की सरकार का। अधिकारियों की जहां सरकार होती है वहां सेना भी उसका हिस्सा होती है तो वहीं राजतंत्र भी उसमें अपनी अहम भूमिका निभाता है। हमारे देश भारत में भी आजादी से पहले कभी शाही तंत्र रहा तो लम्बे वक्त तक बरतानियाई हुकूमत भी रही। लोग उस वक्त भी अपनी दिनचर्या करते थे लेकिन इन्हीं लोगों को जब यह महसूस होता है कि शासन और सरकार में उनकी भी भूमिका होनी चाहिए तभी लोकतंत्र की भावना की शुरूआत होती है। भारत में भी लोगों ने स्वयं का शासन और सरकार की भावना को लेकर आंदोलन किए और परिणाम यह रहा कि 1947 में आजादी के बाद आम लोगों की सरकार आती रही। यह बात अलग रही कि कुछ नेताओं ने पुश्तैनी तरीके से सत्ता को संचालित किया लेकिन लोकतांत्रिक तरीके से ही। हमारे देश में सेना और राजतंत्र 1947 के बाद पुर्नजन्म नहीं ले पाया लेकिन लोकतंत्र में कुछ कमजोरियां भी होती है जिनका सामना देश ने आम चुनावों में कई बार किया। चाहे पीवी नरसिंहराव का समय रहा हो या विश्वनाथ प्रताप सिंह के प्रधानमंत्री काल की बात रही हो जब स्पष्ट जनादेश ना मिलने के कारण लोकतंत्र को चलाने के लिए पर्दे के पीछे के नागवार समझौते हुए जिनके कारण देश प्रगति की दौड़ में शामिल नहीं हो पाया। आपात्काल में भी देश में कांग्रेस की सरकार रहीं लेकिन यह बात स्पष्ट रही कि ना तो सेना और ना ही राजशाही हमारे देश में 1975 के बाद शासन कर पाई।
हम यह बात अपने देश और पाकिस्तान के संदर्भ में कुूछ उदाहरण के साथ उठा रहे हैं। आज भारत विकसित राष्ट्र भले ही ना कहा जाए लेकिन विकसित राष्ट्रों की जमात के नजदीक तो पहुंच ही चुका है। वर्ष 2047 तक का लक्ष्य तो भारत ने तय कर लिया है कि इस अवधि तक भारत विकसित भी होगा तथा सोने की चिड़िया वाले देश के रूप में पुनः स्थापित हो जाएगा। इसका प्रमुख कारण यही है कि केंद्र की सत्ता में शीर्ष क्रम पर दिख रही ईमानदारी तथा देश को आगे बढ़ाने की लालसा। इस देश में पिछले 10 वर्ष के दौरान किसी खानदान या खानदान के वारिस ने शीर्ष क्रम पर प्रधानमंत्री का पद नहीं संभाला। पिछले 10 वर्ष में सरकार की डोर स्पष्ट जनादेश के कारण आगे की तरफ बढ़ रही है। आम जनता भी शिक्षित हुई है और उसे यह महसूस होने लगा है कि देश को चलाने के लिए एक घर की तरह ही मजबूती होनी चाहिए। याने जो घर मजबूत, स्वावलम्बी,शिक्षित और आत्मनिर्भर होता है वहां पर सभी पारावारिक सदस्य अपनी जिम्मेदारियां समझते हैं। परिणाम यह होता है कि संपन्नता और खुशहाली बढ़ती है। इसी आधार पर पिछले दो आमचुनाव में देश नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व के आधार पर भाजपा को केंद्र की सत्ता में लगातार ला रहा है। स्पष्ट जनादेश के कारण मजबूत सरकार बन रही है। मजबूत केंद्रीय सरकार के कारण विदेशी उद्योगपति,व्यापारी और निवेशक भारत में शिक्षा तथा रोजगार दे रहे हैं। जो व्यक्ति पूंजी निवेश करता है वह उस देश की शांति व्यवस्था और सरकार की मजबूती भी देखता है। यह कारण इस वक्त भाजपा की मजबूती का एक मात्र कारण है।
दूसरी ओर हम जब पाकिस्तान की ओर देखते हैं तो हमें ही नहीं पूरे विश्व को निराशा होती है जहां पर लोकतंत्र सेना और पुलिस के माध्यम से चलता चला आ रहा है। वहां की अस्थिर सरकारें, कट्टरता और आतंकवाद तथा पुश्तैनी राजनीतिज्ञों के कारण यह देश आज भी मुफलिसी के दौर में है। मदद, चंदा तथा रहम की भीख के कारण इस देश में सरकार और उसके माध्यम से सरकारें चल रही हैं। हाल के आमचुनाव में भी इस मुल्क की अवाम ने एक ही पार्टी को बहुमत नहीं दिया और परिणाम यह है कि लोकतंत्र के नाम पर वहां पर त्राहिमाम मचा हुआ है। जनता ने किसी भी दल को बहुमत नहीं दिया लेकिन लोकतंत्र के नाम पर सभी पार्टियां एकजुट होकर अपने स्वार्थ के कारण सरकार चलाना चाहती हैं। अगर वहां खिचड़ी सरकार बन भी जाती है तो आम जनता का कोई भला हो पाएगा इसमें संदेह ही है। पाकिस्तान में कोई भी दूसरे मुल्क का उद्योगपति या व्यापारी नहीं पहुंचना चाहता है। यही स्थिति अफगानिस्तान की भी है। कारण यही है कि इन मुल्कों की सरकारों ने कभी भी कट्टरता को खत्म नहीं किया तथा देश की अवाम को शिक्षा के माध्यम से मजबूत नहीं बनाया। परिणाम सामने है।
इस संपादकीय के माध्यम से हम अपने देश के नागरिकों पर गर्व करते हैं कि आज देश का हर नागरिक भले ही शत-प्रतिशत शिक्षित ना हो लेकिन साक्षर है। करीब 70 प्रतिशत से अधिक आबादी शिक्षित है और शिक्षा के माध्यम से मिले अवसरों के कारण प्रगति की तरफ खुद बढ़ते हुए देश को ले जा रही है। आज देश में पंूजी निवेश भी हो रहा है और बाहरी मुल्कांे के उद्योगपति भारत को सर्वाधिक उपयुक्त लोकतांत्रिक मुल्क के रूप में देखते हुए अपने उद्योग लगा रहे हैं। अब चूंकि देश में लोकसभा के चुनाव चंद सप्ताह बाद ही हैं तो हमारा यही कहना है कि इस देश की जनता इस प्रगति को रूकने ना दे। देश के मतदाता आगामी चुनाव में देश के भविष्य के लिए स्पष्ट जनादेश वाली सरकार ही लाएं जिससे कि वर्ष 2047 तक हमारा भारत पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो जाए तथा हम दूसरे मुल्कों और विशेषकर पड़ोसी पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा अफगानिस्तान को यह संदेश दे सकें कि शिक्षा के सहारे तथा कट्टरता को दूर कर ही कोई मुल्क विकास की ओर बढ़ सकता है।
(updated on 12th february 2024)
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