’’मैं हूं मोदी का परिवार’’-भाजपा का भावनात्मक ’’चौका’’/////रक्षा-उत्पादन क्षेत्र को बना रहे हैं आत्मनिर्भर-राजनाथ सिंह //// मोदी ने तेलंगाना में 56 हजार करोड़ रुपये की विकास-परियोजनाओं का शुभारंभ किया/////मेडिकल छात्रों और मेडिकल/गैर मेडिकल सलाहकारों के एक समूह ने राष्ट्रपति सेमुलाकातकी///////विवेक भारद्वाज ने रांची, झारखंड में दूसरे क्षेत्रीय सम्मेलन का उद्घाटन किया//////भाजपा की दूसरी लिस्ट कल आ सकती है//////-संपादकीय--’’कानून’ शब्द पर विधायिका व न्यायपालिका से उम्मीदें हैं/////
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-संपादकीय--मोदी-शाह की रणनीति में ’’उलझती’’ पार्टियां


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किस तरह की रणनीति बनाते हैं और किस तरह से सफलता उनके कदम चूम रही है इन्हीं विषयों पर इस वक्त राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहस चल रही है। उनकी नीतियों से विश्व के देशों को भी भरोसा हो गया है कि मोदी तीसरी बार भी केंद्र में सरकार बनानेजा रहे हैं। इस भरोसे की बुनियाद मोदी और शाह के ऐतिहासिक राष्ट्रीय मसलों को हल करने वाले निर्णयों में शामिल है। मुस्लिम देश यूएई में भगवान स्वामी नारायण मंदिर का उद्घाटन, यूक्रेन और रूस युद्ध के समय भारतीय विद्यार्थियों को सुरक्षित निकालना तो कनाडा जैसे देश में भारत विरोधियों को सबक सिखाने के लिए वहां की सरकार को परोक्ष रूप से चेतावनी प्रमुख कारण रहे हैं। ये तो रहे अंतरराष्ट्रीय मसले। राष्ट्रीय स्तर पर ही उन्होंने पिछले दो माह के दौरान कर्नाटक से लेकर केरल और आंध्रप्रदेश जैसे गैर भाजपा शासित राज्यों में भी केंद्रीय योजनाओं के माध्यम से अपनी पैठ बनाई। महिलाओं और मुस्लिम वर्ग के लिए भी उनकी सरकार ने अनेकानेक कदम राजनीतिक स्तर पर उठाए। अर्थात राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने अपनी और सरकार की भूमिका को सकारात्मक रूप दिया।

अब बात करते हैं राजनीतिक स्तर पर अपनी पार्टी को मजबूत करने तथा दूसरी राजनीतिक पार्टियों में ’’हताशा और भगदड’’़ पैदा कर आसन्न लोकसभा चुनाव 2024 के लिए शतरंज की गोटियां फिट करने का काम भी जिस तरह से किया जा रहा है उसे हम कम शब्दों में दूसरी पार्टियों से तुलना कर समझाने की कोशिश करते हैं। उदाहरण के लिए मध्यप्रदेश, राजस्थान तथा छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में भाजपा को बहुमत मिलने पर भाजपा के अंदर ही उन वरिष्ठ नेताओं की मुख्यमंत्री सहित वरिष्ठ पदों पर पहुंचने की चाहत वाले नेताओं को समझा बुझाकर शांत किया गयां जिनमें शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे सिंधिया और रमण सिंह शामिल थे को पूरी शालीनता के साथ साइड में कर., डा.मोहन यादव, भजनलाल शर्मा और विष्णु देव सांय को अचानक सीएम पद पर बिठा दिया। कुछ और भी उदाहरण हैं जिनमें कई वरिष्ठ सांसदों को विधानसभा चुनाव में उतार दिया। कभी वरिष्ठ रहे ये सांसद अब विधायक बनने के बाद अपने-अपने राज्यों में मंत्री हैं। इसके अलावा संगठन स्तर पर ही वरिष्ठजनों को मुख्यधारा से हटाकर सलाहकार मंडल की टोली की तरफ डायवर्ट कर दिया। मध्यप्रदेश विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी पर नरेंद्र सिंह तोमर को केंद्र की राजनीति से हटाकर राज्य में शांत रहकर सौजन्यता से निगाहें रखने की जिम्मेदारी दी गई है।

चूंकि इस वक्त देश में मोदी-शाह की राजनीति और उनके कदमों को पार्टी के अंदर ही देखा और समझा जा रहा है तो इसका कारण यही है कि मोदी चाहते हैं कि पार्टी के कार्यकर्ता वर्ग को भी आगे बढ़ने का मौका मिले जो कि कई दशकों से ’’नारे लगाने तथा दरिया बिछाने’’ तक सीमित थे। इसी कड़ी में वर्तमान राज्यसभा चुनाव में उन पार्टी कार्यकर्ताओं को महत्व मिला जिन्हें आगे बढ़ने की आशा नहीं थी क्योंकि वरिष्ठ पार्टी नेता कई दशकों से केंद्र तथा अपने राज्यों में शीर्ष पदों पर विराजे थे। आने वाले लोकसभा चुनाव में भी संभवतः मोदी उन पार्टी कार्यकर्ताओं को टिकट देने में महत्व देंगे जो कि कार्यकर्ता के रूप में वरिष्ठ हैं परंतु नेता न बन पाये हों। अर्थात मूल बात यही है कि मोदी और शाह पार्टी के निचले केडर को भी आगे बढ़ने के अवसर का संदेश देने में कामयाब रही है जिन्हें कभी वरिष्ठ नेताओं की वरिष्ठता के कारण मौका नहीं मिल पा रहा था। मध्यप्रदेश में मात्र तीसरी बार विधायक बने डा. मोहन यादव तथा राजस्थान में पहली बार विधायक बने भजनलाल शर्मा को सीएम पद तक पहुंचाने का कदम मोदी और शाह की रणनीति का ही हिस्सा रहा। वास्तविकता तो यह थी कि अन्य पार्टियों की सरकारों में ऐसा संभव नहीं था। आज भी कांग्रेस से लेकर तृणमूल कांग्रेस तथा दक्षिण भारत में ’’खानदानी नेतृत्व’’ ही मलाईदार पदों पर बैठा है।

देश में धर्म, कर्म, योजनाओं, नीतियों, ऐतिहासिक तथ्यों, भाषण की वाकपटुता तथा पार्टी के कार्यकर्ताओं में जोश भरकर राष्ट्रीय स्तर पर ’’पार्टी की हवा’’ बनाने के बाद विपक्षी खेमे को उखाड़ने और पछाड़ने में पीएम मोदी और शाह ने विपक्षी खेमे गठबंधन को नेस्तनाबूद करने के लिए बिहार में नीतिश कुमार को अपने साथ मिलाया तो वहीं फिर से भाजपा सरकार तीसरी बार आ रही है की ’’हवाएं चलाकर’’ दूसरे दलों के प्रमुख नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कर विपक्षी पार्टियों को रूआंसा, हताशा तथा चिंता में डाल दिया है और इसे ही राजनीतिक रणनीति कहा जाता है। कुछ लोगों को या भाजपा कार्यकर्ताओं को लग सकता है कि मोदी और शाह की जोड़ी के निर्णय ’’ताजे दलबदुओं’’ को प्रमुखता दी जा रही हो लेकिन मोदी और शाह की जोड़ी जानती है कि वर्ष 2024 का चुनाव किस तरह से जीता जाना है और जो पार्टी कार्यकर्ता नाराज हो रहे हैं वो तो घर छोड़कर जाएंगे नहीं क्योंकि उन्हें समझा दिया गया है कि हमें तात्कालिक निर्णय लेने दो लेकिन तुम्हारी ’’वरिष्ठता और निष्ठा’’ का पूरा सम्मान करना हमारी जिम्मेदारी है।
(UPDATED ON 20TH FEB 24)